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पूजा और रणवीर अपने गृहस्थी की गाडी को घसीटते हुए उस मोड तक ले आए थे जहां उनके बेटे प्रियांशु और सुधांशु ने किशोर दिया में पदार्पण किया था । माता पिता के पर इस पर तनावपूर्ण संबंध अब उनके व्यक्तित्व के विकास में ही नहीं, उनकी शैक्षिक उन्नति के मार्ग में भी पादक बनकर उभर रहे थे । विधि का दुष्चक्र ऐसा चल रहा था कि तनाव कम करने की दिशा में किया गया पूजा का हर प्रयास अपना प्रतिकूल प्रभाव डालकर तनाव को और अधिक बढा देता था । तनाव के परिणामस्वरूप परिवार की आर्थिक दशा तक हो गई थी । आर्थिक तंगी का एक मुख्य कारण रणबीर द्वारा अर्जित किए हुए धन का अन्य योजित ढंग से खर्च करना भी था । पूजा को अब तक ये ज्ञात नहीं था कि उसके पति की आए कितनी हैं और वी आई कितना है । उसने ये जानने का कभी प्रयास भी नहीं किया था । इस सब बातों में उसकी रूचि नहीं थी । उसका कार्यक्षेत्र केवल पति तथा बेटों की देखभाल करना तथा इसी कार्य को संपर्क करने के लिए घर में आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करना था । पूजा इसमें संतुष्ट थी । वो असंतुष्ट तब होती थी जब रणवीर उसको घर की व्यवस्था के लिए प्रायः रुपये नहीं देता था । पूजा का घर बने हुए प्राप्त समय बीत चुका था कि दूसरा अभी तक रणवीर नहीं उसके पिता से लिए गए ऋण का टाइम पास में नहीं लौट आया था । पूजा ने इस विषय में रेडमी से कई बार चर्चा भी की थी कि दूर रघुवीर हर बार कोई न कोई बहाना करके विश्व को टाल देता था तो कई बार घर में आएगी उपेक्षा व्यक्त अधिक होने के कारण उसके पिता कर रही नहीं लौटा पाने का बहाना कर चुका था । इस सब कारणों पर विचार करके पूजा ने अपने दोनों बेटों को कॉन्वेंट स्कूल से निकालकर उनका प्रवेश एक सामान्य ट्रस्ट स्कूल में दिया था ताकि कुछ बचत हो सके और अपने वचन अनुसार थोडा थोडा करके पिता से लिया हुआ था लौटाया जा सके । पर तू धीरे धीरे पूजा ने अनुभव किया कि रणवीर उसके पिता से ऋण के रूप में लिया हुआ रुपया लौटाना नहीं चाहता है । उसका ये अनुमान उस समय विश्वास बदल गया जब उसको पता चला की रणबीर ने अपने भाई रंजीत को एक प्लॉट खरीदने के लिए आर्थिक सहयोग किया है । रणवीर द्वार पूजा के पिता से घर बनाने हेतु लिया हुआ रहेगा ना लौटाकर अपने भाई को प्लॉट खरीदने में आर्थिक सहयोग करने और अपने बच्चों की भोजन शादी की व्यवस्था करने के लिए घर में प्रयाप्त पैसा न देने से पूजा अत्यधिक अप्रसन्न थी । रेड्डी ने उसकी अप्रसन्नता को गंभीरता से ना लेकर स्वयं को सही साबित करते हुए कहा, वही व्यक्ति बुद्धिमान होता है जो पहले आपने कार्यसिद्ध करता है । जो ऐसा नहीं करता मैं उसको मूर्ख समझता हूँ । पूजा ने रनवीर के संवाद की व्याख्या अपने विचार अनुसार करके प्रत्युत्तर में कहा आपके विचार से मेरे पिता जी मूर्ति थी । उन्होंने तुम्हें घर खरीद कर दिया और आप बुद्धिमान हो कि उन्हें वचन देकर भी उनसे लिया हुआ धन लौटाने की चिंता नहीं करती हूँ तो जो कुछ समझना है तो समझ सकती हूँ । वैसे भी मैंने किसी को कुछ वचन नहीं दिया था । जो भी वचन दिया तुमने दिया था था । जो भी बचत दिया था मैंने दिया था परंतु ऍम करो वो वचन में है, तुम्हारे कहने पर दिया था । ईश्वर तो स्वयं सोचने समझने की बुद्धि नहीं थी तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ । तुम्हारी दृष्टि में मैं भी मूर्खों और मेरे पिता भी । लेकिन स्वर्ण तुमने जो कुछ अभी अभी कहा है उसके अनुसार तुम हमारी अपेक्षा अधिक मूर्खो । मेरे पिताजी ने तो अपनी बेटी का घर बचाया था जो हर बिता करता है लेकिन तो तो अपने बच्चों के लिए पिता के कर्तव्य भी पूरी नहीं कर सकते हैं तो उससे अधिक मूर्ख बीट कोई हो सकता है और तुम्हारा भाई मुफ्त में मूल्क बनाकर अपना कार्य सिद्ध कर रहा है । दंपत्ति में इस प्रकार कुछ देर तक आरोप प्रतियोग का सिलसिला चलता रहा क्योंकि उस बहस को पूजा रेलवे दोनों में से कोई भी इतना नहीं बढाना चाहते थे कि बात बिगड जाए और दोनों के बीच कडवाहट बढ जाए । अच्छा पूजा वहाँ से हटकर दूसरे कमरे में चली गई और रणवीर भी अपना कोई कार्य करने के लिए घर से बाहर निकल गया । शाम को रणवीर समय पर घर लौट आया । पूजा ने भी अपने घरेलू दायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार से क्या अगले दिन रात गई बात गई के आधार पर उन दोनों की शिकायत शिकवे पुराने पड गए । गृहस्थजीवन आगे बढने लगा । पूजा का सारा ध्यान अपने बेटों पर केंद्रित रहता था ताकि बच्चे स्वस्थ रहे और शिक्षा प्राप्त कर के उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सके । ऐसा करके रणवीर की ओर से मिलने वाले तनाव से भी मुक्त रह पाती थी । रणवीर और पूजा की गृहस्ती अब ऐसी चलने थ्री की गाडी के