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आघात भाग - 13 in Hindi

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AuthorKavita Tyagi
इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय स्त्राी का प्रतिनिध्त्वि करती है । परिवार का प्रेम और विश्वास ही उसके सुख का आधर है परन्तु उसकी त्याग-तपस्यापूर्ण उदात्त प्रकृति तथा पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम ही उसके सुखी जीवन में अवरोध् बन जाता है । उसका स्वच्छन्दगामी पति उसकी त्याग-तपस्या और निष्ठा का तिरस्कार करके अन्यत्र विवाहेतर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति उदासीन हो जाता है ।नायिका को पति का स्वच्छन्द- दायित्व-विहीन आचरण स्वीकार्य नहीं है , फिर भी वह अपने वैवाहिक जीवन के पूर्वार्द्ध में सामाजिक संबंधों के महत्त्व और आर्थिक परावलम्बन का अनुभव करके तथा जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने संस्कारगत स्वभाव के कारण पति के साथ सामंजस्य करने के लिए स्वयं को विवश पाती है । Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Dr. Kavita Tyagi
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Transcript
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लगभग एक वर्ष पर चार एक दिन अचानक एक प्रतिशत घटना ने पूजा के जीवन की धारा बदलकर उसकी दिशाहीन दांपत्य जीवन को एक नई दिशा प्रदान कर दी । उस दिन रणवीर को घर से गए हुए एक महीना से अधिक समय बीत चुका था । पूजा ने उससे फोन पर संपर्क किया तो उसने बताया कि वह शहर से बाहर है और अभी वापस लौटने के विषय में कोई निश्चित समय नहीं बताया जा सकता । उस समय रात के दस बजे थे । दोनों बच्चे सो चुके थे । पूजा अभी तक रणवीर के आने की प्रतीक्षा कर रही थी । जंजीर के लौट करना आने की सूचना पाकर पूजा भी दरवाजा बंद करके अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी । पूजा सोने का प्रयास कर रही थी किंतु उसकी आंखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी । अपनी और बच्चों के भविष्य को लेकर उसके नकारात्मक विचार उसकी नींद में बाधा डाल रहे थे । उसने एक बार फिर सिर को झटक कर निश्चय किया कि अब वो कुछ भी नहीं सोचेगी । तभी दरवाजे की घंटी बजे इस समय किसी के आने की कोई पूर्व सूचना नहीं थी । ना ही किसी आने की संभावना थी । इसलिए घंटी सुनकर एक शंकर पूजा पैसे कम थी । ट्रेन नवीन ने भी आज लौट कराने के लिए मना किया है । इस समय कौन हो सकता है ये सोच कर पूजा पुणे घंटे की आवाज सुनने की प्रतीक्षा करने लगी । कुछ छोडो प्रांत पुणे घंटी बज उठी । इस बार पूजा ने दरवाजे पर जाकर देखना उचित समझा । वो बिस्तर से उठी और साहस करते हुए धीमे धीमे कदमों से दरवाजे की निकट जाकर भर से गाते हुए कृत्रिम कठोरता से पूछा । कौन है फॅमिली में रामू रामू पूछे रामों को अच्छी प्रकार से जानती थी और उसकी आवाज भी पहचानती थी । वो रणवीर के ऑफिस में अनेक कार्य गार्ड का कार्य, क्लर्क का कार्य, ड्राइवर का कार्य और चौकीदारी का कार्य करता था । वो रणवीर का विश्वासपात्र और शुभचिंतक था तथा पूजा ने दरवाजा खोलकर सामने खडे राम उसी आश्चर्य से पूछा तो इस इस समय यहाँ खांसी मैडम जी बिस्तर की गाडी की चाबी देने के लिए आया था । मुझे अभी सूचना मिली है कि मेरी पत्नी बहुत बीमार है वहाँ पर मेरी बूढी मां के सेवा उसकी देखरेख के लिए कोई नहीं है । एक बेटा है वह भी बहुत छोटा है पढने के लिए । मुझे इसी समय अपने गांव जाना पडेगा इसलिए मुझे चाबी देने के लिए इस समय यहाँ आना पडा वरना मैं आपको डिस्टर्ब करने की गलती कभी नहीं करता । सर कहाँ है मैडम जी उन्हें में शाम छह बजे उनकी दूसरे घर पर छोडकर गाडी को ऑफिस में ले आया था । वो घर ऑफिस से बहुत दूर है और मैं इस समय बहुत जल्दी में हो और गांव के लिए मुझे यहाँ से आराम से हमारी मिल जाएगी । जब रात में वहाँ जाता तो मुझे पैदल चलते हुए फिर यही लौट कराना पडता इसलिए इस समय मुझे वहाँ जाना उचित नहीं लगा । दूसरे घर पर पार्टी करते करते पूजा ने रामों से दूसरे घर का पता ज्ञात कर लिया । रामों द्वारा बताये गये पति को सुन कर पूजा के अंत इसको यातायत आघात लगा कि दो उसने स्वयं को संतुलित करते हुए एक लंबी सांस ली और अपने अंदर की जो वार को दबाने का प्रयत्न किया । फिर भी पूजा की आंखों से आंसू की बूंद टपक पडी और गला रुंध गया । उसकी ऐसी दशा देखकर श्यामू घबराकर बोला मैडम जी आप की तबियत तो ठीक है हाँ मैं ठीक हूँ । बस यही थोडा सा भी कहते हुए पूजा ने रामों को घर के अंदर बुला लिया । रामू का अंदर बुलाकर है वो उसे लगभग आधा घंटा तक बातें करते रहे । उसने रणबीर के विषय में रामों से विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त की तो उसको ज्ञात हुआ कि पिछले एक सप्ताह से रनवीर प्रतिदिन शाम छह बजे वाणी के घर जाता था । उसका ड्राइवर राम उसको प्रतिदिन शाम को वहाँ छोडकर आता था और प्रातः नौ बजे उसको वाणिज्य घर से लेकर ऑफिस में छोडना था । रामू पूजा को ये भी बताया कि वह वाणी को रणवीर की दूसरी पत्नी के रूप में पहचानता है क्योंकि पिछले कई वर्षों से वो रणवीर को वाणिज्य घर पर छोडना रहा है और वाणी भी रणवीर के ऑफिस में अक्सर आती रहती है । साथ ही उस सदीप ऑफिस में आकर रणवीर की पत्नी के रूप में अपना परिचय देती है और रणवीर भी उसके साथ पति पत्नी का सा व्यहवार करता है । यहाँ तक कि जिस घर में वाणी रहती है उस पर बैंक की रिंकी मासिक किश्तों