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आघात भाग - 15 in Hindi

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AuthorKavita Tyagi
इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय स्त्राी का प्रतिनिध्त्वि करती है । परिवार का प्रेम और विश्वास ही उसके सुख का आधर है परन्तु उसकी त्याग-तपस्यापूर्ण उदात्त प्रकृति तथा पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम ही उसके सुखी जीवन में अवरोध् बन जाता है । उसका स्वच्छन्दगामी पति उसकी त्याग-तपस्या और निष्ठा का तिरस्कार करके अन्यत्र विवाहेतर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति उदासीन हो जाता है ।नायिका को पति का स्वच्छन्द- दायित्व-विहीन आचरण स्वीकार्य नहीं है , फिर भी वह अपने वैवाहिक जीवन के पूर्वार्द्ध में सामाजिक संबंधों के महत्त्व और आर्थिक परावलम्बन का अनुभव करके तथा जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने संस्कारगत स्वभाव के कारण पति के साथ सामंजस्य करने के लिए स्वयं को विवश पाती है । Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Dr. Kavita Tyagi
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Transcript
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धीरे धीरे समय बीतता जा रहा था । दो वर्ष हो चुके थे किंतु अभी तक कोर्ट के माध्यम से पूजा को और उसके बच्चों को रणबीर की ओर से गुजारा भत्ता नहीं मिल पाया था । एक बार न्यायालय के द्वारा इस विषय में निर्णय दिया जा चुका था कि दो रणवीर ने उसमें ये आपत्ति करके उस निर्णय को रुकवा दिया था कि निर्णय के दिन तो बहस के समय कोर्ट में उपस् थित नहीं था । पूजा रोज रोज न्यायालय जाने में कठिनाई का अनुभव करती थी तो वहाँ जाकर अपने बहुमूल्य समय और धन का दुरुपयोग भी नहीं करना चाहती थी लेकिन अब वो वहाँ तक पहुंच चुकी थी । वहाँ से लौटना भी उसको उचित नहीं सोचता था तथा वह प्रत्येक निर्धारित तिथि को न्यायालय में उपस् थित होती थी । कोर्ट में केस लडते, लडते, पूजा और रनवीर को दो वर्ष हो चुके थे । तब वे दोनों कोर्ट कैंपस में आमने सामने होते थे । तब उन के बीच में परस्पर कटु संवाद या अप्रिय व्यहवार न होकर उनकी मूक वाणी में परस्पर सहयोग तथा सद्भाव व्यक्त होता था अथवा दोनों के बीच शांति का वातावरण बना रहता था । कोर्ट में बहस के समय भी उसमें से किसी ने कभी भी एक दूसरे के ऊपर छोटा कशी नहीं की । न्यायाधीश भी उनके इस रविवार से प्रभावित थे इसलिए बार बार उनके झगडे के कारण की तह में जाने का प्रयास करते थे । पूजा उनकी प्रत्येक प्रश्न के उत्तर में यही बता दी थी कि उसे अपने बच्चों की परवरिश करने के लिए अपने पति की स्मारकीय अनुसार न्यूनतम धन अवश्य चाहिए । वो ढंग जिस पर उसका और उसके बच्चों का कानूनी और सामाजिक अधिकार बनता है और रणवीर का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों के सफल उज्जवल भविष्य के लिए उस धन को खर्च करे परंतु वो ऐसा नहीं करता है । न्यायाधीश के यह पूछने पर कि यदि रणवीर अपने अर्जित धन को अपनी पत्नी तथा बच्चों के लिए खर्च नहीं करता है तो किसके लिए करता है और क्यों करता है? पूजा का उत्तर केवल इतना होता था कि इसका उत्तर स्वयं रणवीर ही दे सकते हैं । वो केवल इतना जानती है कि पिछले दो तीन वर्ष से वो अपने बच्चों के पालन पोषण, पढाई लिखाई का व्ययभार स्वयं मजदूरी करके तथा अपने निकट संबंधियों से रन लेकर उठाती रही है । इन दो वर्षों में प्रियांश बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर चुका था । उसने अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । वो अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी में प्रवेश लेकर इंजीनियरिंग की पढाई करना चाहता था । उसमें प्रवेश पाने के लिए वो एक वर्ष किसी अच्छे कोचिंग संस्थान में पढकर आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी करना चाहता था । आज तक कोर्ट में रणवीर के साथ पूजा का सामान्य हवा रहता था और रही बात चीत भी होती रहती थी । इसलिए उसने प्रियांश को निर्देश दिया कि वह अपने पिता को ये शुभ समाचार दे कि उसने बारहवीं कक्षा में अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । रियाज अपनी माँ की प्रत्येक आज्ञा का पालन करता था कि तू आज इससे माँ की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए कहा कि वो किसी भी दशा में अपने पिता से संपर्क नहीं करेगा । उसने पूजा के समक्ष अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहा कि यदि उसके पिता को बेटे के प्रति अपने दायित्व का अहसास नहीं है तो उसे भी पिता की आवश्यकता नहीं है । वो पिता का संभाल लिये बिना भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है । अपनी माँ को नकारात्मक उत्तर देते हुए उसके चेहरे पर अस्सी अपीडा के भाव उभर रहे थे कि उसके पिता ने उसके प्रति अपने दायित्व का निर्वाह किया होता तो आज ऐसी स्थिति उत्पन्न ना होती है । पूजा को अपने बेटे की प्रकृति का तथा उस समय उसके अंतस में उठने वाले तूफान का भली प्रकार आभास था । इसलिए अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने पर उसने प्रियांश पर नातो क्रोधी क्या नहीं उस पर पिता से संपर्क करने के लिए किसी प्रकार दबाव बनाया । परंतु दोनों बच्चों की पालन पोषण और पढाई का व्यय भार उठाने के पश्चात अभी पूजा के पास इतनी बचत नहीं हो पाई थी कि प्रियांश को किसी अच्छे स्तर के कोचिंग सेंटर में भेजकर आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी करा सके । अपनी इस समस्या के समाधान स्वरूप पूजा चाहती थी प्रियांशु की कोचिंग के लिए रणवीर से पैसा मिल जाएगा । अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पूजा ने स्वयं रणवीर को प्रियांश का परीक्षा परिणाम उसके कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने का शुभ समाचार देने का निश्चय किया ताकि वो प्रियांश की आगे की पढाई के विषय में रणवीर से चर्चा कर सके । एक बार चर्चा आरंभ करने के पश्चात प्याज के लक्ष्य के विषय में बताकर रणवीर से ये निवेदन में संकोच कर सकती थी कि उसके पास कोचिंग