पटरी से उतरने की संभावना नगरीय से लगने लगी थी क्योंकि पूजा अब फिर से रणवीर पर विश्वास करने लगी थी । रनवीर एक एक सप्ताह तक घर से बाहर भी रहता था तभी पूजा उस पर संध्या नहीं करती थी । रणवीर भी दोनों बेटों सहित पूजा के साथ सामान्य व्यहवार करता था । धन का भाव परिवार में अभी भी बना हुआ था जिसका कारण रनवीर काम की मंदी बताता था । पूजा उसकी बात पर विश्वास कर लेती थी । दूसरी और रणबीर और पूजा दोनों ही रोड होता की और पर चले थे और बच्चे किशोर अवस्था को प्राप्त हो रहे थे । ऐसी स्थिति में हर मनुष्य यही आशा करता है कि गृहस्थी की गाडी अब पटरी से नहीं उतरेगी की तो एक दिन अचानक एक ऐसी अप्रतिष्ठित घटना घटित हुई जिसने उन दोनों के प्रेमपूर्ण संबंधों में पुनः पसंद है की दरार डाल दी । अपनी रस्में ही गृहस्ती में तन में पूजा को अचानक ज्ञात हुआ कि रणवीर परिवार के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह पूर्ण निष्ठा इमानदारी से नहीं कर रहा है । दिन रणवीर के कपडे धोते समय पूजा को उसकी जेब से मात्र एक दिन पूर्व फर्नीचर खरीद की सत्तर हजार रुपये के भुगतान की पर्ची मिली । पूजा के संज्ञान में वो फर्नीचर ना तो फॅमिली ने अपने ऑफिस के लिए खरीदा था और ना अपने घर के लिए । इस विषय में उसे रणबीर से पूछने का निश्चय किया । रणवीर को ये अनुमान नहीं था कि बिल भुगतान रसीद पूजा दे चुकी है इसलिए वो इस विषय में किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार नहीं था । इस विषय में पूजा द्वारा अचानक पूछे जाने पर पहले जम्मू सकपका गया और फिर अपना नियंत्रण खोकर पूजा को भला बुरा कहते हुए व्यर्थ थी में उस पर्सन है कर रही है । उसके साथ अनपेक्षित व्यवहार करने लगा । रणबीर के इस व्यवहार से पूजा को संध्या और अधिक गहरा लगने लगा । संदेह के भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट उभरने लगे थे । पूजा की भाव भंगिमा देखकर रणवीर को तुरंत अपनी भूल का आभास हो गया । अभी भूल को सुधारने के लिए उसे संयुक्त व्यहवार करते हुए पूजा को बताया कि वह फर्नीचर उसने अपने एक मित्र के लिए खरीदा है । उस समय रेंजी ने अपने बाल दुर्व्यवहार से पूजा का सामने दूर करने का भरसक प्रयास किया जिसमें वो आंशिक रूप से सफल भी हुआ था । किन्तु विश्वास का धागा बार बार टूट आउट जुडता रहा था । इसलिए रणवीर के प्रति पूजा की प्रेम विश्वास में अब अनेक गांठे बढ चुकी थी । रनवीर का स्पष्टीकरण पाकर पूजा का व्यवहार भी सामान्य हो गया था । यदि पी रणवीर के प्रति पूजा का प्रेम एकनिष्ठ था भी उसके विश्वास में संदेह का अमित पड चुका था । जो अनुकूल तापमान पार्टी ही अपना प्रभाव दिखाने की सामर्थ्य रखता था उसको अनुकूल तापमान शीघ्र ही मिलने की संभावना भी बढ रही थी । की पूजा अब यह संधि को पुष्ट करने के लिए इस बार प्रमाण ढूंढने में तन मन से लगनशील थी । अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उप रह है । रणवीर की जेबे और फाइले सावधानीपूर्वक खंगालती रहती थी । अपनी इसी तलाशी अभिनय में उस साडी इस बात का ध्यान रखती थी कि रणवीर को उसके संदेह की भनक ना लगे क्योंकि वो इस विषय पर रेडमी से कोई वाद विवाद नहीं चाहती थी । रणबीर के साथ किसी भी विषय पर वाद विवाद से बचने के लिए एक वहाँ तक पर्याप्त सावधानी बरतने के बावजूद भी पूजा परिस्थिति पर नियंत्रण रखने में असफल हो गई । वो अपने घर में कलेश नहीं जाती थी पर ऐसा करने के लिए विवश हो गई । प्रियाज के विद्यालय में होने वाली अभिभावक कोष्ठी में जाने के लिए रणवीर कई दिन पहले वचन दे चुका था लेकिन पौष्टिक के दिन उसने प्रियांश को डाटकर वहाँ जाने से इंकार कर दिया । अपने पिता के इंकार से मायूस प्रियांश को अश्वस्त करते हुए पूजा ने रणवीर से गोष्ठी में चलने का आग्रह किया और उसको समझाने का प्रयास किया कि उसने बेटी को डांट कर उचित नहीं किया है । रणवीर को पूजा का बेटे के पक्ष में बोलना प्रिया ना लगा इसलिए वह क्रोधित हो गया और गोष्ठी में चलने के पूजा के आग्रह को कठोरतापूर्वक ठुकराकर उसने खरीखोटी कटु बातें सुनाता हूँ । घर से निकल गया जेडीपी पूजा उस दिन रनवीर के नाराज होने में अपनी गलती का अनुभव नहीं कर रही थी परन्तु परिवार को तनावमुक्त रखने के उद्देश्य से पूजा के समक्ष अपनी गलती मानकर क्षमा प्रार्थना करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प था । रणवीर के घर से जाने के बाद पूजा अपने दोनों बेटों के साथ आर्थिक तनाव से जूझ रही थी । इसलिए रणवीर को घर बुलाने के लिए पूजा ने उसे कई बार घर लौटने का निवेदन किया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा प्रार्थना की । तब चार पांच दिन बाद घर रणवीर वापस लौट आया । चार पांच दिन पश्चात जब रणवीर घर लौटा तो सवा महीने पूर्व की