का भुगतान प्रत्येक महारण्ये वीर ही करता है । रणबीर की विश्व में पर्याप्त जानकारी लेने के पश्चात पूजा ने रामो से गाडी की चाबी ले ली और उसको जाने की आज्ञा दे दी । विवाह होने के बाद से आज तक पूजा के समक्ष रनवीर के अनेकानेक रहस्य खुल चुके थे । उसके प्रत्येक रहस्य उद्घाटन के बाद पूजा कोई बडा आघात लगता था और प्रत्येक आघात के कुछ समय उपरांत वो सामान्य हो जाती थी । यदि पी उसके सामान्य होने की प्रक्रिया में रणवीर के मधुर संभाषण और सौम्य व्यवहार की महती भूमिका रहती थी । तथापि उसकी उस मधुरता और सौम्यता पर उसके कलुषित चरित्र का अगला रहस्य उद्घाटन साडी भारी पडता था । इतने वर्षों तक पूजा इसी प्रकार एक के पश्चात एक आघात सहती रही थी और अपने दुर्भाग्य से संघर्ष कर दी हुई है । भाग्य उद्योग की भाषा में प्रतिकूल परिस्थितियों में सामंजस्य करती रही थी । उसने निश्चय किया आज भी चुप नहीं बैठ सकती थी । मुझे अपने पति के अनुचित मार्ग पर बडे चुके कदमों को वापस लौट आना ही होगा । रणवीर के इस अक्षम्य अपराध को भूलकर मुझे अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए अपने पति को वापस लाने के लिए जाना ही होगा । अपने पति को पतन के गर्त में गिरने के लिए छोड कर और अपने परिवार को अपने गृहस्थ जीवन को बर्बाद होते देख कर मैं चुप नहीं बैठ सकती । पूजा की सुक्षम मन तथा स्थल शरीर में उस रात मानो किसी देवी शक्ति का संचार हो रहा था । उसी शक्ति से प्रेरित होकर उसने अपने दोनों बेटों प्रयांशु और सुधार को जगह कर गाडी में बिठाया और स्वयं गाडी ड्राइव करके वानी के घर पहुंच गयी । रणवीर और वाणी अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि रात के ग्यारह बजे पूजा वहाँ अपने दोनों बेटों के साथ पहुंच सकती है । वहाँ पर पहुंचकर पूजा ने दरवाजे की घंटी बजाई । दरवाजा खोलने के लिए रणबीर आया था । पूजा को अपने सामने दरवाजे पर खडा देखकर रणवीर आवाक रह गया । घर के अंदर से वानी ने आवाज लगाकर पूछा रणवीर हो गया है? इतनी रात भी रणवीर ने वानी के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया । उसकी आवाज में पूजा को देखते ही उसका साथ छोड दिया था । पता कुछ बोले बिना और कोई प्रतिक्रिया दिए बिना ही तो दरवाजे से बाहर निकल आया और सडक की और चल पडा । धर्मवीर के पीछे पीछे पूजा और उसके दोनों बेटे भी सडक की ओर चल पडे । गाडी के पास आकर पूजा ने रणवीर का हाथ पकडकर उसे रोक लिया और मधुर विनम्र किंतु अधिकारपूर्ण स्वर में कहा चलिए गाडी में बैठे और घर चलिए । रणवीर पूजा के हाथ से अपना हाथ छुडा लिया और कठोर मुद्रा बनाते हुए शन भर पूजा की और क्रूज से उबलती आंखों से घोरदा रहा । एक्शन पश्चात वो स्वयं को सशक्त सिद्ध करते हुए अपने एक एक्शन पर जोर देकर बोला पूजा तुझे यहाँ आने की भारी कीमत चुकानी पडेगी और वह समय शीघ्र ही आएगा जब तुझे अहसास होगा कि यहाँ अगर तूने अपनी जीवन की सबसे बडी भूल की है । ये कहते हुए रणबीर तीस कदमों से चलते हुए आगे बढ गया और पूजा बच्चों के साथ अपना अभित्रस्त प्राप्त करने में असफल होकर निराश मंत्री घर लौट आई । वानी के घर जाने से पहले उसमें एक आशा थी । उत्साह था कि वह अपने पति को झट चरित्र और सामाजिक पतन की दलदल से बाहर निकालकर साडी के लिए अपने पास उसके बच्चों के पास ले आएगी । परंतु वहाँ से लौटकर उसके मन मस्तिष्क पर निराशा का साम्राज्य हो गया था । अपने पति को अपने पास वापस लौटाकर लाने में विफल पूजा अपने ने राशि पूर्ण स्थिति से निकल भी नहीं पाई थी कि उस घटना के एक सप्ताह पश्चात है । पूजा के घर पर एक डाक आई पूजा ने सामान्य डाक समझकर डाके से उसे ले लिया । लिफाफे खोलकर पत्र को पढने के बाद पूजा को पता चला कि वह पत्र विवाह विच्छेद की मांग करते हुए कोर्ट के माध्यम से रणवीर ने भेजा है पत्र पढकर सामान्य ग्रहणी और प्रति वर्ता पूजा के हिंदी पर पति के विश्वासघाती मेहवाल और उसके साथ घर बनाने पर क्रोध निश्चित निराशा का भार बढ गया था क्योंकि उसके हिंदी की गहराइयों के किसी कोने में आज भी पति के प्रति तथा प्रेम बसा था । उसकी व्यथा काम नहीं हो पा रही थी परंतु आज भी जबकि वानी के घर पर घटित घटना के एक सप्ताह पश्चात तक रणबीर पूजा के पास नहीं लौटा था उसे ये अनुमान नहीं था कि रणवीर उसके पास कोर्ट के द्वारा तलाक की पीपर भेज सकता है । यही नहीं तलाक के पेपर देखकर भी उसे यही विश्वास था कि रणवीर उससे तलाक लेना नहीं चाहता है । वो सोचने लगी इससे क्या फर्क पडता है कि मेरा पति मुझे तलाक लेना चाहता है या नहीं । मेरे ही दिया और जीवन पर आज केवल इस बात का प्रभाव पडता है कि मीरापट्टी मेरे बच्चों का पिता अपने परिवार को उस परिवार के प्रति अपनी कर्त्तव्य को भूलकर किसी अन्य स्त्री के साथ रह रहा है । वो अपने समय और धन को उसके लिए लुटा रहा है जबकि यहाँ उसका अपना परिवार एक एक पैसे के लिए तरस जाता है । बच्चे अपने पिता के स्नेहा के लिए तरफ से रहते हैं और अपनी जीवन वृद्धि हेतु दूसरों पर निर्भर करते हैं । दिन रात अपनी निराशा में डूबी हुई पूजा कोर्ट द्वारा भेजे गए विवाह विचलित पत्री की निर्धारित तिथि तक अपनी और से कोई प्रतिक्रिया नहीं कर सकी । अपनी अज्ञानता वर्ष वो ना तो कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकी और न ही प्रतिक्रिया शुरू । उसने अपनी और से रणबीर के प्रति को शिकायत ही दर्ज कराई । पूजा की इस स्कूल का परिणाम ये हुआ कि एक सप्ताह पश्चात पुनः कोर्ट के माध्यम से उसके पास दूसरा पत्र आया