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इतर भाग 05 in Hindi

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310 Listens
AuthorSaransh Broadways
Itar an Audio Book based on pull ton between scientific truth and spiritual belief. writer: सुषम बेदी Voiceover Artist : Kaushal Kishore Author : Susham Bedi
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भाग पांच इतना डर गई थी तुम मुझे तो बताया होता, बजे से मिलना ही बंद कर देंगे । कोई जबरदस्ती तो कर नहीं आराम से मैं कह दूंगा मैंने खुद ही बात करनी है । नहीं, ऐसी बात नहीं है । अभी चलने दो, कितने बच्चे तो नहीं हम किसी की बातों में आ जाए । पढे लिखे समझदार एडल्ट हैं । अभी उन्हें इलाज का पूरा मौका तो देना ठीक है । मैं भी यही सोचता हूँ इलाज तो करवाले पढना पछतावा होगा और हमारा कौनसा दम लग रहा है । जो श्रद्धा होगी दे देंगे । बाबा जी पैसे तो लेते नहीं, किसी और तरीके से देने होंगे, पूछूंगा कुछ भेज दे सकते हैं । मेनका ट्रस्ट बनाने में भी मदद करूंगा तो तुम्हारा मुफ्त इलाज कर रहा है । उसके लिए मुझे भी तो कुछ करना चाहिए । पर अभी तो इलाज भी हो रहा है । ठीक तो नहीं हुई तो तो हो ही होगी । बस वक्त की बात है तुम्हें सच में ऐसा लगता है । मुझे लगता है जो आदमी इतने विश्वास के साथ कहे कि मैं तो मैं ठीक कर देगा, उसमें जरूर कुछ ताकत होगी । वरना वह ऐसा कहे गए क्योंकि उनकी आप विश्वास की तो मैं डाल देती हूँ । किसी और को होना हूँ । उन्हें तो सच में भरोसा है कि उनकी पूजा का असर होता है । कल हीलिंग सेशन के वक्त मुझसे कह रहे थे मुझे इतना ठीक कर देंगे की ग्लास में चीनी गोल गोल करती होंगी तब भी शुगर नहीं बढेगी । मुझे लगता है कि वे अच्छे इंसान है, अच्छी सकती है । उनमें कल शाम को देखा था । वहाँ पानी का क्लास उससे कहा की एक लाख पानी भर लूँ और तुम्हारा घर पवित्र करूंगा । मैं ले आया । उन्होंने कुछ एक सीटें सब कमरों में छिडक । बाकी पानी मुझे वापस दे दिया । मैंने देखा थोडी देर बाद वह दूध बन गया । जैसी बता रहा था कि उस की दुकान पर घाटा पड रहा था तो बाबा जी ने कहा कि कोई प्रेतात्मा परेशान कर रही है उस की दुकान पर ऐसे ही पानी का एक ग्लास एक कोने में कुछ देर के लिए रख बाहर के इससे मैं आ गए । थोडी देर बाद देखा तो पानी में इंसानी आकार का खून जमा हुआ था । बाबा जी ने बताया कि उस प्रेतात्मा को उन्होंने पकड लिया है । उस क्लास में अब जैसी को कोई समस्या नहीं होगी । ऍम मुझे सब नहीं मालूम था । तुम्हें कब बताया जैसी नहीं तो कल ही तो मालूम है क्या हो रहा है? तुम तो मजे कर होगी और मुझे धंधे पर जाना है । हाँ, लिखने का काम तो मजा करना ही होता है ना? ऍफ हो जाओ । मुझे भी नींद आ जाएगी तो मैं आप खुली तो अभिषेक का चेहरा बहुत अच्छा लगा । कह रहा था । मुझे रात भर ठीक से नींद नहीं आई । सपने से आते रहे । मुझे भी सपना आया था । मुझे तो बहुत डरावना सपना आया था । मुझे लगा कि मैंने बस तुम को खो दिया । बडा अजीब सा माहौल था । वो पहले खंडर थे जिनमें से दोस्ती हुई । आवाज सुनाई दे रही हैं । टेलीविजन के स्क्रीन जैसे साॅफ्ट की चमकने वाले पर्दे पर मैं तुम्हारा चेहरा देखता हूँ । फिर तो उसे ऐसा गायब हो जाती हूँ । मैं तो मैं सोचता हूँ लेकिन तुम मुझे नहीं मिलती । फिर में हारकर हुआ हूँ हूँ । मुझे लगता है कि तुम हमेशा के लिए कहीं हो गई हो । या तो बिल्कुल किसी हिंदी फिल्म का सीन तोहरा रहे हो तो महल या मधुमती या वह कौन थी? किस्म की फिल्में और उनके खण्डरों में बोलते हुए लता मंगेशकर की आवाज के गाने माई गॉड मेरी तो ऐसी चोट आई थी । लेकिन अभिषेक सच कहे तो हमारा रूम हो या मृतात्माओं का अनुभव हिंदी फिल्मों तक ही तो सीमित है । तभी तुम्हारे मन के डर उसी फाॅर तुम्हारे मुकाबले में यू मेरा सपना तो बहुत सीधा साधा है और उसकी व्याख्या भी प्राइज वगैरह पहले कर चुके हैं । मैंने तो देखा कि मेरे चारों ओर बाढ का पानी चढाया है सडक पर लॉन में दूर दूर जहाँ तक भी ने कहा जाती है बस पानी ही पानी यानी कि यू फोर सी ट्यूबल हो सकता है । कितना तो घबराए रहे कल रात मेरे ख्याल से ये अच्छा नहीं होगा । हमारे लिए काट दो । बाबा जी का पता रात को जब मैंने कहा तो तुमने जवाब दिया कि उन्हें इलाज का मौका देते हैं । चलो ठीक है । मैंने महसूस किया कि जब से ये सिलसिला शुरू हुआ, हम दोनों में एक बाबा जी से दूर जाना चाहता है तो दूसरा उसे रोक लेता है । कहानी चलती रहती है । मैं कभी भी धार्मिक प्रवृत्ति कि नहीं रही अभी भी नहीं है । जबकि अपने माँ बाप को मैंने हर दिन कोटरी में बने मंदिर में पाठ करके ही नास्ता खाते देखा है । कभी कभी मैं भी मंदिर वाली कोर्ट्नी में उनके साथ बैठ जाया करती थी । वहाँ के भजन सुनती, पिता की प्रार्थना और खुद उनके साथ आरती गाती थी । पर बडे होने पर मैंने धर्म को, खासकर धार्मिक कर्मकांड को फालतू मानकर अपनी जिंदगी से एकदम काट दिया था । पर शादी के वक्त वेदी पर बैठ के ही बरसों बात मंत्रोच्चारण किया था । अभिषेक के घर में तो पूजा पाठ का सिलसिला था ही नहीं । पिता, मार्क्सवादी, कम्युनिस्ट और माँ को भी उसी तरह डाला हुआ था । मैंने उनकी उम्र कि पंजाब में पहली औरत देखी थी, जो करवा चौथ का व्रत तक नहीं रखती थी, क्योंकि पति ने ऐसे कर्मकांडों की मना ही कर रखती थी । तब अपने से ज्यादा अभिषेक के धार्मिक भाव पर मुझे हैरानी होती थी । मैं कैसे बाबा जी की आध्यात्मिक शक्तियों पर विश्वास कर सकता है । इसे बचपन से मार्क्सवाद जैसे धर्मविरोधी मत का दूध पिलाया जा रहा था और अभिषेक में जहनी तौर पर वामपंथ में अमेरिका में रहते हुए भी पूरा भरोसा था, लेकिन अभिषेक में सच में मुझसे ज्यादा कहीं भक्ति बहुत था । उसे जब कभी ज्यादा परेशानियां, घबराहट होती तो मंदिर जाना चाहता था । वहाँ जाकर उसे सुकून मिलता है । मंदिर में रुपये भी डॉलर