घटना की अचानक ही फिर पूर्ववृत्ति हो गयी । रणवीर की जेब से पूजा को पुना एक पर्ची मिली जिसमें वानी के नाम से विद्युत निगम को एक बडी धनराशि का भुगतान किया गया था । उस परिस्थि को देखते ही पूजा के तनबदन में क्रोध की ज्वाला देखने लगी । क्रोध के आवेश में वो स्वयं के ऊपर संयम रखने में इतनी असमर्थ हो गई । इस बार उसे रणवीर से ना तो कुछ पूछा और ना ही उस से किसी प्रकार के स्पष्टीकरण की आशा की । बल्कि उस पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा वानी के साथ तुम्हारा संबंध अभी तक पहले की तरह ही चल रहा है । उसके साथ तुम्हारा अवैध संबंधों का प्रमाण ये स्लिप है । पूजा को आज ये प्रमाण मिल चुका था जिसको प्राप्त करने के लिए वह पिछले एक महीने से प्रयास कर रही थी । आज इस प्रमाण को पाकर वह स्वयं को सशक्त अनुभव कर रही थी । पर दूर पूजा ये भूल गई थी कि अभी भी वो आर्थिक रूप से रनवीर पर ही निर्भर है । जब की रेड वीर को ये समय भी ऐसा था की ना केवल स्वयं का पेट भरने के लिए बल्कि अपने कलेजे के टुकडों का भरण पोषण करने और पढाने लिखाने के लिए भी पूजा उसका अत्याचारी शासन अवश्य ही सरकार करेगी । रणवीर ने अपने इस विश्वास को चित्र में धारण करते हुए पूजा के क्रोध में कहे गए शब्दों का उत्तर उसी भाषा में देते हुए कहा, हाँ, मेरा और वाणी का संबंध अभी भी पहले जैसा मधुर है । अपनी पत्नी और बच्चों के लिए आप के पास रुपये नहीं है । आप अपने बच्चों की स्कूल फीस समय पर नहीं दे सकते । छोटी छोटी चीजों के लिए बच्चे तरफ से रहते हैं । मैं जानना चाहती हूँ अपनी प्रेमिका के लिए इतनी बडी धनराशि खर्च करने में आपको कोई कठिनाई क्यों नहीं हुई । इसलिए कोई कठिनाई नहीं हुई क्योंकि मैं उसको अभी भी प्रेम करता हूँ और तुम्हारी दिल्ली के लिए बता दूँ कि पिछले महीने सत्तर हजार का फर्नीचर भी मैंने उसी के लिए खरीदा था । तुम भी तो कहा था की की फर्नीचर मैंने अपने एक मित्र के लिए खरीदा था । वही ना तो उस समय तो मुझे छूट बोला था हूँ नहीं मेरी तब भी सच कहा था और अब भी सच कह रहा हूँ । वाणी मेरी वो अभिन्न मित्र हैं जिसके लिए तब मैंने फर्नीचर खरीदा था और मैं उसके लिए कुछ भी कर सकता हूँ । कुछ भी कर सकते हो । अंकित कहना चाहते हो क्या मतलब है तुम्हारे कुछ भी कर सकने का मेरा सीधा और स्पष्ट मतलब है । मैं उसके लिए वो सब कुछ कर सकता हूँ और करूंगा जो मुझसे चाहती हैं और जो मुझे अपेक्षा रखती है । कल को यदि हमारा साथ छोडकर तो मैं आपके साथ रहने के लिए कहीं तो मैं ऐसा भी कर सकता हूँ । इतना धोका कितना पतन । रणवीर की बातें सुनकर प्रतिक्रिया शुरू पूजा इतनी ही कह पाई थी । फिर वो अच्छे होकर वहीं गिर पडी । पूजा को अच्छी व्यवस्था में देखकर शायद रणवीर को कुछ लानी हुई इसलिए उसने डॉक्टर को बुलाकर उसका परीक्षण कराया । उसकी चेतना लौटने पर रणवीर ने राहत की सांस ली । पूजा भी चेतना लौटने पर पति को अपने पास बैठा हुआ पाकर कुछ संतुष्ट हुई । उसने कातर दृष्टि से रंगे की ओर देखते हुए अपना शोक प्रकट किया तो रनवीर ने भी लानी पूर्वक पूजा की और देखा तथा फिर गर्दन झुकाकर कहा पूजा वानी के साथ मेरा कोई संभव नहीं है । उस बिल का पेमेंट भी मैंने नहीं किया था । आपकी जेब में मुस्लिम इस के विषय में मैं तो बाद में सब कुछ बता दूंगा । पहले तो स्वस्थ हो जाओ । मैं बिल्कुल ठीक हूँ और सब कुछ अभी जानना चाहती हूँ की वाणी की विद्युत बिल के भुगतान की रसीद आर्थिक चीज में क्यों थी? पूजा तो ऐसा सोच भी कैसे सकती हूँ कि मैं तो बिना बताए अपनी कमाई किसी अन्य पर खर्च करूंगा । रणवीर पूजा को समझाने का भरसक प्रयास किया परंतु पूजा अपनी हट पर अडी रही कि उसने वानी के बिल का भुगतान क्यों किया । यदि उसने वाणिज्य बिल का भुगतान नहीं किया तो उसके भुगतान की रसीद रणवीर के जेब में कैसे पहुंची आदि प्रश्नों पर वो रणवीर से स्पष्टीकरण मांगती रही । पूजा की हट को देखकर रणवीर ने पूजा के पक्ष में अपना स्पष्टीकरण देकर उस को संतुष्ट करना ही उचित समझा । इसलिए उसने एक ऐसी मनगढंत कहानी पूजा को सुनाई, किससे पूजा का सन है, कम हो जाएगा और वो थोडी सी राहत का अनुभव कर सके । रणवीर ने पूजा को बताया, मैंने अपने नौकर रामू को अपने ऑफिस का विद्युत बिल जमा करने के लिए भेजा था । वहाँ पर विद्युत बिल जमा करने वालों की लंबी लाइन लगी । बेटी रामो भी उस लाइन कई भाग बन गया था । वानी रामू से भलीभांति परिचित थी । वाणी भीड भरी लम्बी लाइन में खडे होने से बचने के लिए रामू से निवेदन किया कि वो उसका बिल भी जमा कर दे चुकी । रामो भी वाणिज्य परिचित था इसलिए वो वाणी का निवेदन ठुकरा रहा सका और उसका बिल जमा करने के लिए तैयार हो गया । वानी के बिल का भुगतान करने के पश्चात रामू ने देखा कि वाणी प्रतीक्षा करके वहाँ से