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इतर भाग 11 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

इतर भाग 11 in Hindi

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336 Listens
AuthorSaransh Broadways
Itar an Audio Book based on pull ton between scientific truth and spiritual belief. writer: सुषम बेदी Voiceover Artist : Kaushal Kishore Author : Susham Bedi
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क्या भाग जा रहे हैं । बाबा जी के पास हम जितना ज्यादा जाते हैं उतना ही और ज्यादा जाने की इच्छा बनी रहती है । धीरे धीरे मैंने गौर किया कि हमारा सोशल सर्किल ही बदलने लगा था । हम उनको लोगों से ही मिलते हैं जिन्हें हम या तो बाबा जी के आश्रम में मिलते हैं या जिनको बाबा जी के बारे में बात करने में दिलचस्पी होती । कई बार बाबा जी ही लोगों से मिलने या खाने पर जाते हैं तो हमें अपने साथ चलने को कह देते हैं । इस तरह हम कई नए लोगों से मिलते हैं और उनके और हमारे बीच संबंध या बातचीत का सूत्र बाबा जी ही होते हैं । बाबा जी का नाम तो बढता ही जा रहा था आई जिन्होंने न्यूयॉर्क के बाहर के शहरों में बसे हिंदुस्तानियों के समूह आमंत्रित करते । न्यूजर्सी के एक शहर के हिन्दुस्तानियों ने उन्हें अपने शहर के मेयर से विशेष सम्मानपत्र भी दिलवाया । अभिषेक मुझसे कहता हूँ, इस आदमी में जरूर कुछ खास बात है वरना इतने लोग बेवकूफ थोडे ही हो सकते हैं । जब हम बाबाजी के चमत्कारों से इतने प्रभावित हो गए तो और लोग भी हो सकते हैं । तुम कहना क्या चाहती हूँ । अभिषेक के इससे ऐसा तने हुए सवाल ने मुझे चौंका दिया । शायद अभिषेक ने मेरे जवाब में हमारे अपने बेवकूफ होने के अर्थ को ही लिया था जो उसे चूका था । क्योंकि इसके थोडी देर बाद अभिषेक ने कई दिनों से भीतर बोलती अपनी ख्वाइश को मुझ पर जाहिर किया । मैं बाबा जी से सिद्धि लेने की सोच रहा हूँ क्यों नहीं? इसलिए मैंने जबरदस्ती उससे मजाक नहीं लिया । बाबा जी ने खुद मुझसे कहा कि वे मुझे सिखाना चाहते हैं । उन्होंने अपने आप ही मुझे इस काम के लिए चुना है । उनका कहना है कि मैं एक सुयोग्य पात्र हूँ वरना मैं और किसी को अपनी विद्या नहीं देते हैं । तुम्हें उन्हें क्या जवाब दिया था? उन्होंने खुद ही कहा कि जब भी में मानसिक रूप से तैयार हूँ, शुरू किया जा सकता है, क्या करना होगा? कह रहे थे कि मांस, मदिरा और औरत का त्याग करना होगा? नहीं नहीं, तुम्हारा नहीं रहे तो मैं कभी करूंगा नहीं और मैंने बाबा जी से क्या दिया था? पर वे बोले की उनका मतलब पत्नी से नहीं, परिस्थिति से हैं । वरना आखिर में खुद भी तो रूपा के साथ ही हैं । तुम तो खासे संजीदा लग रहे हो तो मजाक ही समझे जा रही हूँ, लेकिन अभी मैं थोडा सीट कर देखना चाहता हूँ । ये हैं कोई नहीं, बात तो नहीं । अभी हम जानते नहीं यह सारी विश्वास की बात है । यह तो सिर्फ मार कर ही जाना जा सकता है । अगर जीते जी जान लिया जाए तो यह संभव नहीं । अभी अपने आप को धोखा मत दो, लेकिन तुम भी तो उतने डाउट में हूँ, जितना कि मैं । तुम जितना अविश्वास करती हूँ, मैं उतना ही विश्वास । तब हम