नोट जरूर चढाता । तिलक भी लगवाता और प्रसाद भी जरूर खाता हूँ, वरना उसे भगवान के अप्रसन्न होने का या अनुष्ठान के अधूरे रहने का वहम बना रहा था । मैं उसके व्यक्तित्व के इस विरोधाभास को समझ नहीं पाती थी और धीरे धीरे मैंने इस संबंध में अपनी ही एक स्टोरी रच डाली थी । खासकर अभिषेक की माँ को कुछ जानने के बाद मैंने देखा तो पडोसियों के कीर्तन हवन में बडे उत्साह से जाती और पूजा गीत वगैरह गाती जबकि घर के अंदर भी ऐसा कुछ भी नहीं करती थी । यहाँ तक कि घर के अंदर किसी देवी देवताओं की तस्वीर तक नहीं थी । मैंने उनसे एक बार इस बारे में सवाल किया तो झिडककर बोली तू रहने दे ये नहीं मानते हैं तो क्या भगवान तो है उस लोग में पहुंचेंगी तो जवाब तो मुझको ही देना होगा । अब तो ये नहीं आएंगे बचाने अपना तर्क वितर्क तो कर लेंगे और वैसे मेरी समझ के बारह यहाँ तक की सासु जी ने मुझे करवा चौथ का व्रत रखने के लिए भी कहा था । ये और बात थी कि मैं खुद इन संस्थानों में विश्वास नहीं रखती थी तो मैं जोर नहीं दे सकें । अभिषेक में माँ और आपका विश्वास विश्वास यानि माँ की धर्म भी रोता और पिता का वैज्ञानिक समाजवाद फॅमिली मिल गया था और भीतर कहीं जाकर अलग अलग सांसों में समा गया था । जब उसे भी और चिंता सताती तो वह सहमा हुआ, जमी हुई धर्म भीरूता और ईश्वरीय विश्वास के गलकर ऊपर तैराते । जबकि आम हालत में उसका वैज्ञानिक, डॉक्टर, मन और दिमाग पिछले सोने सा निथरा रहा था । एकदम खाली इंसानियत में विश्वास । तब भगवान की बात करने वाले उससे बेहद बोरिंग किस्म के लगते हैं । किसी हवन कीर्तन का आमंत्रण बिना सोचे अस्वीकार कर दिया जाता है तो मैं कहता हूँ कि धर्म ने फायदे की बजाय समाज का नुकसान ज्यादा किया है । लेकिन अब अब क्या हो गया अभिषेक के भीतर और अभिषेक ही क्यों? मैं खुद भी तो समझ नहीं पा रही थी कि हम पूरा विश्वास नहीं होते हुए भी इस सबको अपने आपसे कार्ड क्यों नहीं पा रहे थे? हमारी जिंदगी का नॉर्मल ढर्रा बेहद उलट पुलट हो रहा था । दिन रात बाबा जी की ही बातें घर पर दोस्तों से जो कोई मिलता, उन्हीं की बात पूछता हूँ । टाइम मकसद सबका अलग अलग होता है । कुछ उनसे मिलना चाहते कुछ मेरा और अभिषेक का मजाक उडाते हैं । मुझे बुरा लगता है और मैं बाबाजी के खरेपन को जस्टिफाई करने लगती हैं । मैं इन दिनों अपने खाने पीने, व्यायाम और दवाई का पूरा ध्यान रख रही थी जिससे मेरी शुगर पूरे नियंत्रन में थी । लेकिन लोगों की आंख में उपहास का एहसास होते ही मैं डालती हूँ कुछ भी हो मेरी शुगर तो एकदम नॉर्मल है । कुछ तो असर होगा ही । बाबा जी का पढना आज तक तो एक सौ आठ आई नहीं थी । यह बात किसी के घर पर पार्टी में हो रही थी । कुछ ही देर में पूरे कमरे में खबर पहल गई कि बाबा जी तो बडे पहुंचे हुए ये अचानक पूरी पार्टी का केंद्र बन गई थी । सवालों के प्रचार होती रही । कौन है? कहाँ से आए हैं, क्या करते हैं या न्यूयॉर्क में कैसे मैं और अभिषेक