Made with  in India

Buy PremiumDownload Kuku FM
इतर भाग 13 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

इतर भाग 13 in Hindi

Share Kukufm
330 Listens
AuthorSaransh Broadways
Itar an Audio Book based on pull ton between scientific truth and spiritual belief. writer: सुषम बेदी Voiceover Artist : Kaushal Kishore Author : Susham Bedi
Read More
Transcript
View transcript

बहुत तेरह । कुछ अरसे बाद ये लुटाने वाले बाबा जी की ओर से कुछ ठोस आधार पाकर अपना हाथ कुछ पीछे हटा लेते और इससे अब बाबा जी को इतना फर्क नहीं पडता क्योंकि एक तो मैं पहले ही अपने सामर्थ्य से बाहर जाकर दे चुके होते और दूसरे अब तक कोई और नए पंछी दाना चुग रहे होते हैं । बाबा जी की आत्म लाभ का चक्र तो स्थाई रूप से घूमता रहा तो यह भी मुमकिन है कि कुछ लोग जिंदगी भर उस स्थायी रूप से घूमने वाले चक्र की स्थायी दूरी में बने रहे । आखिर बाबा जी अगर इतने सालों से कारोबार चला रहे हैं तो कम से कम स्थायी तारीख तो होंगे ही । उसके चक्र में क्या यह भी कहना मुमकिन है कि तार टूटने लगती हो तो बाबा जी खुद ही उसकी मरम्मत कर दें या किसी दूसरी तरफ से जोडकर उसे दुरुस्त कर दें । क्या मैं खुद वैसा तार नहीं हूँ? सन्देहों से टूट टूट कर भी जो उस चक्र की गति में अपना पूरा योगदान दिए जा रहा है । लेकिन मैं मैं खुद तो कहीं अभिषेक की वजह से ही नहीं जाती । अभिषेक का यह ना संसार कहीं उससे मुझ से दूर नहीं लिए जा रहा है उसे पकडे रहने के लिए, उसे अपना बनाए रखने के लिए । क्या उसके संसार से मेरा परिचय अनिवार्य नहीं हो जाता है । लेकिन क्या पता इसी तरह से खुद मुझ पर भी कोई धुंध छा जाए और अपने आप को मैं खुद भी पहचानना सकूँ क्या या खतरा मुझे अपने लिए लेना चाहिए पर किसी की कोई अमूल्य वस्तु खाई में गिर जाए तो उसे पाने के लिए खाई में तो उतरना ही पडता है । बस नहीं तैयार ना मैं भूल जाऊँ या कहीं कोई खतरनाक जीव मुझे भी लील नहीं ले । क्या मैं अभी से कोई दलदल से कभी बाहर नहीं निकाल पाउंगी? कहीं से किताब मेरे हाथ लगी है । दरअसल मेरी एक सहेली नहीं मुझे भेजी है । शायद हम दोनों की आंखें खोलने के लिए किताब का शीर्षक है । फिल्म फिल्म किताब में ऐसे ही जादू मंतर से इलाज करने वाले साधुओं का चिट्ठा खोला गया है । लिखने वाला फिलिपीन और दूसरे एशियाई देशों में घूम चुका है और इस विषय पर उसने अपनी तरह की ही खासी खोजबीन की है । उसका कहना है कि यह सब एक हाथ की सफाई है । उसने बताया कि किस तरह झूट वूट का खून दिखाया जाता है और कैसे चालाकी से पास खडे लोगों की आंखों में धूल झोंक दी जाती है । बाबा जी के ऑपरेशनों के बारे में भी मैंने खासा सुन रखा था । एक बार मैंने भी उन्हें गुलाब की पत्ती से मास्को चीरकर खूल निकालते देखा था और मुझे चीजें का कुछ पता नहीं लगा था । उन जरूर देखा था । मरीज को भी कुछ महसूस नहीं हुआ था । यही बाबा जी का कथन था कि बिना दर्द के ऑपरेशन होगा । बाबा जी से मैं सवाल पूछ लेती थी । उनका जवाब होता था, हम तो लोगों को बुलाते हैं । वे ही सब कुछ कर डालती हैं । तुम तो मुझे ऑपरेशन करते देखती हूँ पर वहाँ मेरा शरीर होता है रूको शरीर का माध्यम चाहिए । मैं काम करने के लिए मैं माध्यम बन जाता हूँ वरना मैं तो पढा लिखा भी नहीं । मुझे कहाँ कोई डॉक्टर ही आती है । यह सब तो देवी की कृपा से होता है । जिस के घर पर