दोनों में से कौन गलत या सही है? वह बात नहीं और अभिषेक तो ऑलरेडी एक्सपेरिमेंट कर रहे थे तो लगभग फेल हो चुका है । फिर भी तुम कैसा एक्स्पेरिमेंट? तो हमने कहा नहीं था । मेरी डायबिटीज हो गई तो बाबा जी को मान जाओ गए वरना ऐसा फिजूल ऍम कुछ पल चुप रहे । अभिषेक फिर बोला एक बात करूँ बाबा जी कहते हैं कि विश्वास और धैर्य से सब काम हो जाते हैं तो मैं तो बाबा जी पर इतना संदेह तब तुम्हारी डायबिटीज कैसे हो सकती है? सिर्फ एक व्यक्ति के नहीं ठीक होने से तो उनको गलत तो साबित नहीं कर सकती । ठीक हुआ है तो कितने लोग हुए हैं, वही होंगे वरना उनके पास जाने वालों का नंबर दिन पर दिन बढता कैसे जा रहा है तो लोगों की संख्या से बाबा जी की सच्चाई होती है और क्या तरीका है उनकी सच्चाई साबित करने का? मैं लाजवाब थी । कहने के तो मैं कह सकती थी कि लोग को भेड चाल होते हैं । पर इन में कहीं अभिषेक का भी तो होता है । यहाँ तो तरफ बढाये जाने का मन नहीं था यह बहुमत । यह संख्या की शक्ति जिस बात को सही साबित कर दे, उसे गलत साबित करने के साधन भी मेरे पास कहाँ थे? फिर मैं तो खुद मात्र संदेह की स्थिति में हूँ । मैं सोचने लगी कि मुझे तो अभिषेक की सुपात्र ता पर गर्व होना चाहिए । मान लो मुझे बाबा जी ऐसा कुछ कहते तो मैं क्या भागी? भागी सीखने नहीं जाती । तब अभिषेक ऐसा सुनाना, मौका क्यों छोडे हैं? लेकिन अभिषेक की डॉक्टरी प्रैक्टिस का क्या होगा? मैंने पूछा तो अभी से बोला दुनिया के काम तो चलते ही रहते हैं । सभी पैसे कमाते हैं । मैंने अभी तक यही किया । उस दिन नहीं भी कमाऊंगा तो क्या चलेगा? नहीं तो मैं फिक्र तो नहीं । अभी तो हमारी खासी सेविंग भी है । एक दो महीने नहीं करवाया तो क्या भी करने वाला है । जिंदगी में कुछ और अनुभव भी तो लेने चाहिए । कैसा भी आकर किस लिए होता है? अभिषेक सभाओं से कुछ बाबू और आदर्शवादी भी था । उसके मार्क्सवाद का अर्थ अपनों से कमजोर के लिए कुछ करना भर ही था । अगर मैं मंत्रशक्ति से निरोग करने का रहे से जान गया तो जानती हूँ कितने लोगों का कल्याण हो सकता है । बाबा जी अकेले तो हर जगह पहुंच नहीं सकते । कुछ और लोग सीख सकें तो उतने ही ज्यादा लोगों का भला भी तो कर पाएंगे है । मैं तो अभी अपने ही हो तो हाल की वजह से सीखना चाहता हूँ । अगर सिद्धि नहीं मिली तो सोचूंगा । थोडा सा वक्त जाया हो गया । योगी तो सालाना छुट्टी लेकर कहीं ना कहीं घूमने जाते ही हैं । इस साल यही सर सा पडा रहा तो बेसिकली तुमने फैसला कर ही लिया है, लेकिन तुम्हारी रजामंदी भी चाहिए । बाबा जी कहते हैं कि अल्पना की इजाजत के बिना में दीक्षा का काम ही शुरू नहीं करेंगे । पत्नी की रजामंदी जरूरी होनी चाहिए तो मेरा भी कुछ रोल है । इसमें अगर मैं ना कर दो तो तो मैं सीख नहीं पाऊंगा । लेकिन क्या तुम ना करोगी कर भी सकती हूँ । लेकिन अल्पना मैंने तुम्हें हमेशा तुम्हारे अपने ढंग से जीने दिया । अगर मैं जिंदगी में कुछ करना चाहूँ कुछ अपने मन से चाहूँ तो क्या तुम रोक दोगी तुम्हारे घर के प्रति दायित्व उसमें तो कोई फर्क नहीं आएगा क्योंकि तुम मुझे बेवकूफ समझती हूँ । सारी जिंदगी मैं घर का ही बना रहा हूँ क्या? दो तीन महीने और मैं कौन सा घर छोड कर जा रहा हूँ तुम भी मेरे साथ चलना । मैंने फैसला किया कि मैं अभिषेक को उसका मनचाहा काम करने दूंगी । अपने मन के डर और शंकाओं से खुद ही लडने पढ लुंगी यूपी अपने स्वार्थ के मारे उसे रोकना कहाँ तक ठीक है? मैंने अपने आप को बडे बडे संतों की पत्नियों प्रेमिकाओं में स्थान दे दिया जिन्होंने अपने स्वार्थों को तजकर पतियों प्रेमियों को सही रास्ते पर भेजा या जाने दिया था । शायद अभिषेक भी कोई मानस या सूरसागर रचने । अगली शाम जब हम बाबा जी के यहाँ गए थे तो उन्होंने अभिषेक के सामने ही मुझसे पूछा क्यों? अल्पना तो मैं कोई आपत्ति तो नहीं है ना तुम्हारे पति को सिद्धि सिखा सकते हैं ना । अगर आपत्ति हो तो आप बता दीजिए क्योंकि पत्नी की आज्ञा के बिना हम कुछ नहीं सिखा सकते । मैंने धीरे से कहा जी नहीं भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है । तुम चाहूँ तो कभी कभी तुम भी साथ आ सकती हूँ । ठीक है तो हम जल्दी ही तिथि निकालकर फोन करेंगे कि कब शुरू करना है । ठीक है । अभिषेक रात ग्यारह बजे बाबा जी के पास जाता है और सुबह छह सात बजे वापस आता है । कराकर दिनभर होता हूँ । शाम को उठकर कुछ एक धंदे निपटाता और फिर बाबा जी के पास जाने का समय हो जाता हूँ । हफ्ते में एक दो बार मैं भी उसके साथ जाती । बाबा जी शाम की आरती के वक्त फिलिंग स्टेशन करते हैं । डिनर लेते डिनर की । एक दो घंटे बाद सब गपशप और प्रवचन करते हैं और रात के बारह बजे मंदिर का दरवाजा बंद कर पूजा करते हैं । रात बारह बजे से सुबह पांच बजे तक अभिषेक भी उनके साथ मंदिर में पूजा करता है । एक रात मुझे भी उन्होंने अंदर बुला लिया था । मुझे भी मंत्र देकर सफेद मोतियों की माला दी और जब करने को कहा बाबा जी योगासन में बैठकर लगातार पांच घंटे ध्यान मनन करते हैं । अभिषेक भी उसी पोज में मंत्र पाठ करता । शुरू शुरू में उसकी तांगर घुटने बहुत दुखते थे । बाद में उस तरह बैठने की उसकी आदत पड गई है । मुझसे भी बहुत ज्यादा देर चौकडी मारकर बैठा नहीं गया और बाबा जी के अनुसार मेरे लिए वैसा कुछ भी करना अनिवार्य नहीं था क्योंकि मैं सिद्धि पाने के लिए तो कुछ कर ही नहीं रही थी । दो तीन हफ्ते बाद मैंने अभिषेक से पूछ डाला तो मैं अपने में कुछ फर्क लगा ऐसा पर वैसे ही कोई खास ताकत जैसे बाबा जी में है बीमारी ठीक करने की । हाँ अरे अभी से कहा अभी तो मुझे पूजा की विधि सिखा रहे हैं । अभी तो मुझे ठीक से यह भी नहीं पता कि मंत्र कैसे पढा जाता है या पूजा की पूरी प्रक्रिया क्या होती है । पहले वैसी खाऊंगा तभी कोई पावर आएगी । यू पूजा का आनंद तो मुझे भी मिलता था बाबा जी की वो छोटे से मंदिर में धूप, अगरबत्ती और गुलाबों की खुशबू ऐसी रच बस गई थी कि वहाँ बैठे मुझे मैं कुछ वही जीवन लगने लगती है जैसे उस खुशबू से ही सब के दुःख दर्द छोड जाते हो । जैसे बाबा जी खुद भी सिर्फ खुशबू थे और अपने भक्तों में भी वह फूक देते थे । लेकिन कमरे के बाहर निकलते ही जैसे अपने आप ही आ जाती है । बाद में इसी खुशबू से मुझे डर लगने लगा था । जितना हम बाबाजी के करीब आते जा रहे थे उतना ही वे हमारी जिंदगी का एक अनिवार्य अंग बनते जा रहे थे । बाकी