जा चुकी थी । वहाँ से लौटकर रामू ने सारी घटना की जानकारी मुझे दी और बिल भुगतान की स्लिप वाणी को लौटाने के लिए मेरी जेब में रखती है । एक छोटी सी काल्पनिक कहानी सुनकर रणवीर ने एक रहस्य में दृष्टि पूजा पर डाली और बच्चों की भर्ती निष्कपट ने छलकता भोली सी मुद्रा बनाकर पुनाखा । मुझे क्या पता था तो मुझे पसंद है, करने लगी होगी और आपने ये नशा बना लूँगी । किसी मुझे ऐसा पता होता तो मैं इसलिए प्रामो से लेता ही नहीं । पट्टी की भोली भाली मुद्रा के साथ मधुर संभाषण तथा पे पूरन व्यहवार ने उस समय पूजा का शोक कम हो गया । यहाँ तक कि उस समय वह स्वयं अपने व्यवहार के प्रति ग्लानि से भर गई और घर के वातावरण को तनावपूर्ण बनाने के रणवीर के आरोप को वो स्वयं पर स्वयं ही आरोपित करने लगी । पूजा के चित्र में एक संघर्ष सा होने लगा । वो कभी स्वयं को उचित सिद्ध करने का प्रयास करने लगी और कभी स्वयं ही स्वयं को अनुचित सिद्ध करने का प्रयास करती हुई रणवीर को निर्दोष मानने लगी । उसके चित्र में बार बार अनुकूल प्रतिकूल विचारों का तूफान उठने लगा और बिजली की भर्ती कई प्रश्न उसके मस्तिष्क में उभरने लगे चाहिए । मेरे हित आपका भ्रम मात्र है कि रणवीर का वानी के साथ अवैध संबंध घनिष्ठता की ओर बढ रहा है । क्या मैंने अपने संदेह को प्रकट कर के कोई व्यवहारिक भूल की है? क्या सचमुच अपने घर में होने वाले तनावपूर्ण वातावरण के लिए मैं जिम्मेदार हूं? यदि ये सच है तो पहले सत्तर हजार रुपये के फर्नीचर के बिल भुगतान की तथा अभी विद्युत निगम के बिल भुगतान की रसीद, जिसके लिए अभी कुछ समय पहले रणवीर ने स्वयं स्वीकार किया था कि वह भुगतान उसने वाणी की ओर से किया था क्योंकि वो अभी भी वाणी को प्रेम करता है । क्या वो झूठा रणवीर की वो स्वीकारोक्ति सच थी या की कहानी सच है । अपनी अनेकानेक प्रश्नों के समाधान तलाशती हुई पूजा तरीक वितर की की लहरों में भटकती रही । उहापोह में बहुत समय तक रहने पर भी पूजा किसी प्रश्न का समाधान न कर सकी । अंत में उसने निश्चय किया कि वह भविष्य में कभी भी रणवीर पसंद ही नहीं करेगी, क्योंकि संध्या का कभी साकारत्मक हाल नहीं निकलता है बल्कि उसका सदीप नकारात्मक प्रभाव ही पडता है, जिस से घर में तनावपूर्ण वातावरण बन जाता है । अपने घर के वातावरण को तनावमुक्त रखने के लिए पूजा ने स्वयं को दोषी स्वीकारते हुए भविष्य में कभी भी रणवीर पर अवैध संबंधी को लेकर संदेह न करने का संकल्प किया था । परंतु अगले ही दिन उसका वह संकल्प उस समय धराशाई हो गया जब उसको पता चला कि रनवीर सुबह नौ बजे अपने ऑफिस जाने के लिए घर से निकलकर शाम छह बजे तक भी ऑफिस नहीं पहुंचा था । उस से शाम को घर में पूजा की सास आई थी । उन्होंने रणवीर को फोन करके घर बुलाने के लिए कहा तो पूजा ने रणवीर के मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किया । मोबाइल का स्विच ऑफ आ रहा था, पूजा नहीं माँ के आने की सूचना रणवीर को देने के लिए उसके ऑफिस का नंबर मिलाया । वहाँ से उसको उत्तर मिला साहब आज सुबह से ऑफिस में ही पहुंचे हैं । सुबह से शाम के छह बजे तक रहेंगे के ऑफिस में नहीं पहुंचने तथा मोबाइल पर संपर्क नहीं होने से पूजा को रणबीर की चिंता होने लगी थी । उसके चित्र में विभिन्न प्रकार के शुभ अशुभ, प्रिय, अप्रिय विचार आने लगे । कुछ देर तक वो वहाँ पूर्व की स्थिति में बैठी रही कि आखिर रणवीर कहा जा सकता है कई बार उसका हिंदी बहुत से आप उठता था कि रणवीर किसी दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया है । इस प्रकार की शंका मन में होते ही वो पति के कुशल मंगल के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि उसका पति जहाँ भी हो, कुशल मंगल रहे । रणवीर की चिंता में पूजा का चित शांत नहीं हो रहा था तो उसने रणवीर के एक मित्र रवि चुकी रणवीर के साथ प्रायर घर पर आता रहता था । कुछ संपर्क किया और पूछा कि उसे रणवीर के साथ उस दिन कोई मीटिंग थी या नहीं जब मैंने पूजा को बताया कि शाम पांच बजे रणवीर शॉपिंग मॉल में कुछ उपहार खरीद रहा था । रवि की बातों से पूजा की चिंता समाप्त हो गई थी और उसके चित्र में मधुर मधुर कल बनाए सजित होने लगी क्योंकि अगले दिन उनके विवाह की वर्षगांठ थी । इसलिए वह कल्पना करने लगी की शायद आपने विवाह की इस वर्षगांठ को रणवीर स्मरणीय क्षणों में परिवर्तित करना चाहता है । उसका प्रेमपूर्ण है, दीदी है । उन अविस्मरणीय क्षणों की कल्पना करने लगा जब रणवीर उसके लिए उपहार लेकर आएगा और ये दोनों पहली बार अपने दो बेटों के साथ उस रोमांचित करने वाले क्षण को यादगार बनाएंगे । सुखद कल्पनाओं में विचरण करते हुए पूजा पूर्ण रूप से तनाव मुक्त हो गई थी । रमणीय कल्पनाओं में विचरण करते हुए पूजा को रणवीर की समिति ने पे चेंज कर दिया । वो पूना उससे