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इतर भाग 09 in Hindi

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240 Listens
AuthorSaransh Broadways
Itar an Audio Book based on pull ton between scientific truth and spiritual belief. writer: सुषम बेदी Voiceover Artist : Kaushal Kishore Author : Susham Bedi
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भाग नौ रोज रात को सोने से पहले चरण ऐसा कि अंगूठे में लगाकर नाम भी में लगाइये गा । कुछ महीने में आप एकदम ठीक हो जाएगी । तब पानी में गोल गोल कर चीनी जाएगी तो भी शुगर में कुछ फर्क नहीं पडेगा । एकदम नॉर्मल हो जाएगी । यह मैं पहले भी कह चुके थे । मेरी टूटती उम्मीद फिर से जुडने लग गई थी । लेकिन अपनी उम्मीद पर मुझे खुद भी भरोसा नहीं होता था । पाए गए वक्त वक्त दिमाग से सवाल करता ही रहता था । तभी मैंने अभिषेक से कहा बाबा जी से हमें लेना देना भी चाहिए । मिलकर तुम्हें अच्छा लगता है । बस यही ना बाकी ज्यादा करीब जाकर भी क्या मिल जाना है । डायबिटीज ठीक होने से नहीं । मैं सोचता हूँ बाबा जी से सिर्फ दिल होगा । दूसरों को इलाज करने की पावर फिर देखूंगा डॉक्टर के इलाज बाबाजी के इलाज में कहाँ? समानता फर्क है । अभिषेक के जवाब में मुझे काट कर दिया । क्या सच में गंभीर है मैं भीतर से कहीं डर गई थी मैं यह तो बडी बेतूकी बात है । बाबा जी को इलाज थोडे ही करते हैं । वे तक ठीक होने की प्रार्थना करते हैं । प्रार्थना का बाल और इलाज दो अलग अलग चीजें प्रार्थना में कितना बाल होता तो क्या मैं ठीक नहीं हो जाती? तुम्हें भरोसा भी तो नहीं कहते हैं । जिन्हें विश्वास होता है वही ठीक होते हैं तो बताओ कौन ठीक हुआ है । उन्होंने कई ऑपरेशन भी किए हैं । कुछ लोग ठीक हुए हैं, सुना है या देखा भी है, देखा तो नहीं । और बाबा जी उस दिन बता रही रहे थे कि जिनेवा में एक बच्चा आया था । उसकी टांगे टेडी थी । देवी माने सीधी कर दी । मैं बच्चे के माँ बाप से मिला था । ये कह रहे थे बच्चा बेहतर है । हाँ मैंने भी देखा था और पूरा ठीक तो नहीं हुआ । मैं तो टाइम देना होगा ना । एक रात थोडी ठीक हो जाता है । कोई नमस्कार तो एक रात में भी ठीक कर सकता है । यह कहते कहते मेरी आवाज गरम हो गई थी । अभिषेक भी तेज आवाजें बोला । डाॅ चमत्कार नहीं करते । उनकी भी इलाज करने की अपनी एक विधि है । अगर तुम और मैं उस विधि को नहीं समझते तो बाबा जी का मजाक बनाने का भी हमें कोई हक नहीं । जो बात खेल खेल में शुरू हुई थी वह गंभीर होने लगी । बात आगे बढाना नहीं चाहकर मैं चुप रही । लगता है लोग अभिषेक को अंतरंग कैबिनेट का मानते ही होंगे । तभी हमें भी गुरु पूर्णिमा का न्योता दिया गया था । फिर बाबा जी ने ही उन्हें हमें बुलाने को कहा होगा, क्योंकि मानने वाले न्यूजर्सी के ही गुजराती परिवारों को लोग थे । तब उन के लिए बाहर के थे । शहर से भी बाहर और कम्युनिटी से भी बार । ये लोग अभिषेक को पंजाबी साहब कहकर बुलाते थे । किसी के नाम से पुकारने की जरूरत नहीं समझी । जैसे कि किसी भौगोलिक हिस्से द्वारा दी गई आइडेंटिटी नाम से ज्यादा अहम हो । अजीब बात थी । हम सब ने अमेरिका में आकर एक पूरा भारतीय संघ बना दिया था । गुजराती समाज, बंगाली समाज, केरल समाज, पंजाबी एसोसिएशन इस तरह सभी अलग अलग अपने समूह में रहते थे । उस समूह