लोगों की नजर में भी हमारी इज्जत इससे बढती जा रही थी । अबे हमें बाबा जी का करीबी समझते मेनका बहन तो अभिषेक को छोटे बाबा जी बुलाने लग गई थी । उनकी देखा देख कुछ और लोग भी अभिषेक को इसी नाम से पुकारने लगे । मुझे बडा अजीब लगता मेरे लिए अभिषेक अब भी वह अभिषेक ही था जो सर्जरी की जगह एक दूसरी नौकरी में व्यस्त हो गया था । वहाँ हमारी दिनचर्य बहुत उलट पुलट हो गई थी । जैसे रात भर अपार्टमेंट में अकेला रहना । बडा अजीब सा लगता था मुझे । लेकिन पहले भी अभिषेक का सर्जन का काम अक्सर उसे इमरजेंसी में रातों को भी व्यस्त रखता था तो इसमें भी कोई वैसी नई या अनोहनी बात नहीं थी । पर धीरे धीरे अभिषेक ने दिन का भी बडा हिस्सा वहीं बाबा जी के पास ही बिताना शुरू कर दिया । मैं पूछती तो कहता कि बाबा जी ने रोक लिया था, एक दिन में है । शाम छह बजे वापस आया । नहा धो कर खाना खाया तो घंटे पर आराम करने के बाद फिर लौटने को तैयार हो गया । मैं एकदम खबर आ गई । अपनी हालत देखी है तुमने अभी आखिर कैसे लाल हुई पडी है । रात भर तुम सोते ही नहीं । अब दिन में भी नहीं ड्राइव कैसे करोगे । इतनी दूर तक ऐसी कोई बात नहीं है । वहाँ जाकर बैठ नहीं है । बाबा जी भी तो जाते हैं उससे कहीं ज्यादा जाते हैं । उनका कहना है कि आदमी को दो घंटे से ज्यादा नहीं इन की जरूरत नहीं होती और तुम्हारा डॉक्टर मन उनकी बात सही मानता है । एक बार तो मैं भी जानता हूँ । आदमी जिस तरह से भी खुद को आदि कर लेंगे वही उसके लिए सही तरीका हो जाता है । यह बात तो सब डॉक्टर मानते हैं की भूख और नींद बढाने से बढते हैं और घटाने से कम होते हैं । अभिषेक के डॉक्टरी तरह के सामने मुझे फिर हार माननी पडी थी । लेकिन मन की गवर्नमेंट और फिक्र का क्या करती हैं? चलो मैं चलती हूँ तुम्हारे साथ बाबा जी के आदेश के बिना कैसे चल होगी । मैं ऐसा तैश में आई तो अपने पति के साथ भी मुझे बाबा जी के आदेश से मिलेगा । मैं बात नहीं लेकिन रात को वे सबसे मिलते नहीं पूजा में बैठना होता है और जिस तरह से जगी राते काट का तुम सूजी आंखों से गाडी चला होगे तो एक्सीडेंट होने पर बाबा जी जिम्मेदारी लेंगे । तुम्हारी जब उनकी मेहरबानी हो तो एक्सिडेंट होता ही नहीं । यादव करन का कितना बुरा एक्सीडेंट हुआ था, स्विट्जरलैंड में एकदम बच गया । अभी हमारे विश्वास से मैं टक्कर नहीं ले सकती है, लेकिन बहुत सिर्फ बाबाजी के रोक लेने की नहीं थी, क्योंकि अभिषेक अब वहाँ मौजूद होता था । इसलिए रूपा जी को उस पर हक जमाने का जैसे मौका मिल गया था । यूपी अभिषेक बाबा जी से सिद्धि सीख रहा था इसलिए गुरु शिष्य परंपरा में गुरु माता का उस पर परंपरागत स्वयंसिद्ध अधिकार था । इन दिनों उस पर एक नया फितूर चढा हुआ था और वह यह कि उसने न्यूयॉर्क की नाइटलाइफ अभी तक नहीं देगी तो आप जरूर देखनी है । बाबा जी हमेशा की तरह बोले हमारे पास इन बातों के लिए वक्त नहीं है तो मैं जाना है तो जाओ । रूपा को पहले भी हमेशा इसी तरह का जवाब मिला करता था और वह कुछ प्रतिरोध करके भी अंततः चुप हो जाती थी । और इस तरह के मामलों में बाबा जी की बात अंतिम रहती है, पर इस बार में हैरान रह गई । जब रूपा बोली ठीक है हम अकेले ही चले