कैसे मिले? क्या फीस लेते हैं? अगर बीमार नहीं हो तो भी मिलेंगे क्या? भविष्य बताते हैं कहाँ रहते हैं? कहाँ है आश्रम? कुछ देर बाद एक डॉक्टर मेरे पास आया और पूरी छानबीन करता हुआ सवाल पूछने लगा । वो लोग तुम्हारी शुगर एकदम नॉर्मल लेवल पर आ गई । हाँ आज सुबह एक सौ आठ थी दवाई ले रही हूँ । हाँ ऍफ का तब क्या क्या मतलब इसका तब तो इन्सुलिन से कंट्रोल में आई है ना । बाबा जी के प्रताप से और पहले तो इन्सुलिन के साथ ही बडी रहती थी । मैं तो खाने पीने के हिसाब से ऊपर नीचे हो सकती है । तभी मैं हैरान रह गया । ऐसे बीमारी ठीक होने लगी तो डॉक्टरी का पेशा ही खत्म हो जाएगा । मैंने उत्साह से कहा यह बात तो बाबा जी भी कहते हैं । कहते हैं कि वे बिना हजार के इस्तेमाल किए मंत्र के बल पर बडे बडे ऑपरेशन कर सकते हैं । डॉक्टर अपने पेशे के खतरे की वजह से उन्हें करने नहीं देंगे । वे तो यहाँ के डॉक्टर को अपना तरीका सिखाना भी चाहते हैं । दूसरी उनकी बंद किया भी है कि इलाज मुफ्त होना चाहिए । जबकि यहाँ के डॉक्टर तो कोई भी विद्या पैसा कमाने या कमाई बढाने के लिए ही सीखेंगे । अभिषेक क्यों नहीं सीख लेता । उसका सर्जरी में इंटरेस्ट नहीं है । सर्जरी नहीं तो दूसरा इलाज सीख ले । मैं भी रुका है । मेरी डायबिटीज के पूर्व ठीक होने का इंतजार कर रहा है । उसके बाद सीट भी सकता है । तब तक तो ठीक करने का वादा किया है । पंद्रह सेशन हो चुके हैं, पंद्रह और बाकी है करते क्या? ऍम कुछ ज्यादा नहीं फलों से चरणामृत बनाकर पिला देते हैं । तिलक लगाना होता है तो उसे कुछ झाडू भी करते हैं । अगली बार देसी घी लाने को बोला है । देखो क्या करते हैं उसका? और तुम सोचती हूँ इस जादू टोने से तो ठीक हो जाओगे । शायद कोशिश करने में हर्ज नहीं । मैं मिल सकता हूँ जरूर अगले बुद्ध को घर पर आ जाना । छह बजे अभिषेक कमरे के दूसरे सिरे पर अपने इर्द गिर्द समूह इकट्ठा किए बैठा था । उसे भी इस तरह के सवालों का जवाब देना था । वह तो मुझ से भी ज्यादा जोश के साथ बाबा जी की हिमायत कर रहा था । घर लौटते हुए गाडी में मुझसे कहने लगा ऍफ मनी, मैं तो ऐसा कुछ करूंगा नहीं, पर उस साले टंडन के मूड में तो पानी आ रहा था । मैं कुछ समझी नहीं । अब देखो कमरे में जितने भी लोग थे, सभी बाबा जी में दिलचस्पी ले रहे थे । उनसे मिलना भी चाहते थे । जानती हो ये लोग वैसे चाहे धर्म और गुरु या धार्मिक संस्थाओं पर कितना भी कीचड उछालें पीकर से जिंदगी का डर, समस्याएँ, चिंताएं उनको भी उतना ही सताती और कमजोर कर देती है, जितना कि मुझे तो में प्रॉब्लम किस के घर में नहीं होता हूँ । प्रॉब्लम होती है, लेकिन बाबा जी का विश्वास की बात पहले तुम मेरी पूरी बात सुन लोग मैं यह नहीं कह रहा कि बाबा जी किसी को तंदुरुस्त कर सकते हैं या नहीं । पर पक्के तौर पर बाबा जी इन लोगों को बडी ही नायाब चीज देते हैं और वह उम्मीद उम्मीद की तो कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती है, जो चाहे कीमत लगा लीजिए । बाबाजी लोगों को ये उम्मीद देते हैं कि वे उनकी कम बना देंगे और बदले में वे उस आदमी से कुछ भी करा सकते हैं । इतनी पक्की उस की उम्मीद होगी, उतना ही ज्यादा बाबा जी का काम करेगा और आम आदमी के बस में होता भी चाहे तो सेवा करेगा या धन देगा । बोलो मत, ये इतने बडे बडे मंदिर गुरूद्वारे तब उम्मीद के व्यापार पर ही तो चलते हैं । तो हमें उम्मीद चाहे कैसी भी हो, चाहे धनवान बनने की, बच्चा पाने की, दुश्मन को हराने की, प्रेमी से मिलने की, क्लास में फर्स्ट आने की या कस्य छुटकारा की बाबा जी चाहे कहने को कहते रहे कि उन्हें पैसा नहीं चाहिए । पर आखिर उन का ये है जो रोज मर्रा का खर्चा है । यह भी तो कहीं से आता है । अगर लोग नहीं देंगे तो कहाँ से आएगा । बस बाबा जी कह देंगे आप मुझे नहीं तो उसको दीजिए पैसा । उन्होंने तो तुमको ट्रस्ट संभालने को कहा है कहाँ तो है पर यह काम आसान नहीं होगा । किसी वकील से बात करनी पडेगी, टैक्स का बखेडा पड सकता है और अभी तो मुझे साफ ही नहीं है कि उनकी प्लान्स क्या है । कहते थे तीन चार हफ्ते में लौट जाएंगे । अब तो तीन महीने से ऊपर हो गए । कोई जाने की बात तो की ही नहीं । चार ही है देखने का हो । कहते हैं अपने भक्तों का इलाज पूरा करके ही जाएंगे । एक इंसान के रूप में ये आदमी खराब और भरोसे वाला लगता है । दूसरों के दुख से हमदर्दी है । मैं अभी से कुछ नहीं कह सकते हैं पर उनसे मिलने में हमारा नुकसान भी किया है । बल्कि आज की पार्टी में मुझे ध्यान आया कि दरअसल सोशल पावर पानी में भी बाबाजी काफी मददगार हो सकते हैं । हर कोई तो उनसे मिलना चाहता है तो नहीं कुछ खास का लोगों को बुलाकर अपने कॉन्टेक्ट्स बढाया जाए । बाबा जी खुद भी सलाह दे रहे थे कि कुछ खास खास आदमियों को भी उनसे मिलवाओ जिससे ट्रस्ट भी कुछ बात बने और मेरा अपना कॉन्टेक्ट भी इस तरह बढेगा मुझे हंसी आ जाती है तुम्हारा मतलब कि तुम्हारा अपना पेशे समाज में जो इतना नाम है बाबा जी की बोते और बढ सकता है उसके लिए उल्टा कहो तो मान ले लूँ होगी । उलटा ही रहा कर दी ना तुम्हें पति परमेश्वर वाली बात है ज्यादा देखती चलो जिस स्पीड से इनके चेले बन रहे हैं कुछ दिनों में इनका महासम् बनने वाला है पर तुम तो ज्यादा इन मामलों में पडो नहीं । आजकल तुम्हारी प्रैक्टिस का भी नुकसान हो रहा है । जब तक बाबा जी बुला लेते हैं दवाई का तो काम चलता ही रहता है । ऐसे इंसान और मौके जिंदगी में कमी आती हैं । अभिषेक के जवाब पर मैं अचानक बढ गई । हिंदुस्तान की गली गली में घूमते ऐसे बाबा कोई बडे ज्ञानी ध्यानी तो है नहीं जो अपनी खुशकिस्मती का बखान करने लगी हूँ । मैं तो एक ही को मिला हूँ और उसने मुझे बहुत प्रभावित किया है और तुम अपने आप को डॉक्टर के लाते हो इसीलिए तो प्रभावित हूँ । इन चीजों का इलाज मैं नहीं कर सकता । उसे देख कर सकते हैं तो कोई प्रूफ है हो ही जाएगा । जो लोग कहते तो रहते हैं । उस दिन यूरोप से बच्चा नहीं आया था जिसकी जन्मजात मूडी टांगो को सीधा कर दिया । उन्होंने सुना है देखा तो नहीं और वह शैला नहीं कह रही थी । उसका इंसोमेनिया ठीक हो गया है । साइकलॉजिकल प्रॉब्लम होगी । उसकी मानसिक लोगों की बात और है । उनकी दवा दारू साधु लो बेहतर कर सकते हैं क्योंकि वहाँ रोगी की जरूरत ही आस्था, विश्वास, घर और उम्मीद जैसी चीजों की होती है । यहाँ भी तो फॅमिली होती है । कहते हैं कि विश्वास हो तो आदमी ठीक भी हो जाता है । पर मुझे उल्टी बात सही लगती है । यानी कि आप मान लेते हैं कि आप ठीक हो रहे हैं । तब आप चाहे कितना भी बीमार हो जाए, अपने आप को ठीक ही पाते हैं । विश्वास अपने आप में बडी ठोस चीज है । बुरी से बुरी हालत में टिकाए रखता है । मुझे लगता है मैं कभी भी ठीक नहीं होंगे क्योंकि मेरा तो विश्वास ही नहीं जमता । अगर बाबाजी लोगों की बीमारियाँ ठीक कर सकने का दावा करते हैं तो बताऊँ उन्हें इसमें क्या फायदा है । आखिर ऊपर ऊपर से देखो तो तुम्हारी बात ही सही लगती है । पर वे तो रोका ही बनना चाहते हैं । लेकिन हमारा यह जो हिंदुस्तानी सिस्टर है ना पैसे नहीं लेने का, यह देने वाले के ही फायदे के लिए बना है क्योंकि इससे देने वाला पैसे से कहीं बडी चीज अपनी सेवाओं की कीमत के रूप में मांग सकता है । देखते हैं इसी नियम से ही तो ग्राउंड में एक लाख का उठा मांग लिया था तुम जो उन्हें पचास पचास मील लेने के लिए छोडने जाते हो, घर पर पचास लोगों को बुलाकर उनसे मिलवाते हो । यह भी तो कीमत ही है । उधर जाने इस ट्रस्ट के लिए तो क्या क्या करना होगा? इधर एक बात और नोटिस लगा है । बाबा जी अपनी सेवाओं के लिए कुछ नहीं लेते हैं । लेकिन अगर आप उन्हें अवश्य देना चाहते हैं तो देवी को मिनट चढाइये उसमें क्या किसी का बन सकता है? पता नहीं और उस दिन रूपाजी हीरे का सेट और तीन बडी बडी हीरे की अंगूठियां खरीद कर लाई थी । कहाँ से आया इतना सारा पैसा? उसे आदमी कहता रहे हैं, कुछ नहीं चाहिए, कुछ नहीं चाहिए और बीवी जाकर हजार डॉलर की शॉपिंग कर डाले । उनका अपना पैसा होगा । सुना है रूपा का हिंदुस्तान में बिजनेस है तुम्हारा मतलब हिन्दुस्तान से इतने डॉलर लाए हैं । बाबा जी के बारे में ऐसा बहुत कुछ होगा जिसे हम नहीं जानते हैं । जानकर करना भी क्या है । हमें तो तुम्हारे ठीक होने से मतलब है कोई और रोकने लग जाए । आजकल हम बाबा जी से ऑफिस से रहते हैं । मुझे डर लगने लगा है जैसे की जिंदगी का ढंग ही नहीं बदल जाए । किसी और का रास्ता हमारा रास्ता ना बन जाए । अल्पना तुम तो इतनी घबराई सी लगती हो । तुम रुक जाना चाहती हो तो बेशक यही रोक लगा तो मैं जबरदस्ती नहीं करूंगा । मैं तब तक संभाल चुकी थी । बोली कोई नहीं अब चल पडी हूँ तो लक्ष्य तक तो जाउंगी । कबीर ने कहा है कि जिन खोजा तिन पाइयां, मैं भी शायद कुछ पानी जाऊँ । इसलिए खोज अभी जारी रखनी है ।

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