संपर्क करने के लिए उत्सुक थी । उसे आशा थी कि अब तक रणवीर का मोबाइल ऑन हो चुका होगा । अपनी आशा के अनुरूप रणवीर का मोबाइल उसको स्विच ऑन मिला और नंबर डायल करते ही तुरंत रणवीर से उसका संपर्क हो गया । संपर्क होने की अपनी प्रसन्नता के कुमार में पूजा ने रणवीर को कुछ भी बोलने का अवसर दिए बिना उसे मोबाइल बंद करने के लिए कई प्रेम भरे उल हानि दे डाले और अधिक कारण पूरा स्वर्ग में घर आने को कहा । लेकिन उसकी प्रसन्नता को तब ग्रहण लग गया और उसकी रमणीय कल्पना पंख काटे । घायल पक्षी की तरह शत विक्षत हो गई । जब कुछ बोलने का अवसर मिलते ही रणवीर ने बहुत ही मधुर शब्दों में शमा प्रार्थना करते हुए पूजा को बताया कि ऑफिस पहुंचने के पश्चात उसको अचानक किसी कार्य वर्ष शहर से बाहर जाना पडा । वह घर सूचना नहीं दे सकता था क्योंकि उसके मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी । बहुत ही मधुर शब्दों और विनम्र शैली में उस दिन वापस लौटने में असमर्थ होने की बात कहकर रनवीर ने यथाशीघ्र लौटने का वचन दिया । रणबीर की ओर से मित्तियां और नाकारत्मक उत्तर सुनकर पूजा को जैसे लकवा मार गया था । उसे अपना कुछ सुन रहा था और वो कुछ बोल पा रही थी । उसके हाथ से रिसीवर छूटकर नीचे लटक गया । उधर से रणवीर ने भी पूजा को स्वयं का तथा बच्चों का भलीभांति ध्यान रखने का निर्देश देते हुए संपर्क काट दिया । पूजा रणवीर के सप्रे मधुर संभाषण का कोई उत्तर ना दे सकीं थी । उसके मुख से केवल इतना ही निकला । फिर विश्वासघात और वह धर्म से धरती पर बैठ गई । कुछ शहरों में पूजा की चेतना लौटाई । चेतनावस्था में भी उसके कानों में रणवीर की झूठे बहानी भरे शब्द गूंजते रहे कि वह शहर से बाहर है । उसके चित्र में रणवीर का विश्वासघाती चरित्र घूमने लगा और मधुर संभाषण उसके कानों में रेडियो की भर्ती बचने लगे जिनसे वो आज तक ठगी जाती रहती थी । वो पागलों की भारतीय स्वयं से बातें करते हुए कभी हस्ते लगती थी और कभी रोने लगती थी । माँ की ऐसी दशा को देखकर दोनों बेटे चिंतित हो उठे । उन्होंने पिता को इस विषय में सूचना देने का प्रयास किया परंतु अनायास ही पूजा ने उन्हें ये कहकर रोक दिया तुम्हारे पापा शहर से बाहर है । वो इस समय घर पर नहीं आ सकते हैं इसलिए उन्हें डिस्टर्ब करना उचित नहीं है । माँ की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों बेटे ने पिता को सूचना देने का विचार छोड दिया और सिमट गरमा के पास बैठ गए । पूजा अपने कमरे में सदमे किसी अवस्था में निश्चेष्ट लेटी हुई थी । दोनों बेटे सिमटे हुए शांत, गंभीर और चिंतित मुद्रा में माँ के पास बैठी हुई थी । रणबीर की मां दूसरे कमरे में बैठी हुई निश्चिंत होकर टेलीविजन पर धारावाहिक देखने का आनंद ले रही थी । उस समय उस माँ खोना तो बेटे के घर लौटकर नहीं आने की सूचना के विषय में कुछ सोचने की आवश्यकता का अनुभव था, ना ही बहू और पोतों की चिंता थी । वो रनवीर के हर उचित अनुचित कार्य को पुरुष प्रगति के अनुरूप तथा स्वाभाविक मारती थी । उनकी दृष्टि में रणवीर के प्रत्येक कार्य में कोई प्रश्न किए बिना सहयोग करना पूजा का कर्तव्य था । अपनी इस वैचारिक दृष्टि के चलते वे साडी पूजा में दोष निकाल दे रही थी और आज भी अपनी किसी छिद्रान्वेषी प्रकृति से विवश होकर उन्होंने ऊंची आवाज में पुकारते हुए कहा अरे प्रियांश! आठ बज गए हैं । आज खाने पीने को कुछ मिलेगा या भूखे ही सोना पडेगा । तेरी माँ को रोने गाने से फुर्सत हो गई हो तो अम्मा मम्मी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है । मैं आपके खाने के लिए बाहर से कुछ ला दूंगा । आप बताइए क्या मंगाएंगे? प्रियांश ने विनम्र और उदास स्वर में कहा क्या हुआ है ऐसे ऐसा अब जानती हूँ ऐसी बीमारियों को और सीरिया चरित्र को ये कहते हुए पूजा के साथ प्रियांशु के साथ साथ पूजा के कमरे की और चल पडी चल देखो तो क्या बीमारी है । कुछ ही दिनों में वो पूजा के पास खडी हुई कह रही थी क्योरी तो क्या जाती है सब काम धाम छोडकर रणवीर सादा तेरे पल्लू से बंद कर तेरे पास बैठा रहे । तेरे इस नाटक कोई छोटे छोटे बालक भले ही न समझे, पर मैं तो तेरी अच्छे मित्र को अच्छी तरह समझती हूँ । साठ साल की उम्र हो गई है मेरी । मैंने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं । सब जानती हूँ मैं तेरे मन में क्या चल रहा है । जल्द खडी होगी रसोई बनाना पालक भूखे है और मैं भी । प्रियांशु सुधांशु के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने दोनों को ऐसी दृष्टि डाली जैसे की पूजा को उनकी बिल्कुल चिंता नहीं है । इसलिए वह स्वास्थ्य ठीक ना होने का बहाना करके लेती हैं और घर का वातावरण तनावपूर्ण बनाने का प्रयास कर रही है । अपनी दादी का ऐसा आशय समझकर कि उनकी माँ की पीडा की