कि यदि अगले निर्धारित तिथि में वह कोर्ट में उपस्थित नहीं होगी तो कोर्ट उसे विवाह विच्छेद के लिए सहमत मानकर रणवीर के पक्ष में अपने निर्णय देने के लिए बाध्य होगा । इस पत्र ने पूजा के समझ एक नई समस्या उत्पन्न कर दी थी । अब उसे कुछ नहीं सोच रहा था की स्थिति में वो क्या करें क्या न करें । वो इसी उहापोह में बैठी हुई थी । तभी वहां पर उसके पिता आ पहुंचे । पिता को देखते ही पूजा का धैर्य छूट गया और वह फफक फफककर होने लगी । कुछ देर पश्चात शाम धोकर उसने कौशिक जी को सारी स्थिति से यथातथ्य अगवत कराया । देवी चिंता में डूबकर बोले जीवन भर बेटी के परिवार का आर्थिक भार वहन करने में मुझे इतना कष्ट नहीं होता जिस को सहन न किया जा सके । किंतु अपनी बेटी के गृहस्ती को बर्बाद होते हुए देखने की पीडा मैं कदापि सहन नहीं कर पाऊंगा । पिता ने अपनी व्यवस्था और पीडा को व्यक्त करने के पश्चात पूजा को समझाया । बेटी पति पत्नी के बीच में छोटा सा मतलब थी बहुत बडी दूरी का कारण बन जाता है । वो दूरी स्वयं नहीं पडती । दोनों का अहंकार उसको बढाता है । जैसे जैसे ये अहंकार बढता जाता है वैसे वैसे उन दोनों के बीच की दूरी बढती जाती है । जब वो दूरी तथा तनाव एक सीमा को पार कर जाता है तो संबंध टूटने की स्थिति में आ जाता है जैसा कि तुम्हारी और रणवीर के संबंध में हो रहा है । संबंध टूटने की स्थिति में होने पर भी कोई ये शत प्रतिशत नहीं कह सकता हूँ कि अमुक दंपत्ति में परस्पर प्रेम नहीं है । तो आपने विश्व में ये भली भांति अनुभव कर सकती हूँ । फिर भी प्रेम की डोरी से बंधे हुए दांपत्य संभव को तुम दोनों इतना ही इसके चले गए कि अंत में टूटने की स्थिति आ गई है । बेटी मेरे विचार से अब तक जो कुछ भी हो चुका है उसको तो नहीं बदला जा सकता परंतु भविष्य में होने वाले उन अशुभ अनचाहे परिणामों को रोकने का प्रयास किया जा सकता है जिनका संकेत तो मैं आज मिल रहा है । उस विनाश को रोकने का प्रयास किया जा सकता है जो तुम्हारी दरवाजे पर दस्तक दे रहा है । ये सब कुछ तभी संभव है जब तुम अपने क्रोध और अहंकार पर विजय प्राप्त करके अपने गृहस्थी को बचाने के लिए थोडा सा झुक जाओ । अपने क्रोध तथा अहंकार पर विजय प्राप्त कर के ये संभव है कि तुम रणवीर के हिंदी पर भी विजय प्राप्त कर सको । मनुष्य झुककर ही दूसरे को झुका सकता है । विवाह होने से लेकर आज तक में झुकती ही तो रही हूँ । मेरे झुकने का ही तो परिणाम है कि मुझे शहर से बाहर होने की सूचना देकर दस दस दिन तक वे अपनी प्रेमिका वानी के घर पर रहते थे । अभी आई का बडा भाग उसके लिए खर्च कर कर हमारे खर्च के लिए कंपनी में घाटा होने का बहाना करते हैं । मेरे बच्चे पिता के प्यार के लिए तरीके से रहते हैं और वे शहर में रहते हुए भी दस दस दिन तक अपनी शक्ल नहीं दिखाते । बेटी घर की चिंता तो मत करो । अपने खर्च की चिंता तो मुझ पर छोड दो । तुम केवल अपने और रणवीर के बीच की दूरियां कम करने का प्रयास करूँगा । पिताजी अभी संभव नहीं है । क्यों संभव नहीं है? क्योंकि वानी के पति का देहांत हो चुका है । इस समय उसको रंगीन की आवश्यकता है । वह सरलता से रणवीर को अपने जाल से मुक्त नहीं होने दे सकती । वाणी पर अपना किसी का कोई प्रतिबंध है । नरेंद्र से दूर रहने का किसी प्रकार का दबाव है । उल्टे हर तरह से उसको रणवीर के साथ ही आवश्यकता है । इसलिए जब तक वो रणवीर को आर्थिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से दिवालिया नहीं कर देगी, तब तक वह नहीं छोडेगी । जब तक रणवीर पर उसकी पकट कम नहीं होगी, तब तक मैं कितना प्रयत्न कर लो । वो अपने पूरे तन मन धन से घर नहीं लौट सकते । पूजा ने निराशा के स्वर में कहा बेटी अभी पूरा नहीं तो थोडा ही सही, बुजुर्गों ने कहा है सारा जाता जानकी । आधार लेना बाट जो कुछ जायेगा तेरह ही जाएगा । पूरा ना मिलने के शोध में आधा खोना मुझे ठीक नहीं लगता है । पहले आधा समेत लोग फिर शेष आधे को वापस लेने का प्रयास करते रहो । जब तक पूरा ना मिले ठीक है । अब कहते हैं तो मैं प्रयास करूंगी अपने पिता के समक्ष पूजा ने कह तो दिया था कि वह रणवीर को घर लाने का प्रयत्न करेगी किन्तु वह भलीभांति जानती थी कि अब नातो रणवीर को वापस लाना संभव है और न ही अब वो उसे वापस लाने का प्रयास करेगी । वो निश्चित कर चुकी थी की एक अन्य स्त्री के साथ अवैध संबंध रखने के बावजूद अपना दोष नहीं स्वीकारने के बजाय उनके उसी को झुकाने की रणबीर की योजना को सफल नहीं होने देगी । परिणाम कुछ भी हो वो अब पति कहलानेवाले विश्वासघाती पुरुष के शमक नहीं झुकेगी । अपने संकल्प को को कार्यरूप में परिणित करने के लिए उसके अपनी सहेली निहा के माध्यम से एक तकलीफ से संपर्क किया । उस वकील के प्रमाण शा अनुसार पूजा ने रणवीर के विरुद्ध कोर्ट में गुजारे भत्ते का की फाइल कर दिया और तलाक की बहस के लिए निर्धारित तिथि में उपस्थित भी हुई । रणवीर ने ये कल्पना भी नहीं थी की पूजा उसके विरुद्ध कोर्ट में खडी हो सकती है और गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है । उसको तो ये भी आशा नहीं थी की पूजा कोर्ट में उपस्थिति होने का साहस भी कर सकती है । उसके मन मस्तिष्क में पूजा की मात्र एक छवि थी । वो छवि थी एक सीधी साधी घरेलू पति वर्ता देखी जिसको चाहे जितना शारीरिक मानसिक रूप से प्रताडित करो वो मुझसे अपशब्द तक नहीं निकाल सकती । परंतु पूजा ने आज उसके भ्रम को तोडकर एक नए रास्ते पर नया कदम बढा दिया था । पूजा ने अपना अधिकार पाने के लिए जब जिस नए रास्ते