कराने के लिए पर्याप्त धन नहीं है । पूजा को आशा थी कि बेटे द्वारा प्रथम स्थान प्राप्त करने की सूचना से रणवीर उसकी कोचिंग क्लास इसमें सहयोग अवश्य करेगा । अपनी इस आशा और विश्वास से प्रेरित होकर पूजा ने रनवीर के मोबाइल पर संपर्क किया । हेलो हाँ! बोलो क्या बात है । रणवीर ने रूखे स्वर में पूछा आज बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ है । आपको ज्ञात है नहीं । रणवीर का स्वर अभी भी रोखा था । प्रियांश से अपने परीक्षा परिणाम अभी अभी देखा है । बहुत प्रसन्न है आज प्रियांशु आप भी सुनेंगे तो फूले नहीं समाएंगे । अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । आपकी बेटे नहीं ठीक है । प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो करता रहे । मेरी बना से आपको प्रसन्नता नहीं हुई । बेटे का इतना अच्छा परिणाम जानकर मुझे कोई फर्क नहीं पडता । किसी के अच्छे या बुरे परिणाम से ये कहकर रणवीर चुप हो गया । उसकी स्पॉट यानी से पूजा को आज साहस नहीं हुआ कि वह रियाज के भविष्य की योजना के विषय में उससे बात को आगे बढाएंगे । अच्छा एक्शन भर बाद उसने भी संपर्क काट दिया तो उनका संपर्क करते ही प्रियाज के वहाँ से कहा मैं तो पहले से ही जानता था । पापा इस शुभ समाचार को सुनकर कैसी प्रतिक्रिया देंगे । परंतु आप है कि बीस वर्ष तक उनके साथ रहकर भी उनके सुबह को नहीं समझ सकी । मैं तेरे पापा से संपर्क इसलिए नहीं किया था कि वह तेरे परीक्षा परिणाम को जानने के लिए उत्सुक थे । मैं उनसे इसलिए संपर्क करना अत्यावश्यक समझती थी कि वे तेरे कोचिंग फीस में कुछ सहयोग कर दें या कम से कम गुजारा भत्ता देने में तो कोई बाद ना डालें ताकि तेरी प्रवेश परीक्षा की तैयारी सुचारू ढंग से हो सके । मम्मी अब मेरी चिंता करना छोड दो । और हाँ, भविष्य में पापा से हमारे लिए किसी प्रकार की आशा करके कभी संपर्क मत करना । मैं अब इतना बडा हो चुका हूँ की अपनी पढाई के लिए ट्यूशन करके कमा सकता हूँ । समझे अब प्रियांशु के आपने स्थित को सिद्ध करने का प्रयास करते हुए मैं पर विशेष बल देकर कहा क्यों शिट करके तो अपने कोचिंग क्लास की फीस के लिए कमा सकता है लेकिन उसके बाद फिर इंजीनियरिंग की पढाई के इतनी बडी धनराशि का प्रबंध कहाँ से होगा इस विषय में भी सोचा है । कभी मैंने सब कुछ सोच लिया है । मैं कठोर परिश्रम करके तैयारी करूंगा । मुझे मेरे परीक्षण का फल मिलेगा । मेरी अच्छी रैंक आएगी तब मुझे कोई भी बैंक एजुकेशन लोन देने के लिए तैयार हो जाएगा । यदि आप वापस से सहायता मानती रही तो सहयोग के बजाय तनाव ही मिलेगा । तब मैं अपनी तैयारी अच्छी तरह से नहीं कर पाऊंगा । प्रियांश भी आत्मविश्वास और स्वाभिमान को देखकर पूजा का वह सारा तनाव दूर हो गया जो कुछ समय पूर्व रणवीर की बातों से अनुभव हो रहा था, को भी कब चाहती थी कि उसे रणवीर से प्रार्थना करनी पडेगी । अपने जीवन की स्वर्णिम आयु में वो अपने अस्तित्व को पति में विलीन करती रही थी । कभी मर्यादा वर्ष, कभी प्रेम वर्ष तो कभी मजबूरीवश । लेकिन आज प्रियांशु के उसको एहसास करा दिया था कि अब वो किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रार्थना करने के लिए विवश नहीं जो उसके प्रति सद्भावना रखता हूँ और उससे दूर भागता हूँ । स्वाभिमान के धनी और अपनी कथनी करने को समरूप रखने वाले प्रियांश ने अपने घर पर ही आठवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के लिए विद्यार्थियों को ट्यूशन पढाना आ रहे कर दिया और अपनी आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगा । सुधांशु ने भी अच्छे अंकों के साथ दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण जी थी । बडे भाई को कठोर परीक्षम करते देखकर वह इतना प्रेरित हुआ था कि उसने भी प्रथम कक्षा से सातवीं कक्षा तक के बच्चों को ट्यूशन पढाना आरंभ कर दिया । दोनों भाइयों को परीक्षण करके आत्मनिर्भर बनते हुए और आगे बढने के लिए कठोर परीक्षम और लगन से अध्ययन करते देखकर पूजा अत्यंत प्रसन्न थी । पूजा को इस बात का संतोष था कि पिता की नियंत्रन के अभाव में भी उसके दोनों बच्चों पर ईश्वर की ऐसी कृपा रही है कि वे परीक्षक करते हुए सिन मार्ग पर चलकर उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं । प्रियाज और सुधांशु को कठोर परिश्रम करते हुए एक वर्ष पूरा होने के पश्चात् वर्ष के अंत में उन्हें अपनी आशानुरूप फल प्राप्त हो गया । अपनी आशानुरूप सुधांशु ने ग्यारहवीं कक्षा में अपने विद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था और प्रियांशु से आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में अच्छे जाए प्राप्त करके अपनी प्रतिभा का परिचय लहरा दिया था । पे आज की सफलता से पूजा अत्यंत प्रसन्न थी । उसकी सुधांशु द्वारा मिठाई मंगवाकर अपने पडोसियों में पार्टी किन्तु ये शुभ समाचार रणवीर को देना किसी ने आवश्यक नहीं समझा । प्रियांशु सुधांशु ने निश्चय कर लिया था कि मैं अपने पिता को अपनी खुशियों में शामिल नहीं करेंगे । आपने निश्चित हो उन दोनों ने पूजा के समक्ष दोहराते हुए स्पष्ट किया था मम्मी जी हम ऐसे किसी भी व्यक्ति को ये शुभ समाचार नहीं देना चाहते हैं जिसको हमारी सफलता से कोई फर्क नहीं पडता हूँ । हमारी खुशियों में सम्मिलित होने का अधिकार केवल वही व्यक्ति रखता है जो हमें स्नेहा करता है, हमारी चिंता करता है और हमारे कष्टों को दूर करने का प्रयास करता है । दोनों बेटों के निर्णय के अनुरूप पूजा ने रणबीर को किसी प्रकार की कोई सूचना नहीं । यदि पी बेटों की मना करने के बावजूद भी रणवीर को प्रियांशु और सुधांशु की परीक्षा पर फल का शुभ समाचार दे सकती थी और माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए दोनों बेटों में से कोई भी उसे रोकने का प्रयास नहीं करता । लेकिन पूजा ने ऐसा नहीं किया । एक बार उसके मन में आया था कि दोनों बेटे तो अभी या भूत है । अनुभव के अभाव में अभी संबंधों के महत्व का ज्ञान नहीं है । सम्बन्धों का निर्वाह करना या पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह कितना आवश्यक है, इस बात का ये ऐसा नहीं है परन्तु अगले ही क्षण उसका मन ग्लानि से भर का