उपेक्षा करके वो उस पर दोषारोपित कर रही है । दोनों ने प्रतिक्रियास्वरूप दादी की और क्रोधपूर्ण दृष्टि डाली और विनम्र संयत शब्दों में कहा अम्मा, आप हमारी मम्मी के बारे में और हमारे बारे में सूचना छोडकर केवल अपने बारे में सोचिए । अब जो कुछ खाना चाहती है, हम बाजार से खरीदकर लगा देंगे । प्रियांश और सुधांशु के उत्तर से आहत होकर क्रूज की मुद्रा में दादी ने कहा, मेरा रणवीर घर में नहीं है तो तुम दोनों मेरा अपमान कर रहे हो । फिर पूजा की और उन्मुख होकर बोली, यही तो जाती थी तू तेरी शिक्षा बोल रही है । इन दोनों के मुंह से अब मुझे हाई पर भी नहीं रुकना है । मुझे यहाँ रहकर अपना अपना नहीं कराना है । मुझे भी लौटना है । ताजी का संभाषण सुनकर प्याज आगे बढकर बोला चलिए अम्मा, मैं आपको बस स्टॉप तक पहुंचा दो । आई ये कितनी निर्लज्ज औलाद है मेरे रणवीर की न बडे छोटे की शर्म है ना घर में आए हुए किसी अतिथि के साथ बात बर्ताव करने की समझ माने । कुछ से कहा है ही नहीं तो बच्चों को व्यवहार करने की शिक्षा कहाँ से मिलती? माँ को खुद ही नहीं पता है कि कब किसके साथ कैसा बर्ताव करना होता है । अम्मा आपको देर हो जाएगी । जल्दी चलो हम आपको बस टॉपर पहुंचा देंगे । इस बार सुधांशु ने दादी को उपेक्षित दृष्टि से देखते हुए कहा था पूजा अभी तक एक शब्द भी नहीं बोली थी । प्रियांशु सुधांशु के तेवर देखकर दादी का क्रोध ठंडा पड गया । पूजा के दोनों बेटों की उसके प्रति सहानुभूति देखकर दादी हद सोहाई होकर बोली, पेटा ये बूढी काया रात में कहाँ बातें तीसरी रहेगी । अब मैं सोचती हूँ, सवेरे उठ कर चली जाऊंगी । हो सकता है तब तक रणवीर भी आ जाएगा ना हो तो जब रणवीर घर आ जाएगा तभी चली है उन की तो मैं ऐसी हालत में छोडकर जाने को मन नहीं मानता मेरा आखिर मैं ही आज तो मैं छोडकर जाऊंगी । तो जमाना बहुत खराब हो गया है । जब अपने ही साथ नहीं देते तो किसी पर आई से क्या उम्मीद की जा सकती हैं । दादी के एक के बाद एक नए रूप को देखकर प्रियांशु सुधांशु परस्पर आंखों से संकेत करते हुए मुस्कुराने लगे और अपनी मम्मी से अनुमति लेकर बाजार से कुछ खाने के लिए लाने को चले दिए । जब वे दोनों चलने लगे । एक बार पुनः दादी ने अपना नया रूप दिखाते हुए गाडी रोककर कहा बेटा खाना तो मैं भी बना सकती थी, पर इन बूढे हाथों का बना हुआ तो मैं शायद रूचे गा नहीं । इसीलिए दादी की इस नई मुद्रा और वाकचातुर्य पर दोनों बच्चे हस पडे । हाँ और एक साथ बोले, नहीं मैं आप के हाथ का बना खाना हमें रूचि करना लगे । ऐसी कोई बात नहीं हैं । होता का आधा अधूरा संवाद सुनते ही उनकी दादी के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभरने लगी । अपनी वाकचातुर्य पर अति विश्वास करके विस्वम ही पराभूत सी दिखाई देने लगी । प्रियांशु सुधांशु दादी की मुखमुद्रा को भाग चुके थे इसलिए उन्होंने हसते हुए उन्हें निर्भय करके अपने संवाद को आगे बढाया । पर हम आपकी अम्मा के बूढी शरीर को कष्ट कैसे दे सकते हैं । हमारी मम्मी ने सिखाया है अपने बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए । उन्हें कोई कष्ट नहीं देना चाहिए हूँ । प्रयास छह सुधांशु की मुझसे पूजा की प्रशंसा सुनकर पूजा की सास का चेहरा सिकुड गया । उन्होंने अपनी नाग मुझे सिकोडते हुए पूजा के प्रति अप्रत्यक्ष रूप से अपनी उपेक्षा व्यक्त करते हुए कहा हाँ हाँ तुम्हें जो सिखाया है मैं जानती हूँ । अब जल्दी जाकर कुछ खाने के लिए लिया । भूख के बारे मेरा तो दम निकला जा रहा है । कुछ समय पश्चात प्रियांश होटल से भोजन ले आया । पूजा के दोनों बेटों ने और उनकी दादी ने पेट भर कर खाना खाया कि आज और सुधांशु के माँ से भी खाने के लिए आग्रह किया था कि दो पूजा का ही बॅाडी था इसलिए उसने कुछ भी नहीं खाया । उसने दोनों बेटों को निश्चित होकर सोने का निर्देश दिया कि उन्हें प्राथा समय पर उठकर अविलंब अपने विद्यालय जाना है । दोनों बच्चे और पूजा की साथ रात भर गहरी नींद में सो की पूजा । कुछ सारी रात एक्शन के लिए भी नींद नहीं आएगी । वो रात भर अपनी भूत और भविष्य के विषय में विचार करती रही । प्रयाप्त सोच विचार के बाद पूजा एक ऐसे पडाव पर पहुंचे जिसका निष्कर्ष उसके आज तक के सभी निर्णय निष्कर्षों से एकदम भिन्न था । इस बार पूजा ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए अपने स्वभाव के विपरीत रनवीर के प्रति अविश्वास रखते हुए भी उसकी ही शैली में व्यहवार करके अपने परिवार को क्लेश मुक्त रखने की योजना बनाई । उसने निश्चय किया कि वह एनजीओ के प्रति अपने हिंदी में उत्पन पसंद है और अविश्वास को उसके समक्ष बिल्कुल भी प्रकट नहीं करेगी । यही नहीं उसने ये भी निश्चित किया कि वह अपने किसी भी व्यवहार से रणवीर को ये क्या नहीं होने देगी की उसकी पत्नी उसके प्रति