के संदर्भ में ही वे भारतीय थे, क्योंकि सहयोग से वह समूह भारत से आया था या वह भौगोलिक हिस्सा भारत की सीमा में पडता था । वरना हर अर्थ में वह समूह सिर्फ गुजराती थे, सिर्फ पंजाबी या सिर्फ बंगाली । भारत के संपूर्ण नक्शे से उनका कोई वास्ता नहीं था । इसलिए भारत की एक भाषा हिंदी को प्रमोट करने की बजाय सब अपनी अपनी भाषा आगे करने की कोशिश करते थे । इनका बेन नहीं हमें बुलाया था कहने लगी, बाबा जी के लिए पार्टी वार दे रहे हैं । अठारह अगस्त को क्या बाबा जी का जन्मदिन है? उस दिन नहीं गुरु पूर्णिमा है । पार्टी उसी हीरे के व्यापारी के घर थी जिसे हम पहले मेनका बहन के घर पर मिल चुके थे । मेनका बहन नहीं । उनका नाम पता भी दिया जयंत पटेल और विभूति बुरी । पूर्णिमा के दिन का कभी मेरे लिए कोई मतलब नहीं रहा था । मेरे लिए वहाँ कोई त्यौहार नहीं था । पर अब न्योता आ ही गया तो सोचा कि हम भी पार्टी में जाएंगे । बाबा जी ने भी खास कहा की जरूर आएंगे । हम नियत वक्त से कुछ देर से पहुंचे । अंदर गए तो देखा कि बाबा जी जरी की सॉल से ढकी एक बडी सी आराम कुर्सी पर विराजमान है । उनके पैरों के पास एक थाली में फूल पत्र, एक नारियल और पूजा का दूसरा सामान तथा एक में प्रसाद के लिए कटे हुए फल रखे हैं । दो दिन पहले एक पंडित मंत्र बात कर रहा था और बाबा जी के पैरों के पास बैठे जयंत और विभूति पंडित के आदेशानुसार पूजा की रस्में अदा किए जा रहे थे । बाबा जी की आंखे बंद थी और हिलते वोटों से लग रहा था कि वे स्वयं भी कोई जॉब कर रहे थे । बाबा जी ने आठ खोलकर पंडित से देवी सूती के एक सौ आठ नाम बोलने को कहा और फिर आगे बंद कर ली । देवी के बाद गुरु स्थिति के मन्त्र गाए गए । गुरु पूजा करते हुए जयंत विभूति ने बाबा जी के चरण पर रात में पानी से धो फिर उन चरणों पर शीर्ष रखकर नमन किया । ये रस्में बहुत देर तक चलती रही है । मैं लगातार बाबा जी का तेजस मारा मुखमण्डल देखती रही तो यह व्यक्ति आज इतना उठ गया है । इन लोगों के बीच में उसकी पूजा कर रहे हैं । करीब दो सौ आदमी उस बडी सी बैठक में बैठे पूजा में भाग ले रहे थे । पूजन के बाद भजन गाए गए । मेनका बहन ने गुरु की स्थिति में भजन गाया । फिर सबको फूल बांटे गए और सब एक एक करके बाबा जी के चरण छूकर फूल चढाते हैं और बाबा जी अब मुंडी आंखों से जैसे किसी दिव्यलोक में पहुंचे हो । हल्के से झुके सिरों पर आप रख देते हैं । लोग इस हिंदुस्तान के लिए लाइन में लग गए थे । कुछ देर मैं भी लाइन में खडी रही । मेरी बारी आने को हुई तो ऐसा मुझे होश आया कि मुझे भी यह सब करना होगा और मैं फूल अभिषेक की हथेली में डालकर वहां से खिसकने लगी । अभिषेक ने हैरानी से पूछा कहाँ जा रही हूँ? रूपा का ही नहीं देखी । उससे मिलने जा रही है । किचन में कुछ और थे । पकवान बनाने में लगी थी । मैंने पूछा की रूपा का है तो किसी से सही जवाब नहीं मिला । मैं बाहर आ गई । पूर्णिमा के चांद की रोशनी बिखरी हुई थी । पार्टी का इंतजाम बाहर ही पोर्टिको में था । लेटे क्लास सजे रखे थे । होने में जोला भी लगा था । मैं झूले पर बैठकर चार निहारने लगी । मुझे ध्यान आया कैसे अगस्त के महीने में ही बारिश पडती है । बचपन में मैं चीज के मेले में जाया करती थी । घर पर भी झोला लगा रहता था । मैं और मेरी सहेली खूब जो ले पर बैठकर महल फिल्म का वह गाना गाया करते थे । आएगा आएगा आने