वो सोचने लगी । आज बच्चों ने जो लक्ष्य प्राप्त किया है वो उनकी अपनी उपलब्धि हैं । इसमें रणबीर की प्रसन्नता है । ये अप्रसन्नता का प्रश्न ही कहां उठता है । जब इन बच्चों को पिता के संभाल की आवश्यकता थी तब वो इन के प्रति अपने कर्तव्यों से विमुख होकर छोडकर चला गया । अब यदि दोनों बेटों में अपने पिता के प्रति क्रोध है तो इसमें अनुचित ही किया है पैसे भी । रणबीर का विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता है कि वो वहाँ पर सबको प्रफुलित प्रसन्नचित देखकर सुख और प्रसन्नता का अनुभव करेगा । रणवीर के विषय में इस प्रकार की बातें सोचती सोचती पूजा को वर्शन स्मरण हुआ आया । जब उस लिए रणवीर को प्रियाज की बारहवीं कक्षा के परीक्षा परिणाम के विषय में सूचना दी थी कि उनके बेटे ने अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । तब रेंट वीनी बेटे का उत्साह वर्धन करने के स्थान पर उपेक्षा भाव प्रकट करते हुए कह दिया था उसे बेटे के प्रथम आने से कोई फर्क नहीं पडता है । आपके समय तक पूजा के अंतकरण में रणवीर को लेकर तर्क वितर्क चलते रहे । अंत में वो अपने मन को ये समझा कर शांत चित्त हो गई । अब बच्चे बडे हो गए हैं । उन्हें अपने विषय में निर्णय लेने का पूरा अधिकार है । उन्होंने जो किया है । अपने विचार से ठीक ही किया होगा । ऐसे अवसर पर मुझे उदास रहकर बच्चों की प्रसन्नता में अवरोधक नहीं बनना चाहिए क्योंकि बीडी उदासी देखकर बच्चे भी उदास हो जाएंगे । पूजा स्वयं को निर्दोष तथा बच्चों के व्यहवार का औचित्य सिद्ध करती हुई मुख पर प्रसन्नता का भाव लेकर बच्चों के पास गई । दोनों बच्चे अपने मित्रों के साथ मस्ती कर रहे थे । माँ को अपनी और आती हुई देखकर प्रियांशु और सुधांशु दोनों आगे बढे और माँ को भी अपने मित्रों के साथ मस्ती में शामिल कर लिया । कुछ दिनों में वहाँ पूजा को अनुभव होने लगा कि उसके बेटों और उनके मित्रों को माँ की उपस् थिति के कारण अनुशासन और शिष्टाचार वर्ष उस अवसर का पूरा आनंद लेने में सब कुछ हो रहा है । अच्छा पूजा वहाँ से आवश्यक कार्य का बहाना करके अपने कमरे में लौटाई । अपने कमरे में आकर पूजा हारी थी । किसी आंखे बंद करके लेट गयी । पिछले कई दिनों से वो अपने सिलाई उद्योग में इतनी अधिक व्यस्त थी कि आराम करने के लिए दिन में उसे जरा सा भी समय नहीं मिल पाता था । आज भी वो अपराहन चार बजे तक उद्योग में कार्य करती रही थी । चार बजे जब प्रयास के उसको अपने प्रवेश परीक्षा के परिणाम की शुभ सूचना दी थी । तभी उसने उद्योग से छुट्टी थी । थकावट के कारण पूजा के सिर में दर्द था और आंखों में नींद भी बडी हुई थी । लिखने के तुरंत पश्चात उसकी आंखों में नींद की एक मीठी सुखदायक झपकी आई थी । अभी उसके मन मस्तिष्क में चिंताजनक विचारों का एक जुआरा आया और उस की नींद को उडाकर अपनी शक्ति शाली अस्तित्व में आत्मसात कर लिया । फूटकर बैठ गई और गहरी चिंता के सागर में विचारों की तरंगों पर तैरने लगी । कुछ समय तक गंभीर चिंतन मनन की अवस्था में बैठी रही की तो शीघ्र ही वह उस चिंता से बाहर आ गई । जागृती होकर वह पुनः उस कमरे में गई, जहां उसके दोनों बेटे अपने मित्रों के साथ मौज मस्ती बनाते हुए नाच रहे थे, बातें कर रहे थे और हंसी ठिठोली कर रहे थे । पूजा ने अपने दोनों बेटों के निकट जाकर स्नेयर समझाते हुए उनसे कहा, बेटा बहुत मस्ती हो चुकी है । चलो अब चलकर आराम करो और कल क्या करना है, इस विषय में योजना बनाऊँ । मम्मी जी कर हमें कुछ नहीं करना है । कल हम आराम करेंगे और थोडी सी मौज मस्ती भी करेंगे । पूरे साल हमें परिश्रम किया है । एक दो दिन तो हमें हमारे फ्रेंड्स के साथ मस्ती करने दो । चालीस मम्मी जी हमारी फॅमिली, प्रियांश और सुधांशु दोनों एक स्वर में बाल हाथ दिखाते हुए विनम्रतापूर्वक बोले तो पूजा उनकी बाल हाथ से अभिभूत होकर पुनः अपने कमरे में आकर लेट गयी और पुना चिंता में डूबने उत्तर नहीं लगी । अपनी चिंता के अतिरिक्त इस समय पूजा की एक समस्या यह भी थी कि वो चिंता के कारण के विषय में अपने बेटों के साथ विचार विमर्श नहीं कर पाई थी । पूजा की चिंता का विषय उस समय इतना महत्वपूर्ण था कि उसने अत्यंत थकी हुई होने पर भी जाकर बच्चों की प्रतीक्षा करना आवश्यक समझा । उसकी चिंता का कारण प्याज का आई आई । टी । में प्रवेश कराने के लिए आवश्यक धनराशि का अभाव था । पूजा की प्रथामिकता अ प्रियांश के प्रवेश के लिए धन का प्रबंध करना था । वो इस समस्या के समाधान के विषय में निरंतर विचारमंथन कर रही थी । दूसरी ओर थोडी देर तक मस्ती करने के पश्चात प्रियांश को स्मरण हुआ की माँ उनसे कुछ कहना चाहती थी इसीलिए मस्ती बंद करके आराम करने के लिए कह रही थी । प्याज की आंखों में माँ का वह चिंता हो तुम चेहरा उतर आया और उस क्षण की समितियों की एक श्रृंखला से बनने लगी की माँ कल की कार्ययोजना के विषय में कुछ बातें करना चाहती थी । इन विचारों में तल्लीन प्रियांश की मुखमुद्रा गंभीर हो गई । उस लिए मस्ती करना बंद कर दिया और पूजा के पास आकर माँ के लिए विचारों में खोया हुआ पाया । अनुमान लगाया कि वे अवश्य ही किसी गंभीर समस्या में उलझी हुई हैं । अपने अनुमान के अनुसार प्रियांश ने पूजा से उस समस्या के बारे में पूछा जिसने उसे चिंतित किया हुआ था । बेटे की जिज्ञासा को शांत करते हुए पूजा ने प्रियांश को बताया कि वो उसकी इंजीनियरिंग की फीस के विषय में चिंतित है कि इतनी बडी धनराशि का प्रबंध इतने कम समय में कैसे हो सकेगा । प्रियांश भी थोडे से समय में एक बडी धनराशि के प्रबल के विषय में सोच कर क्षण भर के लिए चिंता में डूब गया । अगले ही क्षण जैसे उसे अचानक कोई पुरानी बात याद हो आई थी । उसने कहा मम्मी जी अब व्यर्थ में इतना चिंता कर रही हैं । मैंने आपको बताया था ना बीडी पीस के लिए बैंक से एजुकेशन लोन मिल जाएगा और वो भी कम समय में कम ब्याज पर । बैंक मेरी शिक्षा पूर्ण होने तक जरूरत भर लोन दे देगा और शिक्षा पूर्ण होने पर किश्तों पे उसको वापस कर दूंगा । आपको किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है । बैंक से लोन नहीं हो सका तो क्यों नहीं होगा? आईआईटी मेरा इतनी अच्छी जाएंग है और अब तक की सारी शिक्षा में मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया है । कोई भी बैंक मुझे लोन देने में अनाकानी नहीं करेगा । ईश्वर करे ऐसा ही हो । कल बैंक में जाकर मैंने जैसे मिलेंगे अब तो सो जाओ । मैं भी सोना चाहती हूँ । बहुत थक गयी हूँ । प्रियांशु के साथ अपनी चिंता को साझा करके पूजा स्वयं को हल्का सा अनुभव कर रही थी तो दिन भर के कार्य से थकी होने के कारण वो चिंता के भार से मुक्त होते ही हो गई और स्वप्न लोग में विचार नहीं लगी । होने से पहले प्रियांशी अपनी वाकपटुता से पूजा के चित्र में आशा का ऐसा संचार किया था कि रात भर उस को अपने लक्ष्य प्राप्ति में सफलता की ऐसे ऐसे सुखद सपने आते रहे कि प्राथम नींद से जागने पर वो प्रसन्नचित्त थी और स्वयं को तरोताजा अनुभव कर रही थी । अपनी आशावादी दृष्टिकोण के साथ पूजा प्राथना दस बजे प्रियांश को लेकर बैंक में पहुंच गई । उस लिए उसके मैनेजर के समक्ष प्रियांश के शैक्षिक प्रमाणपत्रों को प्रस्तुत करते हुए उसकी इतनी प्रशंसा की कि मैनेजर प्रियांश की और देखकर मुस्कुराने लगा और उत्साह वर्धन करते हुए बोला आत्महत्या से मैंने भी बारहवीं कक्षा में तुम्हारे विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । कल विद्यालय जाकर प्रतिवर्ष प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की सूची देखना मेरा नाम उन्नीस सौ अट्ठासी के टॉप लिस्ट में सबसे ऊपर मिलेगा । पूजा और प्रियांशु दोनों बैंक मैनेजर की आत्मीयतापूर्ण बडता शैली से बहुत प्रभावित हुए थे लेकिन उनके मस्तिष्क में एक प्रश्न अज्ञात भय के साथ बार बार उठ रहा था । लोन मिलेगा या नहीं एक और ये कृष्णा उन दोनों की बेचने को निरंतर बढाता जा रहा था तो दूसरी ओर बैंक मैनेजर पर इस पर परिचय को आगे बढाते हुए मैत्री स्तर पर आकर बातें करने लगा था और धीरे धीरे प्रियांश की पारिवारिक आर्थिक पृष्ठभूमि के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने लगा था । पूजा अपनी प्रकृति से सत्यनिष्ठ एक छल छद्म से कोसो दूर थी इसलिए उसके मैनेजर को अपनी स्थिति के विषय में सारी जानकारी सही और यथातथ्य दे दी थी को जानती थी कि सज्जन व्यक्ति ऊपर से जनता का जैसा प्रभाव पडता है वैसा कपटपूर्ण मेहवा रोका नहीं पडता है । इसके विपरीत पूजा के बगल में बैठा प्रयांशु माँ द्वारा अपने परिवार के विषय में सब कुछ सच बताने पर कुछ संकोच कर रहा था । वो बार बार पूजा को संकेत कर रहा था कि ऐसा न करें । अपनी संकेतों का पूजा पर कोई प्रभावना पडता देखकर प्रियांश ने अपने प्रयास को विराम दे दिया । थोडी देर तक उस शांत बैठा रहा और कुछ कहने का अवसर तलाशने लगा । अपनी माँ तथा बैंक मैनेजर के बीच होने वाली बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहा था और लोन मिलने की कितनी संभावना है इस विषय पर मैनेजर की दृष्टि का अध्ययन कर रहा था । तभी उनकी बातों से अपना संदर्भ जोडते हुए प्रियांश मैनेजर से बोला लोन मिल तो जाएगा मुझे तिहान तुम जैसे प्रतिभाशाली बच्चे को ऋण देने के लिए प्रत्येक बैंक तैयार हो जाएगा । यहाँ तो तुम तो मेरे गुरु भाई भी हो, तुम्हें लोन अवश्य मिलेगा । आप जैसे ग्राहकों को पाकर बैंक स्वयं को खुशकिस्मत ही समझेगा । ईमानदारी और अपने परिश्रम से आगे बडने वालों की सब जगह आवश्यकता है । मैनेजर ने पूजा की और देखते हुए अपने अंतिम शब्द बोले । इसके सकारात्मक उत्तर से प्रियांशु और पूजा की चिंता कम हो गई थी । प्रयास के समय तक बातचीत होने के पश्चात प्रबंधन ने पूजा प्रियांश को ऋण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र देने का निर्देश देकर भेज दिया । घर पर आकर प्रियांश के अपने सभी प्रमाणपत्रों की छाया प्रति करा के बैंक में देने के लिए तैयार करके रखी । अगले दिन वो प्रमाण पत्र को लेकर बैंक में गया । बैंक प्रबंधन टी प्रियांश के प्रमाणपत्र देखकर उसकी भूरी भूरी प्रशंसा की और यथाशीघ्र ऋण देने की प्रक्रिया पूरे करने का आश्वासन दिया । अभियान चने बैंक से लौटकर अपने और प्रबंधक के बीच में होने वाली वार्ता का वर्णन पूजा के समक्ष क्या तो प्रियांश की फीस के प्रति पूर्ण निश्चिंत हो गई । अब उसे अपने सौभाग्य पर पूर्ण विश्वास हो चला था । अपने बेटे की प्रवेश परीक्षा में बढिया अंक प्राप्ति के साथ ही उसकी शिक्षा के लिए बैंक से ऋण की स्वीकृति को वो आपने सौभाग्य का ही अंग मान रही थी । बैंक प्रबंधन के आश्वासन को बैंक से ऋण की स्वीकृति मानकर पूजा अपने सौभाग्य पर इतना आती हुई पूर्ति निश्चिंत थी किंतु एक दिन उसको ज्ञात हुआ कि प्रियांशु के शुल्क हेतु रिंग स्वीकृत होने में कुछ बाधा उपस्थित हो गई है । इस नकारत्मक सूचना से पूजा कोई झटका साला का प्रियांश के प्रवेश की तिथि निकट आ गई थी । इसीलिए वह भी चिंतित हो गया था । परंतु विवेकशील पूजा शीघ्र ही स्वस्थ उचित हो गई । उसने स्वयं आशा मई बनकर अपने बेटे को भी निराशा की ओर अग्रसर होने से बचाते हुए कहा बेटा की वो छोटी सी बाधा ही तो हैं । तुम्हारा रेन के लिए आवेदन अनसूचित तो नहीं हुआ है । नाम छोटी मोटी बाधाएं तो प्रत्येक कार्य में आती है । उन बाधाओं से डर कर अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटा जाता है । कल चलकर बैंक प्रबंधक से बात करेंगे । जो समस्या होगी उसका समाधान खोजेंगे । पूजा ने बेटे को निराशा से बचाने के लिए आशावाद का भरपूर उपदेश दिया था, परंतु स्वयं पूजा के मन में चिंता काम नहीं हो पा रही थी । माँ बेटी दोनों ही जानते थे कि पूजा ने जो भी कुछ कहा था उस सैद्धांतिक दृष्टि से पूरित उचित है । परंतु व्यवहारिक रूप से अभी तक ऋण मिलने की कोई गारंटी नहीं है । जो पूजा ने कहा था उसके अतिरिक्त उनके पास अन्य कोई उपाय भी तो नहीं था । अगले दिन पूजा और प्रियांशु बैंक में जाकर पुनः प्रबंधक से मिले । मैनेजर ने उन्हें बताया कि प्रियांश का ऋण का प्रस्ताव स्वीकृत होने में एक छोटी सी बाधा रही हैं इसलिए उन्हें बैंक के दूसरे बडे अधिकारी से मिलना पडेगा । पूजा और प्रियांशु दोनों ही उस समय निराश होकर अनुमान लगाने लगे कि वह झूठा बहाना करके उन्हें डालने का प्रयास कर रहा है अथवा रिश्वत लेना चाहता है । अपने इस अनुमान को शब्दों में डालते हुए पूजा ने कहा, सर, यदि