विश्वास रखती है । इसके लिए पूजा ने निश्चित किया कि वह अपने हिंदी बेस्ट भावों को छिपाकर उसके साथ मधुर व्यहवार करेगी । अपने इस निश्चय के साथ वो बिस्तर से उठी और नहा धोकर स्वस्थ उचित हो गयी । माँ को सामान्य स्वस्थ अवस्था में देखकर दोनों बेटों की जान में जान आ गई । उन्होंने प्रफुल्लित होकर चहकना आरंभ कर दिया । अपने बच्चों को प्रसन्न देखकर पूजा का चित्र खेल होता तो रसोई घर में गए और शीघ्र ही नाश्ता तैयार कर के बच्चों के लिए तथा अपनी सास के लिए परोस दिया । बच्चे जल्दी जल्दी प्रसन्नतापूर्वक नाश्ता करके स्कूल जाने की तैयारी करने लगे । पूजा ने उन्हें लंच बॉक्स देखकर मुस्कुराते हुए भेजा । बच्चों को स्कूल भेजकर पूजा दरवाजा बंद कर के जैसे ही अंदर आई तभी रणवीर का फोन आया हूँ की वो एक घंटे में घर बहुत जाएगा । उसके आने की सूचना मिलने के पश्चात पूजा ने एक बार पुनः अपना संकल्प दोहराया और स्वस्थ चित्र से अपने कार्यों में व्यस्त हो गयी । रणवीर ने एक घंटे में घर पहुंचने की सूचना दी थी किन्तु वो लगभग चालीस मिनट पर शादी घर पहुंचा । रणवीर को अभी तक अपनी माँ के वहाँ आने की सूचना नहीं मिली थी इसलिए वो दरवाजा खुलते ही पूजा के साथ साथ अपने कमरे की और बढ रहा था । लेकिन बेटी के आने की भनक लगते ही माने उसको अपने पास बुला लिया । रनवीर को अपने पास बिठाकर उसकी माँ ने पांच सात मिनट तक कुशल क्षेम आदि की औपचारिक बाद देगी तत्पश्चात उन्होंने पिछली शाम घटित घटना का वृतांत शिकायत के लहजे में सुनाना आरंभ कर दिया । सर्वप्रथम मानी पूजा की शिकायत करते हुए कहा घर की बहू की क्या फर्ज होते हैं । ससुराल से अलग अकेली रह कर ये बिल्कुल भूल चुकी है । फोन पर ये पता चलते हैं कि पति घर नहीं आ रहा है । इसमें पाखंड शुरू कर दिया और सास के लिए खाना बनाना ना पड जाए इसलिए रसोई में जाकर भी नहीं झांका । रणवीर चुपचाप बैठा वामा की बातें सुनता रहा । अपनी बताऊ को आगे बढाते हुए माने । पूजा के विषय में वो सब कुछ बता दिया जो रणवीर के घर ना आने की सूचना के बाद उन्होंने देखा था और जैसी पूजा की दशा थी उन्होंने अपने वृतांत में इतना परिवर्तन अवश्य किया था कि अपनी प्रत्येक बाद में पूजा की उस दशा को उसका पाखंड कह रही थी । पूजा के विषय में पिछली शाम का आपने मनोकूल वृतांत सुनकर संतुष्ट होने के पश्चात मान्य प्रियांश और सुधांशु की शिकायत करते हुए कहा पिता का नियंत्रण न होने के कारण दोनों बच्चे बडे छोटे का सम्मान नहीं करते हैं । यदि अभी इन नियंत्रण नहीं रखा गया तो ये बहुत बिगड जाएंगे । इसलिए इन पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है । मानी प्रियांशु सुधांशु की शिकायत तो रहने से की थी तो उसका सारा दोष पूजा के ऊपर डालकर अंत में अपना विचार साथ सुनाते हुए कहा था ये दोनों बालक है । इन्हें डाटने फट गाने से भी क्या फायदा होगा । इन विचारों को तो जैसे इनकी माँ ने बताया सिखाया था वैसा इन्होंने कह दिया कर दिया पूतु के लिए माफीनामा तैयार करने के पश्चात उसकी आंखों से दो बूंद आंसू टपक पडेंगे । गला भर आया और फिर भराई गले से । उन्होंने पुनर मिर्च मसाला लगाकर क्रमश एक लेने में पिछली शाम की घटना का वह अंश बताना आरंभ किया कि कैसे प्रियांश और सुधांशु ने उन्हें घर से बलपूर्वक निकालने का प्रयास किया था और कैसे उन्होंने अपनी बहू और पोतों से एक रात के लिए घर में आश्रय मांगा था कि बुढापे में घर की एकमात्र बुजुर्ग का अपमान करके अंधेरी रात में वे उसे घर से न निकले । मानी रणवीर को बताया था कि बहुत प्रार्थना करके भी बहू और पोतों ने उन्हें केवल रात भर के लिए घर में रुकने की अनुमति दी थी । यदि अभी वो नहीं आता तो सवेरा होते ही उनके दोनों होते और बहुत उन्हें घर से निकाल देते हैं । बहू और पोतों का शिकायत करने के पाल रणवीर की माउस की और खूब दृष्टि से देखते हुए अपनी आंख पहुंचने लगे और अपने भाग्य को कोसते हुए रोने लगी । रणवीर अपनी माँ के पास बैठ कर पत्नी तथा बेटों की शिकायत सुनते सुनते ऊब चुका था । उसने मुस्कुराते हुए माँ से कहा अगर आपकी नौटंकी खत्म हो गई हो तो मैं जाऊँ । रणवीर का प्रश्न सुनते ही उसकी माने रोना बंद कर दिया और क्रोधित होकर बोली, जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो रखने वाले का क्या दोष? मेरा तो अपना बेटा ही मेरी इज्जत नहीं करता । बहू और पोते कैसे मेरा मान सम्मान रखेंगे और मैं भी उनसे क्या उम्मीद करूंगी । माँ अपने असंतोष व्यक्त करती रही कि दूर रणवीर ने शायद एक शब्द भी नहीं सुना था । अपना प्रश्न पूछने के तुरंत पश्चात वहाँ के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उठकर चला गया था । माँ के पास से उठकर रणवीर अपनी पत्नी पूजा के पास आया । उसने आते ही प्रेम मधुर व्यवहार करते हुए