कोई मुसीबत होती है, बिजनेस में घाटा पड रहा होता या कोई विपदा होती बाबा जी कहते उस व्यक्ति के घर में शायद कोई हानि कारण हीरो है । इस तरह बाबा जी इस व्यक्ति के घर पर जाते । शीशे के गिलास में पानी भरकर कमरों में घूमते और जिस कमरे में उन्हें पीडित होने का महसूस होता वहीं रुक जाते हैं । कुछ पल में उनके हाथ की इलाज के पानी में उनका क्लॉट्स झलकने लगता है । फिर भी गिलास को उसी कमरे में एक मेज पर टिकाकर बाहर इंतजार करते हैं । घंटे आधे घंटे में पडे पडे खून का कॉर्ड कुछ और बडा हो जाता । बाबा जी कहते कि यही तक का रूप है । बडी सावधानी से वे उसे आश्रम में ले जाते हैं और कभी कभी ये ग्लास मंदिर में रख देते । मंदिर में रखने का मतलब होता है की ये उसे स्टडी करना चाहते हैं यानि की किसकी रूप है । जीवन में क्या ऐसी थी अभिषेक की बाबू जी में इस पूरी इन्वॉल्वमेंट को लेकर अपना दोहरा मैं अपनी एक पूरी तरह से नासिक फोन जमीन पर खडी बडी दुनियादारी और बुद्धिमान सहेली के सामने रोया करती थी । तभी उसने किताब खोजकर अभिषेक को पढाने के लिए मुझे दीप पर जब मैंने अभिषेक को दी तो किताब के स्लैब को पढ और किताब को कुछ उलट पुलट कर बोला यह क्या बकवास है । इसमें लिखा है कि फीलिंग वगैरह सब मैजिक है और उसमें किताब में प्रमाणों के साथ इस बात को साबित करने की कोशिश की है । पर किताब मुझे खुद कन्विन्सिंग नहीं लगी थी । अभिषेक को क्या समझती है? मुझे पहले से पता है इस किताब का । पर ये है उन झूठ चोर उचक्कों किस्म के साधुओं के बारे में हैं । जैन लोगों तक वहाँ पहुंच ही नहीं पाया । फॅस तुम्हारे पास क्या सबूत है कि बाबा जी जनून है । मेरा दिल कहता है कि इसके कहने पर मैं ज्यादा विश्वास करूँ । दिल से ज्यादा कोई और सच कह सकता है । उस आदमी से मेरा दिन रात वास्ता पडता है । अगर तब भी उसको विशेष शक्तियों पर मेरा विश्वास बना हुआ है तो और किसी से पूछने की मुझे क्या जरूरत है? पूछो तो तब ना अगर मुझे कोई शक हूँ लेकिन अभी मुझे मालूम है तुम क्या करोगी? तो फिर से यही दौरा होगी कि मैं अपना वक्त जाया कर रहा हूँ । घर में कमाई नहीं आ रही । मैं पूछता हूँ कि मैं सारी उम्र आखिर कमाता ही रहा हूँ और जिंदगी में मैंने क्या ही क्या है । अगर अब जाकर जिंदगी में कुछ सच सामने आया है । ऐसा व्यक्ति किस्मत से मुझे मिला है जिससे मैं शरीर की जरूरत से ऊपर उठकर कुछ सीख जान सकता हूँ तो तो मैं इससे आपत्ति क्यों होती है तो मैं भूखा तो नहीं मारा । मैं तुम्हारे प्रति अपने कर्तव्यों को भी निभाया ही है । मैंने अगर मैं अपनी आत्मा की उन्नति के लिए कुछ करना चाहता हूँ तो क्यों इसे तुम वक्त जाया करना कहती हूँ जिससे तुम आत्मन् होती कह रहे हो । मुझे डर है कि वह शायद अपने आप को धोखा देना है । सच को नए समझकर उस पर पहुंचा मारना है यह तुम्हारी जुबान नहीं । अल्पना यह तुम्हारी उस सहेली तुम्हारा मतलब क्या है? जो मैं कुछ महसूस करती हूँ, वही तो कह रही हूँ और उस ने ऐसा कहा भी हो तो गलत क्या है? मैं वन नंबर की स्वार्थी और कठोर लडकी है, पर साधना के सिवाय उसने क्या ही क्या है? तो आत्मोन्नति को तुम स्वार्थ साधना कहती हूँ । तब तुम्हारा अपने बारे में जिस आत्मोन्नति की तुम बात कर रही हो ना करियर अचीवमेन्ट ये सब स्वार्थ साधना नहीं तो और क्या है? तो अब तक और क्या अब तक मैं सौर सर ना ही तो करता हूँ । अगर मैं अपने से ऊपर उठकर कुछ लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूँ तो तुम उसे आत्म प्रवंचना, लेकिन परोपकार किसका हो रहा है? हाँ, हम सोचते हो वृद्धि को लेकर तुम लोगों का मंत्र बाल से इलाज कर लोगे, उनके दुख दूर कर दो । हो गए । इतना कुछ भला बाबा जी ने खुद किया है । मेरे तुम्हारे दरवाजे पर क्यों नहीं होते हैं? क्योंकि यह है ना, वरना क्यों सौ सौ लोग उनके दरवाजे पर खडे रहते हैं । अभिषेक के जिद्दी तर्कों का जवाब देना मेरे लिए मुश्किल हो जाता था । मुझे गुस्सा आ गया । फिक्र मत करो, शिक्षा चल रही है ना तुम्हारी तुम्हारे दरवाजे पर भी ढेरों लोग खडे होंगे । अब हकीम का पेशा करना तो क्या बोला है? पहले भी तो हाँ की नहीं करता था । सॉफिस्टिकेटेड नाम देने से पेश थोडी बदल जाता है तो तुम सच में हकीमी की ही सोच रहे हो । अल्पना मुझे पुश मत करो । आखिर में वही कर रहा हूँ जो मेरा अंतर कहता है । इतनी उम्र हो गयी । पहली बार तो मैंने अंतर की आवाज सुनी । अब जब सुन ली है किसी ने कृपा करके मुझे सुनवा दी है तो अब मैं उसे अनसुना कैसे कर दूँ? मुझे समझ नहीं आता कि आज मैंने अपनी जिंदगी का रास्ता बदल दिया है तो तुम्हें उसमें क्यों आपत्ति होती है? तो मैं तो बस एक ही फिक्र है ना कि है जमा पैसा खत्म हो जाएगा तो तुम खाना कहाँ से होगी? क्योंकि मैं अब तुम्हारे लिए दिनभर खट नहीं रहा और सोचो बाबा जी भी तो अच्छा खासा रह रहे हैं । खा पी रहे हैं तो हम क्यों कर भूखे मरेंगे । जब ईश्वर की कृपा रहेगी तो सब काम ठीक ठाक होंगे । यह घर नहीं भी होगा तो किसी छोटी जगह शिफ्ट कर लेंगे । जिसने पैदा किया है तो पालना भी तो उसे ही है । अ विषय की ये सारी बातें मेरे खून को जला जला कर रात बना रही थी । उसने मुझे कितना स्वार्थी समझ दिया है जैसे कि मुझे सिर्फ अपने खाने रहने की ही फिक्र, वो मेरी बाकी किसी बात को तो मैं समझना ही नहीं चाहता हूँ और जवाब देता है किसी और के तक इयान उसी तर्कों से ये तर्क जो हिंदुस्तान में हर आदमी सदियों से देता है जिनका कोई तार्किक आधार ही नहीं । फिर भी उनमें कनविक्शन का ऐसा जो रहता है कि मेरे सुलझे सोचे समझे तरफ भी कुल हथियारों की तरह बेकार हो जाते हैं । पैसा मुझे लगा की तरफ से शायद अभिषेक को समझाया नहीं जा सकता क्योंकि वह खुद तर्कशक्ति से काम नहीं ले रहा क्या लेने में लाया की नहीं रहा । उसके भीतर बसा बाबा जी का भक्त अब तक कैसे सुन सकता है? तरक्की बात होती तो क्या रोगों से काम करने की वे सारी बातें उसे अजीबो गरीब नहीं लगती? मैंने सहसा पूछ डाला, तुम तो रोज होते हो पूजा में क्या तुमने भी देखा है? लोगों को रोगों को तो देखा ही नहीं जा सकता । महसूस किया है । मैंने खुद महसूस नहीं किया । लेकिन बाबा जी बता देते हैं कि वह कमरे में आई थी । क्योंकि पूजा में जब ये सवाल लगते हैं तो मैं जवाब लेकर आती हैं, लेकिन तुमने खुद कभी महसूस नहीं किया । शायद नहीं तो क्या? तो मैं सिखाया नहीं । बाबा जी ने रोगों से काम लेना सिद्धि कैसे मिलेगी? लोगों को बस में लाना बडा मुश्किल काम है । उन्हें ठीक से हैंडल करना नहीं आता हूँ तो वे अटैक करके तुम्हें ही खत्म कर देगी । बाबा जी अभी मेरे साथ ऐसा खतरा नहीं लेना चाहते हैं तो पहले मुझे सामान्य किस्म के दर्द ठीक करना सिखाएंगे । अभी तो मैं मंत्रों का ही सही उच्चारण मैंने बात काट दी थी । तब से बस तो मन त्रिपाठी किए जा रहे हो फॅस । जिस विद्या को