जायेंगे तो अभिषेक जी हमको न्यूयॉर्क की नाइटलाइफ दिखाएंगे । अभिषेक बाबाजी की और देखने लगा था । बोले अभिषेक के साथ तो हम तो मैं भेज भी देंगे । ले जाओ अभी से इसको दिखाओ जो कहती है वरना मैं मेरी जान खा जाएगी । अभिषेक विचारा न हाँ करने के काबिल था ना के रूपा के साथ नाइटलाइफ देखने का मतलब था अपनी माँ के साथ देखना । अभिषेक मानसिक रूप से इस बात को लेकर बडा अटपटा सा महसूस कर रहा था । कहाँ अल्पना से पूछना पडेगा अगर वह साथ चले तो रुपए एकदम से बोल पडी तो मेरे साथ अकेले जाने में आपको घबराहट होती है । ठीक है मैं ही कौनसा के लिए आप के साथ जाना चाहती हूँ तो भाभी जी आपको जाने में कुछ आपत्ति है । मुझे कुछ कहना ही था मुझे नाइटलाइफ देखने का शौक नहीं । पर चलिए यह भी एक अनुभव होगा खासकर आपके साथ देखने का । तो क्या आपने भी नहीं देखी । उसको देखा है पर बहुत कुछ भी नहीं देखा । रूपा ने किसी से छिप अंडे के बारे में सुन रखा था जो न्यूयॉर्क में सिर्फ औरतों के लिए बना स्पोर्ट हुआ । लडकियों की बजाय लडके सिर्फ तीस करते हैं । उसे सिर्फ लडकियों को ही देखने की इजाजत होती है । उसकी जित्ती वहाँ जरूर जाएगी । अभिषेक को अंदर जाने की इजाजत सिर्फ तीस के दौरान नहीं थी इसलिए मैं ही रूपा कोच्चि फॅस लेकर गई । जैसे कबड्डी बॉक्सिंग का काम होता है उसी तरह तीन तरफ दर्शकों के बैठने की बेंचों से गिरा डिस्को डांस के फ्लोर घुमा फॅार स्टेज बना था जिसके पीछे लकडी की खपच्चियों को खडा कर मैन है की रूपरेखा का बेडरॉक बना था । छत पर से डिस्को की लाइटें लटक रही थी । सारे डिस्को या नाइट क्लब का माहौल बडा ही सजावट और ऍम विरोध या कहूँ बडी वोह इंडियन किस्म की कॅाल किस्म की सजावट थी । जवान खूबसूरत शकल और बदन वाले लडके डेरो चहकती मेहनती लडकियों के बीच सिर्फ वोट आई और कैसी पतलून पहने ड्रिंक सर्व कर रहे थे । कई लडकियाँ उनके साथ तस्वीरें खिचवा रही थी । पूरे माहौल में बेहद एक्साइटमेंट हूँ और शोर शराबा मचा था । लोग लगता है शो के वक्त से पहले ही पहुंच गए थे क्योंकि सारी बैंचे भर चुकी थी । बडी मुश्किल से सबसे पीछे वाली लाइन में हमें जगह मिली कोई रैफल भी हो रहा था । कुछ लडकियों ने रैफल टिकट बेचने वाले लडकों को स्टेज पर घेरा हुआ था । धडाके के संगीत के साथ प्रोग्राम शुरू हुआ । मंच पर पांच लडके एक साथ उतरे और जिस्म की सारी मांसपेशियां को थिरकाते हुए बडा ही उत्तेजना और पूर्ति भरा नृत्य पेश करने लगे । मैं अंधेरे में बडे गौर से रूपा का चेहरा देख रही थी जिसकी एक तक उस दुकान के मंच पर व्यक्ति गठी इन टू लचीली गोरी पुरुष देर जस्ट क्यों पर टिकी थी । मुझे अपनी ओर घूमते देख ऐसा जैसे गाकर शर्मीली मुस्कान लाकर बोली कैसे बेशरम है ये लोग? मैं सिर्फ मुस्करा दी । प्रोग्राम खत्म होने पर सारी लडकियाँ मंच पर डिस्को डांस करने उत्तराई रूपा किसी नई जगह जाना चाहती थी । अभिषेक हमें लेने आ गया । हम उसे एक अमरीकी देश कंट्री संगीत के क्लब ले गए । यहाँ बडा ही मस्त कर देने वाला कंट्री म्यूजिक था ।

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Sound Engineer

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