पर कदम रखा था कौशिक जी को तथा यश करुँगी बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं था । वो नहीं चाहते थे कि उनके घर की बेटी थाना कचहरी के आस पास भी जाए परंतु पूजा वहाँ से पीछे लौटने के लिए तैयार नहीं थी । वहाँ तक वह स्वयं नहीं आई थी । रणवीर ने उसको वहाँ आने के लिए विवश किया था । अब वो उस रास्ते पर चलने के लिए विवश थी । कौशिक जी ने अपनी सामर्थ्य भर प्रयास किया था कि उनकी बेटी और दामाद के बीच की दूरियां कम हो जाये परन्तु ऐसा नहीं हो सका और उनके बीच की दूरी बढते बढते कोर्ट तक पहुंची गई । कौशिक जी ये सब सहन न कर सके । उन्हें हिंदी आघात हुआ और वे अचानक स्वर्ग सिधार गए । पिता की मृत्यु से पूजा बिलकुल टूट सी गई । उन्हीं का अवलम लेकर तो वो आज तक अपने विश्व से विश्व परिस्थितियों से संघर्ष करके भी जीजीविषा से परिपूर्ण थी । अब कौन उसको कष्टों में भी स्वस्थ, उचित रहते हुए कठिनाइयों से संघर्ष करने की प्रेरणा देगा । पूजा को ऐसा अनुभव हो रहा था कि आज झूठ बिल्कुल नहीं रावलमल हो गई है । चैनल से ही उसको ये बताया सिखाया गया था कि स्त्री की हर अवस्था में भी किसी ना किसी रूप में पुरुष का अवलंब मिलना उसका सौभाग्य होता है । आज दुर्भाग्य वर्ष नियति ने पिता के रूप में मिला हुआ उसका अवलंब छीन लिया था, जिन्होंने सदीप उसके कष्टों को दूर करने का प्रयत्न किया था । पिता के देहांत के पश्चात पूजा को उनकी एक एक बात ऐसे याद आ रही थी कि उसका चित्त विचारों की एक लंबी श्रृंखला पर तैरने लगा । बयान संदीप प्राप्त करने ही में समाज और परिवार की दृष्टि में भारत स्वरूप हो गई थी । उस बाहर को हल्का या काम करने का एक ही निश्चित उपाय था मेरा विभाग । प्रत्येक भारतीय पिता के समान मेरा पिता भी अपनी बेटी के लिए एक योग्य और उच्च कुल में उत्पन्न वर्ग की खोज में निकल पडे जो उनकी बेटी का अवलंबन सके । वर्षों की खोज के उपरांत उन्होंने रणबीर के रूप में एक योग्य तथा उच्च कुल में उत्पन्न वर पाकर मेरा विवाह संपन्न कराया और भारतीय संस्कृति के अनुरूप पूर्ण आशा विश्वास के साथ सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देकर मुझे रणबीर के हाथों में सौंप दिया । रूल्स स्कूल अर्थों में उस आशीर्वाद के अनुसार मैं आर्थिक सौभाग्यवती रही हूँ । चीनी अंशु में मुझे आज भी सौभाग्यवती माना जा सकता है, किन्तु यदि गंभीरतापूर्वक विश्लेषण करके सुक्षम दृष्टि से देखा जाए तो मैं पति के संबंध में कभी भी सौभाग्यवती नहीं । किसी नवविवाहिता को जब ये ज्ञात होता है कि उसके पति का किसी अन्य स्त्री के साथ अवैध संबंध है, फिर भी सात फेरों के संबंध का ये सामाजिक मर्यादा का निर्वाह करने के लिए उसे जीवन भर उस बंदी के साथ सामंजस्य करके रहना है । तब वह स्वयं को सौभाग्यवती कैसे मार सकती है? वहाँ से आज तक मेरा दांपत्य जीवन झटके खा खाकर आगे बढा । कभी मेरे वैवाहिक जीवन में अधिक तनाव रहा तो कभी कम । इन वर्षों में मेरे जीवन में ऐसा बहुत कम समय आया था, जबकि मैं पूर्व तनावमुक्त और प्रसन्नचित रही थी । मेरी इस विश्व दशा को मेरे पिता से अधिक कोई भी नहीं समझ सकता था । मेरे पिता को मेरी पीडा का अहसास था और संदीप मेरी पीडा को कम करने के लिए प्रत्यनशील रहते थे । अपने जीते जी मेरी चिंता करते हैं और मेरे दांपत्य जीवन में सुख समृद्धि आने की प्रतीक्षा करते रहे किन्तु उनकी अभिलाषा अधूरी ही रह गई । अंत में अंत में उन्हें स्वर्गवास का कारण भी मेरे दंपत्ति जीवन की असफलता ही रहा । मेरी गृहस्ती टूटकर बर्बाद होने का आघात सहन नहीं कर सके । पिता को याद करते करते सोचते सोचते पूजा अकेली बैठी हुई रोने लगी । काश! मैं अपने पिता जी को अपने पिता की मृत्यु का दोषी स्वयं को मानकर पूजा अत्यंत व्याकुल हो गई थी । उसका अंतकरण पुणे स्वयं से ही तर्क वितर्क करने लगा । पति पत्नी अपनी सुख चैन के लिए एक दूसरे पर इतने निर्भर हो जाते हैं कि एक दूसरे के सानिध्य का विश्वास का प्रेम का अभाव उनकी मन स्थिति दुर्बल और उनकी जीवन को निरस्त कर देता है । प्रेम, विश्वास और परस्पर सानिध्य के अभाव से उनका जीवन रुक सा जाता है । परन्तु जब पति पत्नी में से किसी एक का प्रेम और विश्वास एकपक्षीय हो तब और दूसरा पक्ष पहले पक्ष प्रेम करने वाले पक्ष के प्रेम के प्रति संवेदनहीन होकर उसको महत्व ना दे, उसका तिरस्कार करें । तब मेरे जीवन में ऐसा ही तो है । मेरे ही इंडिया में पति के लिए प्रेम और विश्वास कूट कूटकर भरा हुआ था । पर रणवीर तो कभी मुझे प्रेरित किया ही नहीं । मेरा प्रेम सदीप एकपक्षीय ही रहा । वो तो उस वैवाहिक संबंध को धो रहा था, जिसमें वह तब बन रहा था जब उसकी प्रेमिका ने उसका साथ छोडकर किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह कर लिया था । अब जब वापस लौटकर रणवीर के पास आई ऍम मेरे एकनिष्ठ प्रेम को ठुकरा दिया । मेरा तिरस्कार करते हुए उसको मेरी पीडा का तनिक भी अनुभव नहीं हुआ । उसने ना तो मेरे प्रेम को समझा नही, इस पवित्र बंधन की प्लाज रखकर अपनी पत्नी के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया । ऐसी स्थिति में मैं क्या कर सकती थी? मैं तो पूर्ण रूप से रणवीर पर निर्भर थी, उसके प्रति समर्पित थी और आज भी हूँ । मुझे तो पति के प्रति एकनिष्ठ प्री और संपन्न के अतिरिक्त कुछ सिखाया ही नहीं गया था और वाणी किसी सुप्रीम कैसे कर सकती है । वो तो पैसे के पीछे भागती है । रणवीर को भी तो वो अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए ही इस्तेमाल कर रही है । पर रणवीर इस बात को समझ ही नहीं रहा है कि हाँ आज के युग में प्रेम नहीं, पैसा सत्य है । पैसा है तो व्यक्ति प्रेम के बिना भी सुखी रह सकता है । वाणी का एकमात्र लक्ष्य पैसा था न प्रेम करना, न प्रीम पाना । अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उससे पहले किसी अन्य स्टाफ का घरों जाना था । अब मेरा घर बर्बाद कर रही है । वो सुखी है क्योंकि उसके पास पैसा है । वो पैसा चाहिए, कहीं से भी, किसी भी तरह से क्यों ना आए पर मैं मैं तो पैसे के लिए दूसरों पर ही निर्भर हो । अब पिताजी भी नहीं रहे । कहाँ से बच्चों को खिलाओ की पहला होगी और कहाँ से उन्हें पढाओगी । इसी प्रकार के विचारों में उलझकर उसके दिन और रात बीत दिए जा रहे थे । कौशिक की मृत्यु से वो टूट गयी थी । इस चौक से पूरी तरह उभरना उसके लिए बहुत कठिन था । वह महीना भर में अपने और बच्चों के बारे में सोचने करने योग्य स्वस्थ्य चित हो पाई थी । सामान्य अवस्था में आते ही उससे अपनी वर्तमान स्थिति और भविष्य के विषय में विचार मंथन आरंभ कर दिया । जब जब वो इस विषय पर सोचती थी तब तक उसको अपने पिता द्वारा समझाई गई उन बातों का स्मरण हुआ आता था जो उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व पूजा को उसके दाम्पत्य जीवन को संवारने का निर्देश देते हुए समझाई थी । तब वो सोचने के लिए विवश हो जाती थी कि उसको रणवीर के साथ अपने दांपत्य जीवन को पुनः पटरी पर लाने का एक और प्रयास करना चाहिए । नहीं पिता के निर्देशों से प्रेरित पूजा जब रणवीर के विषय में आशावादी दृष्टिकोण रखकर सोचती थी तब उसका चित सारे परिणामों को सकारात्मक रूप से ग्रहण करता था और उसकी आंखों में सुख में मधुर कल बनाए टहलने लगती थी कि उसके बच्चों को पिता कसमे हम मिल जाएगा, सामाजिक मान प्रतिष्ठा बनी रह जाएगी और परिवार को आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी कि दो जब नकारात्मक दृष्टिकोण रखती थी तब रणवीर से संबंध सुधरने का पुण्य प्रयास उसको व्यर्थ लगता था । अपने विचारों की इसी उठा पटक के कारण इस विषय पर कोई भी निर्णय लेना उसके लिए कठिन हो रहा था । अंत में उसने आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए पति के साथ संबंधों को पुरानी राह पर लाने का निर्णय लिया । अपने दांपत्य संबंधों में एक बार पुनर प्राण फूंकने का प्रयास करने का निश्चय करके वह अपने लक्ष्य की ओर बढ गई । अपने लक्ष्य सिद्धि के लिए इस बार पूजा ने एक योजना बनाई । उसकी योजना का स्वर्ण प्रथम चरण ये था कि वो किसी ऐसे अनुभवी पूर्ण व्यक्ति को अपने साथ लेकर एनवी से मिलेगी जो उसका निकट संबंधी हो और संबंधों के महत्व को भली भांति समझता हूँ । अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पूजा ने रणवीर के ताऊ जी जो नोएडा से बहुत दूर लखनऊ में रहते थे, उनसे संपर्क किया और पूरे अपने दांपत्य जीवन की सारी समस्याओं से यथातथ्य अवगत करा दिया । ताऊजी सौम्या प्रकृति के व्यक्ति थे । ऑफिस सम्बन्धों का निर्वाह भली प्रकार से करने के पक्ष में थे और इसके लिए जीवन में त्याग तपस्या को प्रयाप्त महत्व देते थे परन्तु अपने विचारों को अपने व्यवहार में परिणित करने के साथ साथ में किसी भी संबंध के निरर्थक बोझ को ढोने के पक्ष में नहीं थे । वे कहते थे कि संबंधों को जीने में आनंद है, उन्हें भारत स्वरूप धोनी में नहीं । इसलिए जो संभाल जीवन में निरर्थक बोझ बन जाए, उन से मुक्ति पाना या उन्हें सीमित कर देना ही उचित होता है । ताऊ जी के इन विचारों से पूजा पहले से ही परिचित थी, फिर भी उसने रणवीर के साथ अपने संबंधों में पूरा फ्रेंड प्रतिष्ठा करने के लिए उनकी सहायता मांगी । ताऊजी उसकी मांग को अस्वीकार नहीं कर सके । उन्होंने पूजा को आश्वस्त करते हुए कहा, पूजा जब से तुम रणवीर के साथ परिणय सूत्रों में बंद ही हो, तभी से मैं तुम्हारे त्याग, तपस्या, मितभाषी स्वभाव और रणवीर के प्रति तुम्हारे एकनिष्ठ ट्रेन के विषय में सुनता रहा हूँ । एक पति व्रता स्त्री के रूप में तुम्हारा चरित्र सिर्फ रहनी है इसलिए मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए तत्पर हूँ । मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है । बताओ तो मुझे किस प्रकार की सहायता की अपेक्षा रखती हूँ । ताऊ जी मैं चाहती हूँ कि आप मेरे साथ चलकर रणवीर से बातें करें और उन्हें समझाएं कि विवाह विच्छेद की नकारात्मक प्रभाव न केवल मुझे और रणवीर को बल्कि हमारे बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रहे हैं । हमारे तलाक का केस हमारे बेटों की उन्नति की मार कर रोडा बन रहा है । हम दोनों की लडाई झगडे में बच्चे नियंत्र ही होकर दिशाहीन हो सकते हैं और जीवन की अंधेरी गलियों में भटक कर किसी अनुचित आग्रह मार्ग पर जा सकते हैं । बेटी मैं तुम्हारी और बच्चों की स्थिति को तथा उस स्थिति से उत्पन्न पीडा को समझ सकता हूँ । तुम जैसा चाहती हूँ, वैसा करने के लिए मैं तैयार हूँ । लेकिन बेटी मुझे इसमें संदेह है कि इस विषय पर रणवीर मेरे समझाने समझेगा । मैं उन लोगों की प्रकृति से भली प्रकार परिचित हूँ, नहीं तो रणवीर किसी कि यह उचित प्रमाण को सुनता महत्व देता है और न ही उसकी मम्मी उसको ऐसा करने देती है । इसलिए मैंने अपने भाई के देहांत के पश्चात उनकी सात आपने संभव बहुत ही सीमित कर लिए थे । फिर भी तुम्हारी में उनसे बात करूँगा और प्रयास करूंगा कि वे लोग उचित अनुचित का भेज समझकर उचित निर्णय ले, जिससे तुम्हारा