इस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन देकर पाया है तो तुम समझती हूँ कि वह छह महीने में मैं पूरी तरह से जाऊंगा । आखिर मुझे भी तो वक्त लगेगा तो कितना वक्त लगाना है । जितना भी यानि कि नहीं । अभी कुछ और देर तो देखूंगा जब तक बाबा जी कहेंगे । फिर अगर अपनी बदकिस्मती से मैं कुछ भी नहीं सीख पाया तो देख लूंगा । तब अपनी डॉक्टरी प्रैक्टिस पर वापस आ जाओ गए । हाँ, मैं तो सारी उम्र लगाकर मैंने सीखा ही है, उसे तो कभी भी दोबारा शुरू कर सकता हूँ । उस रात अभिषेक जब पूजा के लिए चला गया तो मैं सारी रात जगे, उसी के बारे में सोचती रही । मन में ढेर सारी गुंजने पडी हुई थी । यह सब क्या हो रहा है? मेरी जिंदगी में जैसे छोटे से कौतूहल की तृप्ति के लिए ही अपना लिया था । आज वही मेरा गला दबोच रहा है । क्या अभिषेक कभी लौटेगा? क्या ये जिंदगी उसके बिना ही बितानी होगी या की मैं भी उसके साथ ही हूँ । पर जिस विश्वास के साथ मैं नहीं रह सकती, जिसे उठाते ही हाथ में ढेरों कीडे भी साथ चढाते हैं, उनका अपनी हस्ती पर रेंगना पाला कैसे सहता होंगी? लेकिन अभिषेक में ऐसा बदलाव क्यों कराया है । क्या पहले से ही उसके भीतर कुछ काट रहा था, जैसे मैं देख नहीं पाई । क्या अभिषेक भी इस तेज गति से बहने वाली जिंदगी से ढकने लग गया था, जिसे मैं अपने रोजाना के छोटे छोटे सुखों में डोभी मैं महसूस नहीं कर पाई । शायद उसे भी कुछ आराम चाहिए था । जिंदगी की मंथर गति से बहने वाली धारा, जिसमें वह नहाकर अपनी खींची हुई मांसपेशियों को कुछ सहला देता । आखिर जब से वह इस देश में आया है, लगातार काम ही तो कर रहा है पहले रेजिडेंसी के दौरान रातो रात का खाना, फिर प्रैक्टिस दिन रात काम ही काम पैसा शॉपिंग डिनर सोशल लाइजेशन बस इन्ही दूरियों पर घूमती जिंदगी आखिर है क्या? जिंदगी में जिसके साथ में चिपका रहे । फिर बाबा जी में शायद उसे एक अंतरंग मित्र मिल गया है । एक बाबा जी ही तो उसे हरदम बुलाते रहते हैं और किसके पास फुर्सत है यहाँ डिनर या लंच सात खा लिया । बस कितनी दोस्ती की परिभाषा रह गई है हमारे समाज में बाबू जी और रूपा के व्यवहार में जो एक सहजता है, स्पोर्ट यूनिटी है, क्या वह कहीं भी किसी भी व्यक्ति में मिल सकती है? इस देश में यहाँ आने वाले हिंदुस्तानी भी तो अपनी स्पाॅट देते हैं । तब बाबा जी को लेकर अभिषेक का रेस्पॉन्स नहीं, उसके भीतर के अकेलेपन को भरना ही तो नहीं । एक बडी सहज स्नेह मई जिंदगी जहाँ किसी को जल्दी नहीं, किसी को कोई हडबडी नहीं । बस आश्रम का मंदिर का शांत माहौल । अगले दिन अभिषेक मेरे लिए किताब ले आया । ये अमेरिका में प्रैक्टिस करने वाले एक हिंदुस्तानी डॉक्टर की अमेरिका में ही छपी किताब थी । इसमें उस डॉक्टर ने झाडफूँक, बेड, हीलिंग और कैंसर जैसे रोगों के मंत्रों द्वारा इलाज को वैज्ञानिक आयाम और आधार देने की कोशिश की थी और इन्हें विश्वसनीय बताया था । मैंने भी किताब को उसी तरह उल्टा पुल्टा जैसे अभिषेक ने फिलम सलाम को और एक किनारे रख दिया । मन में सहसा चोट लगी । हमारा आपसी कम्युनिकेशन कहीं खत्म हो रहा था । हम आमने सामने नए होकर दूसरे प्रतीकों का सहारा ले रहे थे ।

Details

Sound Engineer

Itar an Audio Book based on pull ton between scientific truth and spiritual belief. writer: सुषम बेदी Voiceover Artist : Kaushal Kishore Author : Susham Bedi
share-icon

00:00
00:00