वाला मुझे कोई लोग जीत याद नहीं हमारा बचपन फिल्मी धुनों को गाते ही बीत गया संस्कृति का ऐसा एक एक रन क्या सराहनीय हरमुख पर वही जीत बहुत बाद में जाकर में ठुमरी और दादरा की खूबसूरती से वाकिफ हो सकती हैं । चांदी से लाए गए अंधेरे में मुझे किसी की सिसकियों की आवाज सुनाई भी । मैं चौकी है इस सचमुच की ही सिर्फ क्या थी मैंने नजरे घुमाई । पोर्टिको के झूले के पीछे कोने में कुर्सी पर रूपा बैठी सिसक रही थी । मैं हैरान उसके पास पहुंची । उसने आंखें मलते हुए एक बार मुझे उठाकर मुझे देखा और फिर दोबारा आंखों पर बाहर रखे और भी जोर से सिसकी बढने लगी आप यहाँ अकेली क्यों बैठे? रूपाजी इस तरह से क्यों रो रही है? क्या हो गया? पूजा में भी नहीं आई । सब लोग तो अंदर पूजा कर रहे हैं । आप देखती तो कैसे? सब लोग बाबा जी की अर्चना कर रहे थे । ऐसे देखती ऐसे आती या कोई इन गंदे कपडों के साथ पूजा में बैठ सकता है । यह कहकर रूपा और जोर से रोने लगी । मेरी समझ में अभी ठीक से कुछ नहीं आया था । मैंने कहा लेकिन क्या बात हुई? होनी चाहती इस माधव के बच्चे को तीन दिन से कह रखा था मेरा नया वाला साडी ब्लाउज प्राइस करके रखते हैं दिन भर तो आज बाबा जी तो मैं नहीं इसमें ही काम था । शाम को घर लौटकर तैयार होने लगी तो देखा साढे ब्लाॅस्ट नहीं । वह एक क्या भरने लगी? मैंने कहा मानव से तभी प्रेस करवा लेने थे । ॅ वक्त कहाँ था? आगे ही थोडी देर से पहुंचे कर मैंने खुद पहले कपडो में से यह सूट निकाल का प्रयास किया और वहीं पहन कर आई हूँ । मुझे रूपा की बात भी अजीब लगी थी । कितने तो कपडे हैं इसके पास अगर नहीं साडी प्रेस नहीं थी तो क्या कोई और भी साडी ॅ नहीं था । तेरे से कहा और कोई साडी पहन लेती कहाँ? दूसरी वाली का ब्लाउज भी प्रेस नहीं था । पर जब मैंने इस से तीन दिन पहले ही से ही कह रखा था तो इसमें क्या? क्यों नहीं आज के दिन के लिए आज इतना बडा त्यौहार है और देखो में कैसे कपडों में हूँ । सब लोग इतना सच दर्ज कराए आज का दिन तो होता ही समझने के लिए इस कमीनी को तो मैंने नया सूट ले कर दिया था । देखो तो नया सूट पहने हैं और मैं असु रागनी फिर छूट गई । इतने में एक औरत ने आकर पोर्टिको की बत्ती जला दी । कुछ और रोड से खाना लेकर रखने लगी । रोशनी में हम पर नजर पडते ही एक महिला बोली रुपए हाँ अंदर जाइए आपकी और बाबा जी के लिए अंदर ही मेज पर खाना लगा है तो रूपा रूपा बहन से रूपा माँ बन गई है । आज से गुरुपत्नी के रूप में रूपा का और और भी ऊंचा चढ गया है । लेकिन रूपा उठी नहीं सकती रही । कुछ और सोने आकर उसे घेर लिया और मनाने लगी । मुझे हटना पडा । मैं अंदर आ गई । पूजन खत्म हो चुका था । किचन में ही मेज पर खास खास पकवान छोटे डांगो में बाबा और रूपा के लिए रखे जा रहे थे । विभूति ने उस मैच का जिम्मा खुदपर लिया हुआ था । मदद करने वाली औरते बाहर पोर्टिको में बडे बडे बर्तनों में गुजराती कडी अंदर यू पूरी और चावल रख रही थी । थोडी देर में और रूपा को मनाकर अंदर ले आई । मेज पर तीन प्लेटें लगी थी बाबा जी रुपए और माधव के लिए बाबा जी और माधव बैठ गए थे । रूपा आते ही चिल्लाई अगर यहाँ उल्लू इसमें इस पर बैठकर हमारे साथ खाना खायेगा तो मैं बिल्कुल नहीं होंगी । बाबा जी ने रूपा को शांत करने के लिए कहा । चलो ज्यादा बोलो नहीं, शांति से बैठ कर खाना खा हूँ । बाबा जी के कहने से रूपा बैठ हो गई पर उसका रोना फिर से चालू हो गया । रूपा कहने लगी, बोलो मैंने किसी का कुछ बिगाडा है फिर यह मुझे क्यों तंग करता है । इतना बडा त्यौहार और मैं इन कपडों में मुझे वहाँ अपना खडा रहना ठीक नहीं लगा । रसोई में पहले से ही काफी सारी और काम में लगी थी । जयंत भी बाहर था । अभिषेक और मैं उससे बातें करने लगे । वहाँ हमें अपने डायमंड बिजनेस के बारे में बताता रहा । फिर बोला अब तो बाबा जी का आशीर्वाद है तो खूब मुनाफा होगा । मुझे उसकी बात को इस तरह कहना कुछ अजीब लगा पर मैंने खुद को समझाया या उसके विश्वास की बात है । मुझे सिंह निकल नहीं होना चाहिए किसी विश्वास के बूते पर उसने इतनी बडी पूजा कराइए । कितने लोगों को बोझ क्या है? खाना खत्म करके हम बैठक में लौटे तो एक रूम में रूपा की ऊंची चिल्लाती आवाज सुनाई भी पहले दूर से देखा । कमरे में बाबा जी माधव रुपए और विभूति थे । रूपा कह रही थी बाबा जी अब आप इसका फैसला कीजिए । जब मैंने तीन दिन पहले इसे साडी प्रेस करने को कहा था तो उसने क्यों नहीं की? बाबा जी की आवाज सुनाई दी, देखो रूपा हम तुम दोनों के झगडे में नहीं पडना चाहते हैं । लेकिन मैं देख रहा हूँ । आज कल हर वक्त उन दोनों में तनाव रहता है तो हमें इस बारे में कुछ करना ही होगा । बोलो माधव रूपा ने तो मैं कहा था साडी प्रेस करने को माधव चुप था, बोलो कहा था या नहीं? जी कहा था तो फिर क्यों नहीं थी ध्यान मेरा अब की रूपा बीच में बोल पडी पूछो इससे क्या काम करता है जो ध्यान नहीं रहा । सारा काम तो मैं खुद करती हूँ या बाबा जी के वक्त मदद कर देते हैं । एक भाई का काम नहीं करता । मजाल है कि अपने खाने के बर्तन तक उठा दे । इसको मालूम था कि गुरु पूर्णिमा का त्यौहार है । मैंने इसे नए कपडे ले दिए । कुछ पहले कपडों से निकालकर ये सूट प्रेस करके पहना । योग महिला सूट प्रेस करके पहनने वाला वाकया रूपा ने कम से कम दस बार दोहराया होगा और हर बार जम्मू से निकला तो सिसकियों के स्वर भी तार सप्तक में पहुंच जाते हैं । बाबा जी का दिल जरूर दहल गया होगा । फिर भी शांत आवाज बोले माधव, हम कभी अपनी पत्नी का साइड नहीं लेते हैं । हमको लडाई झगडा पसंद नहीं पर तुम तो मानो या गलती तुम्हारी है जैसे जमीन में करते हुए मानव ने हल्का सा यहाँ कहाँ? तब तुम रूप आपसे माफी मांग । लोग माधव चुप रहा । उसे लगा रूपा के सामने बाबा जी उसे छोटा कर रहे हैं । बडी बेचारगी से उसने बाबा जी को देखा । लेकिन बाबा जी उसकी नजर की परवाह नहीं करके बोलेगा । देखो जब गलती करते हैं तो माफी मांग लेते हैं । क्या है? हम से गलती होती है तो हम माफी नहीं मांगते । माधव की लाचारी अभी भी चुप्पी से रखी थी । मैं बाबा जी को ऐसे देख रहा था कि जैसे वे वहीं बाबा जी हैं जिन्होंने जानता है या कोई और है । चंद कमरे की छुट्टी तोडने की खातिर विभूति बोली रहने दीजिए ना आरोपों गलती सबसे होती है । हमें सेवा का मौका दीजिए ना इससे घर भेज दीजिए । मुझे अपने पास रख लीजिए । मैं आपका सारा काम करते होंगे । मुझे सेवा का मौका देंगे । मेरे तो बाहर ही खुल जाएंगे । कितनी देर में माधव को खुद को तैयार कर लिया । धीरे से बोला ठीक है माफी मांगता हूं । रूपा को जैसे आग लग गयी ऐसे मानते हैं । काफी तरह समूह हिला दिया मानता हूँ । ऐसे नहीं होती माफी । जब तक मन में अफसोस में हो, दिल से माफी मांगी तो ऐसी माफी का मतलब