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आख़िरी ख़्वाहिश अध्याय -22 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
“यात्रा कैसी थी?” उसने मेरे चेहरे को दुलारते हुए पूछा। “मैं ड्‍यूटी पर था।” “ठीक है! मुझे पता है कि इसका मतलब क्या है। यह विद्यार्थियों के लिए एक यात्रा थी और मेरे लिए नहीं।” मेरे कहने का मतलब वह हमेशा समझ लेती थी और उसमें मेरे लिए बोलने का साहस था। मैं मुसकराया, लेकिन कुछ बोला नहीं।, सुनिए प्यार भरी कहानी| writer: अजय के. पांडेय Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ajay K Pandey
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बाइस इलाहाबाद में स्नातक की पढाई के दौरान एक बार मैं स्वरूपरानी सरकारी अस्पताल गया था । एक दोस्त के साथ दुर्घटना घटती थी और हमने आपात स्थिति में उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया । खुशी घायल पांव का अगले दिन ऑपरेशन किया गया था । शुरू में डॉक्टर ने कहा था कि केवल कुछ ही टांके लगेंगे लेकिन सरकार उसे अपना बायां पैर खोना पडा था । किसी भी सरकारी अस्पताल के साथ मेरी आखिरी मुठभेड थी । हालांकि ये दस साल पहले हुआ था और ये इलाहाबाद नहीं था । ये दिल्ली था । दिल्ली में कई स्थापित सरकारी अस्पताल है । इनमें से कुछ तो अंतरराष्ट्रीय मांगते हैं । सामर्थ्य और एक महीने से अधिक समय तक मेरे मरीज को अस्पताल में भर्ती रखने की जरूरत नहीं । मुझे सरकारी अस्पताल में जाने को विवश कर दिया । इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए की बहुत सारे रोगी सरकारी अस्पताल में आते हैं । मुझे पूरा विश्वास था दूसरी बार मेरा सामना एक अनुभवी हाथ से होगा । मैंने मूल्यांकन करने का फैसला किया कि क्या वे इलाज के लिए एक विकल्प के रूप में पर्याप्त थे । अंतर रहा । मैंने बिना किसी देरी के दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ सरकारी अस्पताल की कंप्यूटर पर खोज की । मुझे एक मिला । पहले वहाँ सीधे जाने की जगह मैंने उन्हें फोन करने का विचार किया और डॉक्टरों के बारे में कुछ बुनियादी ज्ञान तथा उनके परामर्श समय की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की । अस्पताल की वेब साइट के संपर्क खंड पर गया और मेरे लिए आश्चर्य था । ये अलग खंड था । एड्स पूछताछ तीन लैंडलाइन नंबर दिए गए थे । मैंने एचआईवी एड्स रोगियों के लिए पर्याप्त संवेदनशील होने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया । मैंने पहला नंबर डायल किया, इसीलिए जवाब नहीं दिया । मैंने फिर से डायल क्या? दूसरी बार और फिर व्यर्थ में तीसरा । इससे मुझे झुंझलाहट हुई । कोई भी नंबर साझा करने का उपयोग किया । बॉल लेने के लिए वहाँ कोई भी नहीं होता है । मैं निराशा में चलाया । शायद मुझे कुछ समय तक इंतजार करना चाहिए और फिर से प्रयास करना चाहिए । मैंने खुद से कहा, मैंने कुछ समय बाद पुनः डायल किया । आखिरकार चौथे प्रयास में उनका जवाब एक महिला ने दिया था । तीन आवाज आई । उसने स्वयं का परिचय देने की औपचारिकता नहीं दिखाई । पिछले ही घंटे से फोन कर रहा हूँ । आप कौन हैं? आप क्या पूछना है? उसने मेरी टिप्पणी नजरअंदाज कर दी । वो जल्दबाजी में लग रही थी । जैसे कि लेने उसे प्राकृतिक क्रिया कलाप के दौरान कॉल कर दी होगी । मैं एक रोगियों के इलाज के बारे में जानकारी चाहता हूँ । अस्पताल की ओपीडी में आई होगी की पर्ची बनवाई और आपको डॉक्टर के बारे में जानकारी मिल जाएगी । इस सब कुछ हो था जो असंवेदनशील महिला ने मेरा फोन काट लेंगे । पहले कहा था उसने कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया था । एक घंटा पहले में भारत सरकार को धन्यवाद दे रहा था और अब मैं पूरी शाहब दे रहा था । इस इस ट्रेलर था कोई फिल्म अभी देखने बाकी थी । निश्चित रूप से दुसरे होने जा रहा था । मुझे अभी भी कोशिश करनी है । मैंने खुद को आश्वस्त किया । मैं अस्पताल के ओपीडी काउंटर पर पहुंचा जहां रोगियों को कतार संख्याएं आवंटित की गई थी । लोगों का एक विशाल समुद्र था, डाॅक्टर थे और प्रत्येक पर कतार में