घर भी टूटने से बच्चा पर बच्चों का भविष्य भी बर्बाद ना हो । ताऊ जी अब मेरी सहायता करने के लिए तैयार हो गए । इसके लिए मैं आप की बहुत बहुत आभारी हूँ । नहीं बेटा, इसमें आभार कैसा? ये तो मेरा कर्तव् दिया है । मुझे प्रस् लेता है कि हमारे घर में तुलसी समझदार बहू है । बताओ मुझे कब आना है शीघ्र अतिशीघ्र जब आपको सुविधा हो ठीक है मैं ये तो शीघ्र रणवीर से संपर्क करूंगा और समय निश्चित करके तो सूचना दूंगा । रणवीर के ताऊ जी से बातें करके पूजा थोडी सी आश्वस्त हो गई थी । पूजा से बातें करने के पश्चात दो घंटे के अंदर ही ताऊजी ने रणवीर के साथ बाते करके पूजा को फोन द्वारा सूचित किया कि रनवीर आपके मम्मी के पास है और उसने मिलने के लिए रविवार का दिन निश्चित किया है । उन्होंने पूजा को ये निर्देश भी दिया कि आपने कार्यक्रम की सफलता के लिए उसे अपने तथा रणवीर के कुछ अन्य संबंधियों से संपर्क स्थापित करके उनसे भी वहाँ पर आने का निवेदन करना चाहिए ताकि रनवीर पर न्यायोचित निर्णय लेने का दबाव पडे । ताऊ जी के निर्देशानुसार पूजा ने रणवीर के और अपने निकट संबंधियों में बहुतों के साथ संपर्क किया । उन्हें अपनी समस्या बताते हुए अपनी यथास्थिति से अवगत कराया और समस्या को सुलझाने में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कराने का निवेदन किया । उन संबंधियों में से जिससे पूजा ने संपर्क किया था कुछ तो वहाँ आने में अपनी असमर्थता प्रकट कर के शमा मांग ली परन्तु अधिकांश पूजा की सहायता करने का निवेदन स्वीकार करके निर्धारित स्थान तथा समय पर पहुंचने का आश्वासन दिया । उन सब की सहायता का आश्वासन पाकर पूजा की चिंता बहुत कम हो गई । उसे अनुभव होने लगा था कि अब दिल्ली अधिक दूर नहीं है किन्तु रविवार को जब पूजा वहां पहुंची और बातें आरंभ हुई तो परिस्थिति उसकी कल्पना से नितांत विपरीत थी । वे सभी संबंधी जिन्होंने पूजा की सहायता करने के लिए वहाँ जाने का उसे आश्वासन दिया था, उनमें से कुछ तो आई ही नहीं थे । शेष जो आए थे, पूजा की विपक्ष में खडे होकर अन्याय और नीति का साथ दे रहे थे । पूजा के पक्ष में निर्भय और स्वास्थ होकर न्यायोचित बात कहने वाले केवल दो ही व्यक्ति थे रणवीर के ताऊ जी तथा रणवीर का चचेरा भाई विनय । इन दोनों सदनों की अनीति और अन्याय के विरुद्ध वाणी अपनी अपनी हांकने वाले रणवीर और रंजीत के पवास ऋतु के मेंढकों की टलिफ्टर के सामने अपशब्दों तथा अपमानजनक व्यवहार के सामने दबकर रह गई और वे पूजा को न्याय दिलाने में सफल नहीं हो सके । रणवीर के भाई रंजीत तथा उसकी माँ ने तो यहां तक कह दिया की पूजा के साथ रणवीर का विवाह संपन्न होने से पहले वाणी को अपने घर की बहू मान चुके थे और अभी भी वाणी को अपने घर की बहू के रूप में ही देखते हैं । अपने दांपत्य संबंधों को पुनर्जीवन प्रदान करने के अपने अंतिम प्रयास में पूछा विफल हो गई थी । अब उसके पास एक ही विकल्प बचा था न्यायालय की शरण में जाना । ये विकल्प उसके लिए अत्यंत आवश्यक भी था क्योंकि पिता की मृत्यु के पश्चात उसके लिए और उसके बच्चों के लिए आर्थिक संभाल के रूप में रणवीर के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं था । उस संभाल को प्राप्त करने के लिए ही उसने ताऊजी के सहयोग से रणवीर को वापस लाने का निर्णय लिया था । उसमें विफल होने के पश्चात अब न्यायालया में जाने के लिए विवस थी । न्यायालय की सहायता से आर्थिक संभाल प्राप्त करने के लिए भी उसको आने जाने तथा अधिवक्ता को देने के लिए रुपयों की आवश्यकता थी । इसके लिए रुपये कहाँ से लाएंगे, ये भी एक बडी समस्या थी । इस समस्या ने उसे विचलित कर दिया था । उसके पास आई कोई सूत्र नहीं था । पढी लिखी होने पर भी व्यावसायिक परीक्षण के अभाव में वह जीवीकोपार्जन करने में असमर्थ थी । उसके बच्चे अभी इस योग्य नहीं थी कि वह कुछ जीवीकोपार्जन कर सके । पूजा ये भी सोचती थी कि यदि पेट भरने के लिए तीनों प्राणी कहीं कोई छोटा मोटा कार्य करेंगे तो दोनों बच्चे जीवन भर ऐसी ही स्थिति में जीने के लिए विवश हो जाएंगे क्योंकि पेट भरने की चिंता में उनकी शिक्षा बिल्कुल बंद हो जाएगी । इसी प्रकार सोचते सोचते वह समय आ गया जबकि पूजा के घर में खाने के लिए कुछ शेष जा रहा और खाने पीने की व्यवस्था करने के लिए उसके पास रुपये पैसे भी समाप्त हो चुके थे । भूखे पेट बैठे बैठे तीनों माँ बेटों को सुबह से शाम हो गई । प्रयास के मासी कहा कि वह बच्चा नहीं है बडा हो चुका है इसलिए घर में बैठकर भूख प्यास से तडप की अपेक्षा अच्छा है कि अब की स्मारकीय अनुसार और योग्ता अनुसार कोई कार्य करके अपनी आवश्यकताएं पूरी कर लिया जाएगा । सुधांशु ने भी प्रियांश का समर्थन किया । दोनों भाई जीविका परिजन के लिए कुछ भी कार्य करने के लिए तैयार हो गए । ना उन्हें उस समय अपनी पढाई लिखाई की चिंता की ना अपने भविष्य में कुछ बडा करने का सपना उस समय उनकी आंखों में था । उस समय उनकी पेट की भूख बलवती थी और आंखों में विश्व वर्तमान था और मस्तिष्क में था उस विश्व वर्तमान को पराजित करने का संकल्प पूजा के समक्ष केवल वर्तमान को जीतने की चुनौती नहीं थी । वर्तमान की विषमता से संघर्ष करते हुए तो उसका आधा जीवन बीत चुका था । आज वर्तमान के साथ साथ उसकी आंखों में अपने बेटों के उज्जवल भविष्य को लेकर अनेक सपनी भी थे । उन सपनों को साकार करने के मार्ग में अनेक बाधाएं और चुनौतियां भी थी । जी नहीं पार करके ही पूजा के सपने साकार हो सकते थे । पूजा भलीभांति जानती थी कि यदि आज किशोर