कुछ लेने देने की बात हो तो हम से आप सीधे सीधे कर लीजिए । हमें इस विषय में अधिक ज्ञान नहीं है । किसी भी प्रकार मेरे बेटे की शिक्षा के लिए ऋण दे दीजिए । देखी पूजा जी मैं ईमानदार और सत्यनिष्ठ अधिकारी हूँ । मैं आपकी सहायता करना चाहता हूँ और कर रहा हूँ लेकिन आप मुझे इस प्रकार की घटियां बातें करेंगे तो मैं आपकी कोई सहायता नहीं करूंगा । बैंक प्रबंधक की अप्रसन्नता देखकर पूजा और अधिक दुखी हो गई । इस समय उसके दुःख का कारण केवल ऋण मिलने में आने वाली बाधा ही नहीं थी बल्कि वह दुखी थी कि उसकी बातों से बैंक प्रबंधक और अधिक नाराज हो गया था था । उसने तुरंत अपने शब्दों को वापस लेते हुए प्रबंधक से कहा, मैनेजर साहब मेरा उद्देश्य को कष्ट पहुंचाना नहीं था । मैं तो केवल ये चाहती हूँ मेरे बेटे की शिक्षा के लिए कर्ज मिल जाएगा । जब आप की कल प्रियांश को बताया था कि ऋण स्वीकृत होने में कुछ बाधा रही है तब हमें कुछ लोगों ने कहा कि कल स्वीकृत कराना है तो रिश्वत देनी पडेगी । बस इसलिए हम आप से इस प्रकार के शब्द कहने का दूसरा हस कर रहे थे । पूजा जी मैं मानता हूँ जो कुछ चाहते अभी अभी कहा था कि ऋण स्वीकृत कराने के लिए रिश्वत देनी पडती है । कई बैंकों में ये भ्रष्टाचार फल फूल रहा है परन्तु मैं ऐसा नहीं हूँ । नहीं मेरे बैंक में ऐसा करने का किसी में साहस है । मैं आपको एक दूसरे बैंक का पता लिख कर देता हूँ । अब वहाँ जाकर हमारे एक वरिष्ठ अधिकारी से मिलनी चाहिए । अब इस बैंक के प्रबंधक है । अब चाहेंगे तो हमारा ऋण स्वीकृत हो सकता है । फिर अब हमें किसी बडे अधिकारी से मिलने के लिए क्यों भेजना चाहते हैं । अब बस इतना समझ ली थी कि वे बैंक की केवल इस छोटी सी शाखा का अधिकारी हूँ । आपका ऋण प्रस्ताव स्वीकृत करने के लिए उस वरिष्ठ अधिकारी की सहमती अत्यावश्यक है । प्रबंधक साहब एक कर तो देंगे । हाँ, आशा तो शत प्रतिशत है । यदि वे आनाकानी करेंगे तो मैं आप की पूरी सहायता करूंगा और प्रयास करूंगा कि आपका कार्य शीघ्र ही हो जाएगा । वहाँ जाने से पहले आप मुझे मिल लेना । मैं उनके लिए पत्र लिखकर दे दूंगा, जिससे आप की राह आसान हो जाएगी । सर मेरे प्रवेश की तिथि निकलता पहुंची है । इसलिए मैं चाहता हूँ कि शीघ्र अतिशीघ्र मे रंजीन स्वीकृत हो जाए । यदि आप उचित समझे तो आप अभी पत्र लिखकर हमें दे दीजिए । अब आज ही उनसे जाकर मिलेंगे । अपनी परिस्थिति को समझाते हुए प्रियांशु के विनयपूर्वक निवेदन किया, अपनी बात को पूर्व आत्मविश्वास पर बेबाकी से कहने की प्रियांश की शैली पर मुक्त साहूकर प्रबंधन में उसकी और मुस्कुराकर देखा और कहा ठीक है । मैं अभी तुम्हें पत्र लिख कर देता हूँ तो आज ही उनसे मिल सकते हो । प्रियांश के निवेदन पर बैंक प्रबंधक ने उसी समय पत्र लिखकर उन्हें दे दिया । वे दोनों उसी समय वहाँ से दूसरे बैंक के उस अधिकारी से मिलने के लिए चले गए । इसके लिए प्रबंधन ने पत्र लिखा था । सौभाग्यवश उन्हें वो अधिकारी वहाँ जाते ही मिल गया । जिस समय वे वहां पर पहुंचे थे । उस समय उनकी ही फाइल पर चर्चा चल रही थी । वहाँ पहुंचने पर पहले तो प्रियांशु पूजा को उस अधिकारी के कक्ष में जाने से रोक दिया गया था परंतु बहुत अनुनय विनय करने पर उन्हें अधिकारी से मिलने की अनुमति मिल गई । अधिकारी से मिलकर उन्होंने अपनी स्थिति बताई और ऋण प्रस्ताव को स्वीकृत करने के लिए प्रार्थना की । अधिकारी ने कुछ समय तक मुक्तावस्था में कभी प्रियांश तथा कभी पूजा की ओर देखते हुए सोचा । तत्पश्चात अपने सहायक से कहा कहा इनकी फाइल अध्ययन किया है । उसका क्या है सर? कब तक नंबर पर आएगी सर? उसका नंबर आने में तो भी बहुत समय लगेगा । अपने सायद का उत्तर पाकर उस अधिकारी ने पूजा तथा प्रयास की ओर इस प्रकार नकारात्मक भाव से देखा कि उसका ऋण शीघ्र स्वीकृत नहीं हो पाएगा । माँ बेटी पर कुछ नकारात्मक दृष्टि का ऐसा प्रभाव पडा कि वे शाखा प्रबंधक द्वारा दिए गए पत्र के विषय में भूल गए । अब पूजा ऋण प्रस्ताव को स्वीकृत कराने के लिए उस अधिकारी से चिंतित व्यतीत और तीन होकर प्रार्थना करने लगी । लगभग रोने किसी मुद्रा में पूजा के मुख से बैंक की शाखा प्रबंधन के विषय में कुछ शब्द निश्चित हो गए जिसमें प्रियांश और पूजा को वहाँ भेजा था । पूजा के मुख्य शाखा प्रबंधक का नाम सुनते ही प्रियांश को उस पत्र का स्मरण हुआ है और उसने तत्काल अपनी जेब से वो पत्र निकालकर अधिकारी की ओर बढा दिया । ये किया है । अधिकारी ने पत्र को खोलते हुए पूछा प्रियांशु के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया । उसने सं को त्मक मुद्रा में अधिकारी की ओर देखा कि पत्र को खोलकर पढ लीजिए । अधिकारी ने पत्र को पढकर पूजा की और सकारात्मक ढंग से गर्दन हिलाते हुए कहा ठीक है परन्तु अधिकारी ने अपनी बात अभी पूरी नहीं की थी । इससे पहले फोन की घंटी बज उठी । फोन पर बात करते हुए अधिकारी के हावभाव बता रहे थे कि वो फोन कॉल बैंक के शाखा प्रबंधन की थी और फोन पर उन के बीच परस्पर प्रियांश के कर्ज स्वीकृति से संबंधित बातें चल रही थी । पार्टी समाप्त करने के पश्चात अधिकारी ने पूजा की और मुखातिब होकर कहा, आपके ऋण को स्वीकृत करने के लिए गारंटी के रूप में हमें आपकी संपत्ति आदि को अपने बैंक में गिरवी रखना पडेगा ताकि किसी अनचाही परिस्थिति में हम अपना धन वसूल सके । सर ब्रांच मैनेजर ने हमें बताया था कि एजुकेशन लोन के लिए संपत्ति गिरवी रखने की आवश्यकता नहीं होती है । पूजा ने कहा था उन्होंने आपको सही बताया है । एजुकेशन लोन के लिए संपत्ति गिरवी रखने की आवश्यकता नहीं होती है ये मैं भी जानता हूँ । लेकिन ये भी आपका बेटा पढाई पूरी करने के पश्चात हमारा धन नहीं लौटाना चाहे तब हम क्या करेंगे मैडम हमें ऐसी किसी परिस्थिति के विषय में पहले से ही सोचना पडता है । अधिकारी की बातें सुनकर पूजा को शाखा मैनेजर की चेतावनी कस्पर्ट हुआ आया । उसने बताया था कि एजुकेशन लोन के लिए संपत्ति गिरवी रखने की आवश्यकता नहीं है । इसलिए बैंक के किसी भी अधिकारी को ये जानकारी न दें कि वो मकान पूजा के नाम पर रजिस्टर है जिसमें पूजा अपने दोनों बेटों के साथ रहती है तथा पूजा ने समझाते हुए अपना सकारात्मक पक्ष अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया । जी सर! मेरा अपना सिलाई उद्योग है । मैं अपने बेटे का ऋण चुकाने की गारंटी लेती हूँ । प्रति माह उससे आपको कितनी इनकम हो जाती है । सर लगभग आठ हजार प्रतिमाह हो जाती है । पूजा का उत्तर सुनकर अधिकारी ने अपनी गर्दन हिलाकर संकेत दिया कि वह प्रियांशु की शिक्षा के लिए कर स्वीकृत करने पर विचार करेगा । तत्पश्चात मेज पर से फाइल उठाकर अधिकारी ने पूजा से कहा इनकम टैक्स देते हो नहीं सर । पूजा ने गर्दन हिलाकर कहा आए प्रमाण पत्र हैं । इस बार भी पूजा नहीं, गर्दन हिलाकर नकारात्मक संकेत दिया तो अधिकारी ने कुछ सोचने की मुद्रा बनाते हुए अपनी गर्दन पीछे कुर्सी पर टिका दी और आंखे बंद कर ली । कुछ दिनोपरांत जैसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर पूजा की और देखते हुए कहा कल हमारे यहाँ से दो व्यक्ति आकर आपका सिलाई उद्योग देखेंगे । उसके बाद जो भी निर्णय होगा आपको बता देंगे । अब आप जा सकते हैं । अधिकारी का उत्तर सुनकर पूजा प्रियांश बैंक से बाहर आ गए । बाहर आकर उन दोनों ने पर इस पर विचार विमर्श किया और लौटकर घर जाने से पहले पुनर्व बैंक के शाखा प्रबंधन से मिलने का निश्चय किया । तत्पश्चात उन्होंने शाखा प्रबंधन से मिलकर अधिकारी के साथ होने वाली अपनी प्रत्येक बात का यथातथ्य भुगतान सुना दिया । पूजा ने ये भी बताया कि किस प्रकार अधिकारीके सायद ने उन्हें ये कहकर डालने का प्रयास किया था कि उनकी फाइल को नंबर पर आने में बहुत समय लगेगा जबकि फाइल उसी मेज पर रखी थी । शाखा प्रबंधन में फाइल दबाने के विषय में पूजा द्वारा पिछले दिन कही गई बात का समर्थन करते हुए कहा कुछ लोग रिश्वत लेने के उद्देश्य से ऋण स्वीकृत करने में विलंब करते हैं ताकि जरूरतमंद व्यक्ति परेशान होकर स्वयं उनके समक्ष रिश्वत देने का प्रस्ताव रखते । परंतु आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है । आपका ऋण स्वीकृत हो जाएगा । ईश्वर पर विश्वास हूँ । अपन तक भरे शब्दों में शाखा प्रबंधन से आश्वासन पाकर पूजा प्रियांश अपने घर लौट आए । उन दोनों का चित्र आज फिर बहुत अस्थिर था । जब शाखा प्रबंधक के विषय में सोचते थे तब जित में आशा का संचार होने लगता था । अगले ही स्टेशन उन पर ये सोचकर नकारत्मकता हावी होने लगती थी कि विन स्वीकृत करनी शाखा प्रबंधन के अधिकार क्षेत्र में नहीं है इसलिए ऋण स्वीकृति में शंका है । रात भर इसी चिंता के कारण उनका चित्त इतना और शांत रहा कि दोनों में से किसी को नींद नहीं आई । अगले दिन प्रात अकाल से ही बैंक अधिकारी के निर्देश अनुशार दो बैंक कर्मियों के आने की प्रतीक्षा करने लगे । शाम कि तीन बच गए थे । बैंक से अभी तक किसी प्रकार की कोई सूचना अथवा कोई व्यक्ति नहीं आया था । इससे पूजा की नकारात्मक सोच उस पर और अधिक हावी होने लगी । उसने प्रियांश की ओर देख कर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा लगता है अब कोई नहीं आएगा । प्रियांशी सहमती में अपना सिर हिलाया ही था तभी दरवाजे की घंटी बची । पूजा ने आगे बढकर दरवाजा खोला तो देखा दरवाजे पर दो व्यक्ति खडे थे । परिचय पूछने पर ज्ञात हुआ कि वे दोनों बैंक की ओर से आए हैं । पूजा ने उन्हें अंदर बुला लिया और बातचीत होने लगी । उन दोनों व्यक्तियों ने पूजा की सिलाई उद्योग का निरक्षण किया और उसके विषय में आवश्यक जानकारियां लेकर वापस जाने लगे । उनकी वापस लौटने से पहले पूजा ने उनसे जानने का प्रयास किया कि उसके बेटे की शिक्षा के लिए ऋण स्वीकृत होने की कितनी प्रतिशत संभावना है । पूजा के प्रश्न का उत्तर उसकी आशानुरूप उसमें से किसी ने नहीं दिया । उन्होंने कहा कि उन का कार्य केवल इतना ही है कि वे अपनी रिपोर्ट अधिकारी को देख कर स्वीकृत करना अथवा नहीं कराना उनकी अधिकारी का अधिकार क्षेत्र हैं । अगले दिन पूजा ने बैंक की शाखा प्रबंधन सिंह सब पर करके उनके अधिकारी की प्रियांश के कर स्वीकृति के विषय में प्रतिक्रिया जानने का प्रयास किया परंतु वहाँ से उसे तत्काल कोई संतोषजनक उत्तर ना मिल सका । शाखा मैनेजर ने बताया की अभी तक उसे अपनी अधिकारी की ओर से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई हैं । जब वहाँ से प्रियांश का कर स्वीकृत होकर आएगा स्वयं प्याज को सूचित करके बता देंगे परंतु न तो प्रियांश को तथा नही पूजा को इतने धैर्य था कि वे घर में बैठकर बैंक की शाखा प्रबंधन की सूचना की प्रतीक्षा करते रहे । प्रियांशु प्रतिदिन बैंक में जाकर इस संबंध में पूछताछ करता था । लगभग छह सात दिन पश्चाद् प्याज ने घर आकर अपनी मां पूजा को ये शुभ सूचना दे ही दी की उसकी शिक्षा के लिए बैंक से कर्ज स्वीकृत हो गया है । प्रियांशु ने बताया कि बैंक प्रति वर्ष इंसान को सीधे ही उसके शुल्क का भुगतान करेगा । प्रियांश के हाथ में बैंक उस धन को नहीं सौंपेगा जो उसे शुल्क के लिए ऋण के रूप में मिलेगा । पूजा को इसमें कोई आपत्ति नहीं थी । अटल आवश्यक औपचारिकताएं पूर्ण करके बैंक के शाखा प्रबंधन ने किया था समय प्रयास का शुल्क उसके शिक्षण संस्थान को भेज दिया और प्रियांशु के अपना अध्ययन आगे बढा दिया । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी में अध्ययन करते हुए प्रियांश का बीटेक का प्रथम वर्ष पूर्ण हो चुका था । प्रथम वर्ष का उसका शैक्षिक परिणाम उसी प्रकार अच्छा रहा जैसे पहले से आता रहा था । वो इस वर्ष भी अपने बैच के होनहार विद्यार्थियों में सम्मलित था । इस एक वर्ष में पूजा अपने गुजारे भत्ते का केस जीत चुकी की । पूजा द्वारा किसको जीतने पर रणवीर बौखला उठा था । उसने पूजा पर आरोप लगाया कि उसने न्यायाधीश को घूस देकर निर्णय अपने पक्ष में कराया था । ये डीपी उसका ये आरोप निराधर झूठा और उसकी बौखलाहट कोई अभिव्यक्त करने वाला था । अपनी सन्तोषी स्वभाव के कारण गुजारे भत्ते के रूप में अत्यल्प धनराशि मिलने पर भी पूजा प्रसन्न थी । उसको अब गुजारे के लिए धन की आवश्यकता नहीं थी इसलिए न्यायिक उचित ढंग से आई धनराशि प्राप्त हो ना अब उसके लिए शोध का विषय नहीं रहा था । इसके विपरीत जब न्यायाधीश ने अपने एक निर्णय में रनबीर को दोनों बेटों तथा पत्नी के लिए बारह हजार रुपये प्रति माह देने के साथ ही बच्चों का विद्यालय शुल्क देने का निर्देश दिया था तब रणवीर ने उस निर्णय को मानने में आपत्ति की थी और अपनी कम आय का प्रमाण देकर न्यायाधीश को अपना निर्णय बदलने के लिए विवश कर दिया था । रणबीर तो चाहता ही नहीं था कि गुजारे भत्ते के रूप में पूजा को कुछ भी धनराशि दी जाए । इस उद्देश्य में सफल होने के लिए उसने अपने स्तर पर अनेक हथकंडे भी अपनाए थे । उसने पूजा के वकील को तैयार किया कि वह पूजा की ओर से धडकता से बहस न करें । इस कार्य हेतु उसने वकील कोपर्याप्त धन दिया और बदले में उसे आश्वासन लिया कि वह पूजा को गुमराह करता रहेगा । कुछ दिनों में पूजा कोई आभास हो गया कि उसका वकील ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर रहा है । अपना अधिकार पाने के लिए पूजा ने अपना वकील बदलने का निश्चय किया और उस वकील से अपनी फाइल लेकर अन्य वकील को दे दी । अब तक वो अदालत की कार्यवाही से भलीभांति परिचित हो चुकी थी । इसलिए दूसरे वकील को अपनी फाइल देने में ना तो उसको किसी संभाल की आवश्यकता पडी ना ही कोई अन्य । ऐसी बाधा उसके समक्ष उपस् थित हुई जिसको वो पार ना कर सके । पूजा के दूसरे वकील ने कुछ दिन तक यथोचित ढंग से काम किया कि तू धीरे धीरे उसकी भी कार्यशैली में परिवर्तन होने लगा । प्रायः पूजा अपने किसकी निर्धारित दी थी पर कोर्ट में बहुत जाती थी और उसके केस की फाइल नंबर पर आते ही पूजा बनाम रणवीर के नाम की पुकार भी होती थी कि दो उसका वकील वहाँ समय पर नहीं पहुंचता था । वो कई कई बार अपने वकील को बुलाने के लिए जाती थी परंतु वो बहस करने में समय किसी ना किसी प्रकार टालमटोल कर देता था । वकीलों की इस प्रकार के व्यहवार से पूजा तक आ गई । एक बार वकील बदल चुकी थी इसलिए अब वो वकील बदलना उचित नहीं समझ रही थी । अपने वकील द्वारा समय पर उपस्थित न होने और यथोचित ढंग से उसके पक्ष में बहस न करने से पूजा की समस्या बढती जा रही थी तथा उसने अपनी समस्या का समाधान करने की दिशा में अपना कदम बढाना आरंभ कर दिया । अभी इस समस्या के समाधान उसको शीघ्र ही मिल भी गया । अपनी समस्या के समाधान स्वरूप उसको ज्ञात हुआ कि वह अपने पक्ष में स्वयं बहस कर सकती है । ऐसा करने के लिए ना कोई लंबी प्रक्रिया है, न किसी योग्यता विशेष की आवश्यकता है । केवल इस संदर्भ में एक प्रार्थना पत्र देना है कि उसे अपने पक्ष में अपनी बात कहने की अनुमति दी जाए । ये ज्ञात होती है कि वह न्यायाधीश के समक्ष अब की समस्या रख सकती है । पूजा ने तुरंत इस संदर्भ में प्रार्थना पत्र लिख दिया और उसको अपनी बात कहने की अनुमति मिल गई अपनी बात स्वयं कहने की अनुमति मिलने से पूछे को बहुत बडी राहत का अनुभव हो रहा था । अपनी पीडा और समस्या को जितने प्रभावशाली ढंग से वह स्वयं अभिव्यक्त कर सकती थी, एक पेशेवर वकील कभी नहीं कर सकता । न्यायाधीश के समक्ष अपनी समस्या को प्रस्तुत करने का प्रथम अवसर मिलते ही पूजा ने सत्यनिष्ठा के साथ अपनी यथा स्थिति का वर्णन करते हुए प्रार्थना की कि वह उसकी समस्या का यथाशीघ्र समाधान करने का प्रयास किया जाए । अन्य स्त्री के साथ पति के संबंधों के चलते घर के प्रति उसके दायित्वहीन रवैये के बावजूद पूजा द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से बच्चों का पालन पोषण और शिक्षा शिक्षा करने का भार उठाने संबंधी शीलता से न्यायाधीश अत्यंत प्रभावित हुआ । उसने यथा सम्भव शीघ्रता से पूजा के पक्ष में निर्णय दिया । किरन भी अपनी तथा दोनों बेटों के गुजारे भत्ते के रूप में क्रमश चार चार हजार रुपये तथा दोनों बेटों का विद्यालय शुल्क देकर अपने दायित्व को बहन करें । रणवीर न्यायाधीश के इस निर्णय के प्रति अपना कोई प्रतिक्रिया देते इससे पहले ही उस न्यायाधीश का वहाँ से स्थानांतरण हो गया और पूजा का केस बीच में ही लटक गया । कुछ समय पश्चात रणवीर ने पूजा के पक्ष में न्यायाधीश के निर्णय का विरोध करते हुए अपनी आर्थिक स्थिति दुर्बल होने का हवाला देते हुए न्यायाधीश के निर्णय अनुसार धनराशि देने में अपनी असमर्थता की अपील कर दी । साथ ही उस ने ये भी कहा कि उसके दोनों बेटे अब बेसिक हो गए हैं इसलिए बच्चों के लिए गुजारा भत्ता देने का कोई औचित्य नहीं है । पहले न्यायाधीश जिसने पूजा के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया था, की स्थान पर आने वाले न्यायाधीश रणवीर की अपील को सकारात्मक ढंग से लेते हुए पूर्व न्यायाधीश के निर्णय में परिवर्तन करके गुजारे भत्ते की धनराशि को कम कर दिया । रणवीर को गुजारे भत्ते की धनराशि कम होने पर भी प्रसन्नता नहीं हुई । वो पूजा की जीत तथा अपनी हार्पर पीएमटी था क्योंकि उसने पूजा को चुनौती दी थी कि वह किसी भी दशा में कोर्ट के माध्यम से उसका खर्च बहन नहीं करेगा । इसके विपरीत पूजा अत्यंत प्रसन्न थी । वो रेलवे की चुनौती को स्वीकार करके रणवीर के विरुद्ध कोर्ट केस में जीत चुकी थी, भले ही उसे गुजारा भत्ता काम मिला था । गुजारे भत्ते का किस जीतने के पश्चात भी रणवीर द्वारा डाला गया उसके और पूजा के विवाह विच्छेद का केस कोर्ट में लंबित पडा था । इस के विषय में पूजा ने अभी तक अपना मत स्पष्ट नहीं किया था । उसने केवल यही कहा था कि वह रणवीर के मत्स्य सहमत हो जाएगी । यदि रणवीर तलाक चाहता है तो भी और नहीं चाहता है तो भी पूरे रणवीर का विरोध नहीं करेगी क्योंकि उसकी प्राथमिकता अपने बच्चों का पालन पोषण तथा उनकी शिक्षा व्यवस्था करना है । परंतु अब जबकि वो कोर्ट के माध्यम से अपना गुजारा भत्ता लेने में उस सफल हो चुकी थी और इन तीन चार वर्षों में कोट कार्यवाही के विषय में प्राप्त अनुभवी हो चुकी थी, उसने विवाह विच्छेद के विषय में अपने मत को स्पष्ट करने का निश्चय किया । अब विवाह विचलित के संबंध में पूजा का विचार पहले से भी था । पूजा को स्वयं तलाक लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी । अब वो रणवीर का किसी भी प्रकार का दबाव नहीं मानती थी । अब वो पति को संतुष्ट और प्रसन्न रखने के लिए उसके उचित अनुचित प्रत्येक आदेश का सिर झुकाकर स्वीकार नहीं करती थी । इसीलिए उसे निश्चय किया कि अब वो रणबीर को तलाक नहीं देगी । अपनी ये ही विचार पूजा नहीं न्यायाधीश के समक्ष व्यक्त किए कि वह पति से विवाह विचलित नहीं चाहती