पूजा से पिछली शाम की घटना की चर्चा करते हुए उसके स्वास्थ्य के विषय में सन् देना व्यक्त की और उस समय घर लाने के बारे में खेद व्यक्त किया । नकवी नहीं पूजा से उसके स्वास्थ्य के विषय में पूछते हुए कहा कि यदि आवश्यकता अनुभव कर रही है तो रणवीर उसी समय उसको डॉक्टर के पास प्रभाष परीक्षण के लिए लिया जाएगा । परन्तु पूजा ने कहा कि अब वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है । पिछली शाम के विषय में पूजा ने बताया कि वह कुछ समय के लिए केवल ये सोचकर दुखी हो गई थी कि विवाह की वर्षगांठ होने के बावजूद उसका पति अपनी पत्नी और बच्चों के लिए काम से समय नहीं निकाल सकता है । वो काम इतना व्यस्त रहता है की उसे अपने विवाह की वर्षगांठ का स्मरण भी नहीं रह गया है । पूजा की व्यथा का कारण सुनकर रणवीर ने अपनी भूल स्वीकार कर ली और उस स्कूल के दंडस्वरूप उसने छुट्टी के दिन बच्चों के साथ पिकनिक पर चलने का वचन दे डाला । पूजा भी अब रणवीर की भारतीय उसके साथ मधुर व्यवहार करने लगी थी । वो ना रणवीर के प्रति अपनी कोई शिकायत प्रकट करती थी और न ही अपनी पीडा प्रकट कर के रणवीर से सहानुभूति की उपेक्षा रखती थी । अब वो अपने हिंदी की व्यथा को छिपाकर अपने पति के साथ एक प्रकार का औपचारिक संबंध जीने लगी थी और अपने पति के प्रति अविश्वास यासन है को व्यक्त ना करने की अपने संकल्प का दृढतापूर्वक निर्वाह कर रही थी । यदि पी पूजा के लिए यह अत्यंत कठिन था भी भी । उसे रणवीर ऑपरेसन है तथा उसके प्रति अपने अविश्वास का बिल्कुल भी आभास नहीं होने दिया था । वह चाहती थी कि घर का वातावरण बोझिल ना होने पाए और उसके बेटों की प्रतिभा के विकास पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पडे । पूजा और रणवीर के संयुक्त व्यहवार से सब कुछ सामान्य सा हो गया था । परिवार में प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्नचित दिखाई देने लगा था । रणवीर प्रसिद्ध था क्योंकि उसे लगता था कि उससे अपने मधुर संभाषण और प्रेमपूर्ण व्यवहार से पूजा पर पुनः प्रभावित कर लिया है और पूजा को उसके छल कपट से परिपूर्ण व्यवहारों की विषय में दैनिक भी संध्या नहीं हुआ है । प्रियांशु और सुधांशु अपने मम्मी पापा को तनाव और मतभेद से मुक्त साथ साथ प्रेम से रहते हुए देखकर पैसे थे । इनके साथ ही पूजा भी अत्यंत प्रसन्न थी कि वह अपने संकल्प पालन में सफलता प्राप्त कर रही थी । उसकी इच्छा के अनुरूप उसके बेटों को घर में स्वस्थ वातावरण मिल रहा था और दोनों बेटी सारा दिन प्रफुल्लित होकर चाहते रहते थे परन्तु घर के प्रत्येक सदस्य की प्रसन्न रहने पर भी घर का प्रत्येक सदस्य उस समय सुविधा जीवन जी रहा था । रणवीर एक जीवन पूजा के साथ ही रहा था, जो समाज और कानून की दृष्टि में पैदा मान्य था । तो साथ ही दूसरा जीवन समाज और कानून की आंखों में धूल झोंककर वानी के साथ ही रहा था । किसी प्रकार पूजा भी एक जीवन सामान्य तरीका साथ अपने पति के साथ पति के अनुरूप पति के लिए तथा बच्चों के लिए जी रही थी और दूसरा जीवन पति के प्रति विश्वास, विश्वास के हिंडोले में झूल दावा, निराशा और व्यथा से भरा हुआ जीवन जी रही थी । उन दोनों के समान ही प्रियांशु सुधांशु का जीवन चल रहा था । एक्शन के लिए उनका चित्र अपनी पढाई, खेल और किशोर के अनुरूप मस्ती भरे जीवन की और आकर्षित होता था तो दूसरे भीषण दोनों बच्चों का चित चिंता के समुद्र में गोते लगाने लगता था कि भविष्य में उनके सपनों को साकार करने में उनके पिता का ये थार समर्थता सहयोग रहेगा भी क्या नहीं और रहेगा तो कब तक चितकाल तक उन्हें पिता का साथ पिता कसमें है और सहयोग मिलता रहेगा अथवा जीएसटी और सहयोग अलग काल के लिए हैं । प्रियांशु सुधांशु अब बडे हो गए थे । प्रियांशु अब के आस पास की प्रत्येक घटना पर गंभीरतापूर्वक विचार करता था । अच्छा पूजा अब हर संभव प्रयास करती थी कि उसके परिवार का वातावरण सामान्य रहे बनी । रणवीर को लगता था कि उसके मित्तियां और कपटपूर्ण मथुर संभाषण ने पूजा के हिंदी पर विजय पताका फहराकर उस पर अपना नियंत्रण कर लिया है । परंतु पूजा के चित्र में चिंता और अविश्वास का अपना अस्तित्व बना हुआ था, जिसका दैनिक सा भी आभास रणवीर को नहीं था, क्योंकि झूठ और फरेब की नींव पर टिकी प्रेम संबंधों की इमारत अधिक टिकाऊ नहीं होती है । इसलिए रणवीर द्वारा बनाए गया वित्तीय संभाषणों का आधार लेकर अपने प्रति पूजा के विश्वास का प्रसाद भी हल्का सा झटका लगते ही तहस नहस होने के कगार पर खडा रहता था । ऐसा प्रतीत होता था कि ऐसी नाजुक परिस्थिति में रणवीर छलकपट युक्त मधुर व्यवहार का थोडा सा सीमेंट लगाकर उस प्रसाद का स्थायित्व देने का प्रयत्न कर रहा था या शायद प्रेरित करने का अभिन्न यही करता था ।
Writer
Sound Engineer
Voice Artist