अवस्था में प्रताप प्रिंट करते हुए अपने बेटों की शिक्षा बंद करवाकर उन्हें स्कूल के स्थान पर पेट की आग बुझाने के लिए किसी कार्य में लगा दिया जाएगा तो भविष्य में कुछ बडा करने का उनका सपना मिट्टी में मिल जाएगा । इन सभी बातों पर विचार करने के पश्चात पूजा कोई उपाय सोचा । उसने अपने दोनों बेटों को अपने ही विशिष्ट शैली में आश्वासन दिया कि वह शीघ्र ही खाने पीने और उन्हें पढाई के लिए धन की व्यवस्था कर लेगी । दोनों बच्चे माँ की और आशा भरी प्रश्न सूचित दृष्टि से देख रहे थे कि आखिर अचानक उनकी माँ धन की व्यवस्था कहाँ से करेगी । पूजा ने बच्चों की दृष्टि को समझाते हुए उनकी और मुस्कुराकर रहस्य में मुद्रा में कहा, तुम दोनों निश्चिंत होकर अपनी पढाई करूँ । मुझे लौट कराने में मात्र आधा घंटा लगेगा । तुम्हारी स्कूल फीस और खाने पीने की सारी व्यवस्था अच्छी प्रकार से हो जाएगी । ये कहकर पूजा अलमारी की और बडी और उसमें से आपने कुछ कहने निकाल कर अपने पर्स में रख लिया । प्रियांशु और सुधांशु को अपनी चित्र में उठ रहे सभी प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे । उन्होंने आगे बढकर माँ द्वारा किए गए उस उपाय पर प्रश्न लगाते हुए कहा मम्मी जी आपको अपनी आभूषण बेचने की आवश्यकता नहीं है । ये आभूषण आपके पास लाना जी और नानी जी की यादों में रूप में साडी रहना चाहिए । आप उन्हें वापस रख दु हम दोनों भाई सब कुछ संभाल लेंगे तुमसे मूल्यवान और तुम्हारे भविष्य से महत्वपूर्ण । मेरे लिए कुछ भी नहीं है कि आभूषण भी नहीं । अब रही बात तुम्हारे नाना नानी की यादों को संजोकर रखने की तो उन्होंने ये आभूषण आपातकाल में मेरी सहायता के लिए उद्देश्य से ही दिए थे । पिताजी ने मुझे अनेक पर ऐसे कहानी सुनाई थी जिनमें बेटी को स्वर्ण आभूषण या चांदी देने का उद्देश्य उसे आपत्ति के समय सामर्थ्यवान बनाना होता है । अपने दोनों बेटों को तार्किक उत्तर देकर पूजा मुस्कुराती हुई प्रसन्न वदन घर से बाहर चली गई और सर्राफा में जाकर अपने आभूषण बेच दिए । लगभग आधा घंटे के अंदर ही वो घर लौट आई और बच्चों के प्रिय खाद्य व्यंजन बनाकर स्नेहा उन्हें खिलाया स्वयं दिखाया और उसके बाद मित्रा की गोद में समा गयी । अपने आभूषण बेचने के पश्चात पूजा में अपने अधिकारों के प्रति एक नई और अभूतपूर्व चेतना का उन्मेष हुआ था । अब तक वो रणवीर से केवल अपने बच्चों का पालन पोषण और उनकी शिक्षा प्रशिक्षण हेतु धन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए न्यायालय की शरण लेना चाहती थी । इसके लिए भी उसके पास धन नहीं था । कहाँ से वकील की फीस का हँसी कोर्ट तक आने जाने का किराया भाडा दे, कोर्ट के अन्य खर्चों के लिए धन की व्यवस्था कहाँ से करें आदि प्रश्नों के साथ घर में खाने पीने की व्यवस्था करने के लिए भी धन का आभाव उसके जीवन को निराश के अंधेरे में ढकेल रहा था । परंतु अपने आभूषण बेचने के पश्चात उसके ही दे में क्रोध और चीता का ऐसा समन्वित नया भाव जाग्रत हो रहा था जिसमें रणवीर के अपराधों को शमा करने की अपेक्षा दंड का संकल्प था । उसने संकल्प किया कि अब अपने अधिकारों के लिए उसे न्यायालय में जाना ही होगा । अब और एनडीए जैसे पुरुषों को दिखा देना चाहती थी कि एक स्त्री में असीमित शक्तियां समाहित है तो अपने जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधा पर विजय पा सकती है । वो अबला नहीं है । उसकी स्त्रियोचित उदास सुभाव और उदारता का निर्वाह करने के कारण उसे अबला समझकर उस पर अत्याचार करने वालों पर वह साडी भारी पडती है पूजा नहीं । यह भी संकल्प क्या क्यू से किसी भी दशा में हारना नहीं है क्योंकि उसकी हार केवल उसकी हार नहीं होगी बल्कि एक पत्नी की तथा एक माँ की बिहार होगी । मर्यादा का निर्वाह करते हुए पति के प्रति एक पत्नी के प्रेम और समर्पण की हार होगी । एक माँ की ममता की हार होगी जो अपने बच्चों के लिए पिता के स्मियर की अभिलाषा करती है । इन सब हार समाज के लिए कल्याणकारी नहीं हो सकती तथा अन्याय के विरुद्ध उसे लडना भी होगा और जीतना भी होगा । अपने संकल्प को दोहराते हुए पूजा ने अपने अंत करण में अनुभव किया कि अब वह अशक्त नहीं है । उसके अंदर की मां और पत्नी उसको अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए शक्ति प्रदान कर रही है । इसी शक्ति को अनुभूत करके पूजा ने अपने वैवाहिक जीवन की दूसरी संघर्ष यात्रा आरंभ कर दी । आज तक उसके संघर्ष में उसकी शास्त्र सहनशीलता और क्षमाशीलता जैसे उदास गुड रहे थे किन्तु आज उसको अपने संघर्ष साधनों आपने शास्त्रों में परिवर्तन करना पडा था । आज तक पूजा अपने कर्तव्यों पर अपना सारा ध्यान केंद्रित करके उन्हें पूरा करने में तन मन से लगनशील रहती थी कि तू आज वो आपके अधिकारों के प्रति सजक थी । अपने अधिकारों के प्रथम संघर्ष का शीघ्र गणेश करते हुए पूजा ने सर्वप्रथम एक वकील से संपर्क करके उसे अपनी सारी स्थिति से अवगत कराया और अपने पक्ष में संभावनाओं की जानकारी पूजा की । संपूर्ण स्थिति से परिचित होने के पश्चात वकील ने उसको घरेलू हिंसा, गुजारा भत्ता तथा अन्य स्त्री के सात, रणवीर के अवैध संबंध आदि के अनेक के रणवीर के विरुद्ध फाइल करने का परामर्श दिया । वकील पूजा से कहा वानी के साथ रणवीर के अवैध संबंधों को समर्थन करने वाले, उसकी माँ, बहन, भाई आदि परिवार के अन्य लोगों को सही राह पर लाने के लिए घरेलू हिंसा का केस करना आवश्यक है किन्तु पूजा ने केवल गुजारे भत्ते की फाइल को ही आगे बढवाना उचित समझा । वह