है । अब तक पूजा विवाह विच्छेद के संबंध में रणवीर के मत का समर्थन करते हुए ये कहती थी कि यदि रंगीन चाहता है तो वहाँ भी अच्छे से इनकार नहीं करेगी । अब वह विवाह विच्छेद से प्रस्ताव का विरोध करने का निश्चित कर चुकी थी । विवाह बातचीत के प्रति निश्चित रूप से उसके नाकारत्मक भाव का एक मुख्य कारण ये था कि वो अपने बेटों के विवाह आदि पर अपने संबंध विच्छेद का दुष्प्रभाव नहीं चाहती थी । पूजा की इस सोच के पीछे रणबीर की चुनौती थी । रणवीर ने गुजारे भत्ते का केस हारते ही पूजा को चुनौती दी थी । गुजारा भत्ता तो ले लिया तो ताकत तब देखेंगे जब आपने आईआईटीएन इंजीनियर बेटे का बिरादरी में विवाह करेगी । उस दिन तुम लोगों को अपनी गलती का अहसास होगा । बिरादरी का कोई आदमी तुम्हारे साथ मिलने बात करने से भी बचेगा । रणवीर का विचार था कि उसके कोर्ट में जाने से समाज और बिरादरी का कोई भी व्यक्ति उसके बेटों के साथ अपनी बेटी का विवाह नहीं करेगा । समाज उसको तथा उसके बेटे को तब और भी अधिक ये दृष्टि से देखेगा जब वो उसके साथ नहीं रहेगा क्योंकि पूजा उसके विरुद्ध कोर्ट में गई थी तथा प्रियांश इव सुधांशु ने भी इस विषय में माँ का विरोध नहीं किया था इसीलिए वह किसी भी शर्त पर उनके साथ नहीं रहेगा । अपनी चुनौतीपूर्ण कट्टू शब्द को कहते हुए रनवीर वहाँ से चला गया था । उसके जाने के पश्चात पूजा के विचार केंद्र में यही विषय घूमता रहा कि वो ऐसा क्या उपाय करें जिससे उसकी और रणबीर के बीच आई दूरी या कोर्ट की लडाई का उसके बेटों के विवाह संबंध स्थापित होने में किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव ना पडे । कई दिन तक इस विषय में निरंतर सोचते रहने के बाद पूजा को अपनी समस्या का समाधान स्वरूप रणवीर से विवाह विच्छेद नहीं करना ही अधिक उचित लगा । किसकी अगली निर्धारित तिथि में उसके अपने इस विचार को न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था । पूजा और रणवीर की विवाह बातचीत करके स्कूट में चलते चलते तीरे धीरे सात वर्ष बीत गए थे । पहले तीन वर्ष में पूजा ने कोर्ट में अपना मत स्पष्ट नहीं किया था । वो मात्र इतना ही रहती थी । किरन भी जैसा चाहेगा मैं उससे सहमत हो जाऊंगी । पूजा से विवाह विच्छेद उठाने वाला रणवीर भी उस समय कोर्ट में न्यायाधीश के समक्ष इस प्रकार के बयान नहीं देता था जिससे वह प्रतीत हो सके की वो पूजा से विवाह बातचीत के लिए उद्यत है । पति पत्नी की इसी विचार दृष्टि के चलते है । बहस के लिए निर्धारित तिथि भी आगे बढती जा रही थी कि दू पूजा के लिए रणवीर की चुनौती के पश्चात इसके इसमें एक ऐसी गति पकड ली थी जिसकी पहले से कोई कल्पना नहीं कर सकता था । पूजा अपने तलाक से संबंधित प्रत्येक निर्धारित तिथि पर न्यायालय में जाने लगी । उसे भय था कि रनवीर धूर्तता और कपट से कोई ऐसी चालाकी न कर जाए कि उसका एकतरफा तलाक हो जाएगा । पूजा का ये भेदभाव कोर्ट के उस पत्र का स्मरण करके और भी अधिक प्रबल हो जाता था जिसमें उस को चेतावनी दी गई थी कि निर्धारित समय पर पूजा के कोर्ट में अनुपस्थित रहने पर उसे तलाक के लिए सहमत मानते हुए कूट अपना निर्णय सुना देगी । दूसरी ओर रणवीर भी अब निर्धारित तिथि को समय पर कोर्ट में उपस् थित होता था । अब पूजा से विवाह विच्छेद लेने के लिए उतावला हो रहा था । जितनी शक्ति का उपयोग पूजा अपना विवाह विकसित रोकने के लिए कर रही थी, उतनी ही शक्ति का दुरुपयोग रणवीर विवाह विचलित कराने के लिए कर रहा था । सात वर्ष तक विवाह विच्छेद के लिए पूजा और रणबीर की न्यायालय में लडाई चलती रही परंतु अंतिम निर्णय न हो सका । वे दोनों कानूनी रूप से अलग न हो सके । मन से तो वे दोनों बहुत दिनों पहले ही अलग हो चुके थे परंतु पिछले चार वर्ष से रणवीर शारीरिक रूप से भी अपने घर पर नहीं गया था । कहा जा सकता था कि चार वर्ष पहले वो शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह पूजा से अलग हो चुका था । अब तू प्रायः बहुत बेचेन रहता था क्योंकि कानूनी रूप से वो आज भी पूजा का पति था और पूजा को विवाह विच्छेद से जो आगाह पहुंचना चाहता था वह पहुंचा नहीं पा रहा था । पूजा से पूरी संबंध मुक्त होने के लिए छटपटाते हुए वो अपनी आर्थिक, सामाजिक, मानसिक शक्तियों का बडी मात्रा में दुरुपयोग कर रहा था ताकि वो पूजा को पराजित कर सके और उसको एक ऐसा आघात पहुंचा सके की पूजा तब उठे और भविष्य में सिर उठाकर बोलने का साहस ना कर सकें । इसके विपरित पूछे अपनी धुन की पक्की थी । उसके अंदर आत्मविश्वास को कूटकर भरा हुआ था । वो कभी भी रणवीर के साथ विवाह विच्छेद की लडाई में अपने प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण से विचार नहीं करती थी । वो आस्तिक थी इसलिए साडी यही सोचती थी कि ईश्वर सदीप कल्याण कार्य कृतियां का शुभ परिणाम ही देता है । विवाह विच्छेद का विरोध करना उसके बच्चों के हितार्थ हैं । इसलिए परिणाम उसी के पक्ष में होगा, जनवीर के पक्ष में नहीं । अपनी इसी सकारात्मक सोच के साथ उस सदेव आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहती थी ।

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इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय स्त्राी का प्रतिनिध्त्वि करती है । परिवार का प्रेम और विश्वास ही उसके सुख का आधर है परन्तु उसकी त्याग-तपस्यापूर्ण उदात्त प्रकृति तथा पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम ही उसके सुखी जीवन में अवरोध् बन जाता है । उसका स्वच्छन्दगामी पति उसकी त्याग-तपस्या और निष्ठा का तिरस्कार करके अन्यत्र विवाहेतर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति उदासीन हो जाता है ।नायिका को पति का स्वच्छन्द- दायित्व-विहीन आचरण स्वीकार्य नहीं है , फिर भी वह अपने वैवाहिक जीवन के पूर्वार्द्ध में सामाजिक संबंधों के महत्त्व और आर्थिक परावलम्बन का अनुभव करके तथा जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने संस्कारगत स्वभाव के कारण पति के साथ सामंजस्य करने के लिए स्वयं को विवश पाती है । Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Dr. Kavita Tyagi
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