ही क्या देखो । बाबा जी ऐसे मांगना है माफी इसके मन में दुखी नहीं है । इसमें मुझे कितना दुख दिया है मुझे नहीं चाहिए । ऊपर की माफी इससे कहूँ कि मेरी आंखों से दूर चला जायेगा । यहाँ से हट जाए । मैं इसे एक पल के लिए भी नहीं कह सकती । माधव उठकर कमरे से बाहर आ गया । मैं और अभिषेक बाबा जी और रूपा को नमस्कार कर घर लौटना चाहते थे । मैं अंदर गई विभूति वहीं सेवा का मौका देने वाली बात दोहरा रही थी । मैंने रूपा को छोटा सा परिवार धन किया और बाहर आ गई । कुछ दिन बाद रूपा का फोन आया अमेजॅन चाहिए मैं मानव उसको तो हमने अगले दिन ही हवाई जहाज पर चढा दिया । मैं तो बहुत निकम्मा था । कोई अमेरिकी सेक्रेटरी मिलेगा । मैंने मन में कहा ऐसा अमेरिकी सेक्रेटरी आपको कहाँ से मिलेगा जो आपके कपडे भी प्रयास करें और आपकी लाॅ दूसरे । मुझे यह अंदाजा नहीं था कि वह कुछ तन्खा वगैरह भी देंगे या नहीं । भक्ति बहु के जाल में यदि कोई खुद में खुद आकर फंस जाए तो और बात है वरना नौकरी की तन्खा और दूसरे पक्ष की एवज में यह तो कह नहीं सकते कि सारी सेवाओं के वेतन के रूप में आपको बाबा जी की कृपा मिलेगी । चलिए बाबा जी की कृपा के नाम से शायद कोई धार्मिक किस्म का आदमी फंस भी जाए । पर साथ में अगर उसे पता लग जाए की रूपा कपडे को भी पारिश्रमिक के रूप में स्वीकारना होगा तो भला कौन बेवकूफ फटकेगा इनके पास और ये क्यों किसी के ऐसे दुर्भाग्य की जिम्मेदार बनूँ ऊपर से मैंने कहा पता कर दूंगी यो मिलना मुश्किल होगा लेकिन क्या कोई अमेरिकी ही चाहिए या की हिंदुस्तानी चलेगा आजकल बाबा जी के पास बडे अधिकारी भी आने लगे हैं । बेहतर होगा अमेरिकी हो क्योंकि उसे बातचीत का सलीका तो होगा । पढना मुझे खुद सारे फोन सुनने पडते हैं । मैं तो तंग आ गई हूँ । फोन सुन सुनकर सारा दिन बोल बोल कर मेरा सर फट जाता है हूँ । तो अब रूपा को अंदाजा हुआ माधव के कामों का । वह भी तो सारा दिन फोन पर लगा रहता था । पर तब रूपा जी को फोन सुनना करना कोई काम ही नहीं लगता था । किसी हिंदुस्तानी का मिलना ज्यादा आसान होगा । कहते हुए मेरे दिमाग में भी हिंदुस्तानी थे जो भारत से अपनी किस्मत आजमाने के चक्कर में यहाँ धक्के खा रहे होते हैं । ऐसे किसी से अक्सर टक्कर भी हो जाती है उसके लिए यह सौदा इतना बुरा नहीं होगा । रहने का आश्रय, नए नए लोगों से मिलना, जुलना बेहतर भविष्य की संभावना और ना यहाँ टीका हुआ आदमी अपने काम धंधे छोडकर बाबा जी की नौकरी में भला क्या पाएगा? पर फिर पता लगा कि बाबा जी ऐसे किसी गैरकानूनी प्रवासी को अपने इर्द गिर्द नहीं फटकने देना चाहते हैं । बाबा जी और रूपा के लिए सेक्रेटरी तो मैं ढूंढ नहीं पाई । तो अगली बार जब मैं और अभिषेक उनसे मिलने गए तो मुझे वहाँ सब कुछ एक बहुत संगठित संस्था की तरह लगा था । हर काम का एक ढर्रा बन चुका था । सब बडे सुचारु रूप से काम पर लगे हुए थे । किचन में ही प्रेस करने की मेज लगी थी । विभूति रूपा के ब्लाउज प्रेस कर रही थी । दो हफ्ते खाना गर्म कर रही थी । एक औरत बर्तन हो रही थी । रूपा किचन के बीचोंबीच कुर्सी पर बैठी बालों में तेल वाली करवाती सबसे गप्पे लडा रही थी । किचन की अलमारियों में दालों, मसालों के मार तमान जो कहते थे, किसी ने उनका इस्तेमाल किया नहीं लगता था । रूपा से पूछा तो आपने खाना बनाया

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