आज भी रणवीर से और उसके परिवार के किसी सदस्य से प्रतिशोध लेने की मानसिकता नहीं रखती थी नही उन्हें किसी प्रकार का कष्ट देने के लिए अपने मूल्यवान समय और धन का अपव्यय करना चाहती थी । अभी वो केवल रणवीर से उसके बच्चों के लिए तथा स्वयं के लिए गुजारे भत्ते के रूप में आर्थिक अवलम प्राप्त करना था । न्यायालय की सहायता से अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए पूजा को पर्याप्त धन की आवश्यकता थी । वकील और कोर्ट की पीस, वहाँ तक आने जाने का किराया तथा अन्य किसी प्रकार के अनेक खर्चे जिन्हें वह अपने आभूषण बेचकर प्राप्त हुए रुपये से पूरा नहीं करना चाहती थी । आभूषणों को बेचकर प्राधन को वह केवल अपने बच्चों के खाने पहनने और उनकी पढाई पर ही खर्च करना चाहती थी । वो नहीं चाहती थी कि बच्चों के खर्च के विषय में सोच विचार बिना ही वो उस धन को कोर्ट के इसमें खर्च कर दे और अंत में बच्चों की पढाई बंद करनी पडेगी तथा घर में खाने पीने की व्यवस्था करने के लिए भी समस्या खडी हो जाएगा । ये दीपी पूजा के पास अभी कुछ आभूषण शेष बचे थे तथापि उन्होंने केवल उस समय ही बेचने के पक्ष में थी जबकि कोई विपत्तियां पडे कोर्ट में केस लडने के लिए नहीं पूजा जानती थी कि गहने बेचकर उसकी गुजर अधिक समय तक नहीं हो सकती है तथा उसने आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए अपने भाई यश से संपर्क किया । यश ने प्रथम निवेदन पर ही अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह पूजा की किसी प्रकार से कोई सहायता नहीं करेगा । यश के विचार से पूजा का कोर्ट में जाना और रणवीर के विरुद्ध केस फाइल करना न केवल पूजा की बल्कि उसके निकट संबंधियों की सामाजिक मान प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला देगा । ऐसी स्थिति में पूजा का साथ देकर उसका सहयोग करके अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाडी नहीं मार सकता था । यशिनी नकारात्मक उत्तर मिलने के पश्चात किसी अन्य से आर्थिक सहायता मांगना पूजा को उचित नहीं लगा । अब ना तो किसी से आर्थिक सहायता की उपेक्षा रखती थी और न ही अपने शीर्ष बचे हुए आभूषण बेचना चाहती थी । अच्छा अब उसने गहनतापूर्वक एक अन्य श्रेष्ठतर विकल्प चुना । उसने स्वाबलंबी बनने का निश्चय किया और अपनी शिक्षा के बल पर आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त करने की दिशा में अपना कदम बढाना आरंभ कर दिया । इस क्रम में स्वर्ग प्रथम उसने वर्षों से धूल चाट रहे अपने शेक्षिक, अंकपत्रों तथा प्रमाणपत्र को एकत्र किया । तत्पश्चात समाचार पत्रों में अपनी योग्यता और रुचि के अनुरूप रिक्तियां छाट कर विज्ञापन देने वाली जॉब एजेंसियों से संपर्क करना आरंभ किया । जॉब एजेंसियों में से अनेक निश्चित प्रतिशत जॉब दिलाने का वचन दिया था और इसके लिए ऑफिस में आकर फॉर्म भरने का निर्देश दिया था । उनके निर्देशानुसार पूजा उनके ऑफिस में गई थी, जहाँ पर एक एक हजार रुपए फॉर्म फीस लेकर उन्होंने पूजा को कॉल करके स्वयं बुलाने का आश्वासन देकर भेज दिया । चार पांच दिन तक पूजा ने उनकी कौन आने की प्रतीक्षा करने के पश्चात स्वयं ही संपर्क करके अभी जॉब के विषय में जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया परंतु वहाँ से उसको कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला । संतोष जनक उत्तर ना मिलने पर वो एजेंसी के उसी कार्यालय पर पुणे आई जहाँ पर उसने फॉर्म शुल्क के रूप में एक हजार रुपये का भुगतान किया था । पूजा को वो कार्यालय बंद मिला । पास पडोस में उस के विषय में पूछने पर पूजा को ज्ञात हुआ कि वे एजेंसी चलाने वाले धोखेबाज लोग थे और पुलिस के भय से यहाँ से अपना धंधा बंद कर चुके हैं । आपको अपने उस दिन पूजा को अनुभव हुआ की जॉब एजेंसियां लोगों को लूटने का धंधा करती है तथा उसे जॉब एजेंसियों का सहारा छोडकर सीधे उन विज्ञापन दाताओं से संपर्क किया जो किसी एजेंसी की भागादारी के बिना स्वयं योग्य अभ्यार्थियों से आवेदन मांगते हैं । पूजा ने ऐसी अनेक जगहों पर आवेदन किया परन्तु कहीं पर वेतन बहुत कम था, कहीं पर कार्य उसकी रूचि के अनुरूप था । जहाँ पर वेतन और कार्य दोनों उसकी इच्छा के अनुरूप थे, वहाँ पर उसे अयोग्य सिद्ध कर दिया गया । उसकी अयोग्यता का मुख्य बिंदु तकनीकी ज्ञान के साथ किसी क्षेत्र विशेष में कार्यानुभव का आभाव रहा था ।

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इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय स्त्राी का प्रतिनिध्त्वि करती है । परिवार का प्रेम और विश्वास ही उसके सुख का आधर है परन्तु उसकी त्याग-तपस्यापूर्ण उदात्त प्रकृति तथा पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम ही उसके सुखी जीवन में अवरोध् बन जाता है । उसका स्वच्छन्दगामी पति उसकी त्याग-तपस्या और निष्ठा का तिरस्कार करके अन्यत्र विवाहेतर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति उदासीन हो जाता है ।नायिका को पति का स्वच्छन्द- दायित्व-विहीन आचरण स्वीकार्य नहीं है , फिर भी वह अपने वैवाहिक जीवन के पूर्वार्द्ध में सामाजिक संबंधों के महत्त्व और आर्थिक परावलम्बन का अनुभव करके तथा जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने संस्कारगत स्वभाव के कारण पति के साथ सामंजस्य करने के लिए स्वयं को विवश पाती है । Voiceover Artist : Sarika Rathore Author : Dr. Kavita Tyagi
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