लगभग सौ लोग थे । एक सुरक्षाकर्मी व्यवस्था में व्यस्त था और लोगों की निगरानी कर रहा था तो बात ये छडी लिए हुए था और से नहीं जा रहा था जिससे वो अस्पताल का मालिक हो तो पीढी की लाइन है ये मैंने उससे पूछा लाइन पर वापस जाओ तो लगभग एक कुत्ते की तरफ होगा । वास्तव में पागल कुत्ते की तरह व्यवहार कर रहा था । इधर गया था । अगर मैं वहाँ कुछ और घंटों के लिए खडा रहा तो मुझे कहीं रेबीज के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना पडे । मुझे भी एक ही नहीं था कि क्या ऐसा होने से पहले मैं टोकन नंबर प्राप्त कर सकूंगा । मैं आगे पीछे घूमते हुए अनुग्रह संख्या में लोगों को ध्यान से देख रहा था । बहुत डरे हुए चेहरे थे और एक चेहरा ऑफलाइन में एक समस्या के लिए था । लेकिन उन शहरों में से एक फेस की तरह पांचवा रहा था । डर गया था । मेरी पहली मुठभेड कुत्ते के साथ हुई थी और अभी ध्यान से मुझे घूम रही थी । उसकी आंखों में एक अजीब उम्मीद थी । इससे मैं समझ नहीं पाया एक व्यक्ति मेरे जैसे निराशाजनक व्यक्ति में आशा कैसे देख सकता है । मैं लंबित हुआ तो मेरे पास आया । आप एक ओपीडी नंबर चाहते हैं? नहीं, मैं यहाँ फिल्म देखने के लिए आया था । चंचला हो मत भाई, अभी घंटा अस्पताल में है । उसने पांच से भरा मुॅह घंटा अस्पताल मैंने दोहराया । इसे स्पष्टीकरण मांग रहा था कि वो वास्तव में क्या कहना चाहता था । उसने पानकी पीठू की और कहा सरकारी अस्पताल अगर आप चाहे तो मैं अभी एक ओपीडी नंबर के साथ आपकी मदद कर सकता हूँ । किस तरह तो बाहर चाय पीते हैं । अगर तुम चाहो तो रुपया यहाँ बताओ । मैं चाय पीने के मूड में नहीं हूँ । मुझे उसके व्यवहार पर्सन था नहीं है तो मेरे साथ कोने में आइए । उसने स्टाफ पार्किंग क्षेत्र की ओर इशारा करते हुए कहा, हम गए और दो कारों के बीच में खडे हो गए । मुझे उसके बारे में बुरा नहीं हो रहा था । लेकिन टोकन नंबर मिलने की गारंटी के बिना मुझें कतार में खडे होने का साहस नहीं था तो मेरी सहायता कैसे कर सकते हो? ओपीडी नंबर के लिए एक हजार रुपये लगेंगे । एक हजार और सरकारी फॅमिली पहुंच रुपए पाँच रुपए में आपको यहाँ बोर्ड से पहले तीन बजे से लगना होगा और एक टोकन पाने के लिए नौ या दस बजे तक प्रतीक्षा करनी होगी । क्या ऍसे कहा सभी लोग यहाँ इतने लंबे समय तक खडे रहेंगे या विश्वास नहीं था, हो गया लगता है कि वह फिल्म देखने के लिए यहां खडे हैं । उसने मुस्कराते हुए कहा, आपको भाग्यशाली महसूस करना चाहिए कि आपके पास पैसा है, कुछ शरारत से मुस्कराया, एक हजार बच सकते हैं । लानत की कतार में खडे होने से आप कैसे जानते हो कि मेरे पास पैसा है । दस साल से एक ही काम कर रहा हूँ । आप बाहर से आए और वीआईपी पार्किंग में वाहन पार्क क्या पहली बार कोई मुझे सम्मान दे रहा था? लेकिन हालत कारणों से चार ऍम चाहते हैं तो मुझे हाथो हाथ बताइए वरना मेरा समय बर्बाद मत कीजिए । ठीक है लेकिन मुझे कैसे यकीन होगा कि बिना मेरी बात सुनिए । उसका हाथ अपनी जेब में पहुंचा । उसने ऍम फोन निकाला और किसी को कॉल लगाए । उन्होंने कुछ इस तरह बात की जो एक सामान्य व्यक्ति कभी समझ नहीं सकता है । आपका नाम और उम्र क्या है? अच्छे से पाँच देखते हुए उसने मुझसे पूछा मैं विजय और उन पतीसा, डॉक्टर या विभाग का नाम एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना है । स्त्री रोग विशेषज्ञ उसपे कॉल पर दूसरी और बात कर रहे उस व्यक्ति से दोहराया हो गया, मुझे पैसे दीजिए, ओपीडी पर्ची के साथ घूमना नहीं । पहले मुझे पर्ची लिखाओ, बस ये पांच सौ दीजिए । मुझे इसका हिस्सा हाथों हाथ देना बाकी बाद में भुगतान किया जा सकता है । कम होने की उम्मीद में मैंने से पहले ही था पैसा कैसे हमारे संघर्ष को काम कर सकता है । आपके पास पैसा है तो स्थिति एक पूर्ण यू टर्न ले लेती है । लेकिन उसके रोगी का नाम क्यों नहीं पूछा था? क्या वो खाली पडती के साथ आ रहा है? उस व्यक्ति का नाम? संपर्क, जानकारी आखिर क्या है? क्या मुझे मूड बना रहा था? लाल हो के साथ हिंसा पंद्रह मिनट के बाद दिखाई दिया । आप विश्वास के साथ उसका सिर ऊँचा था । मेरे पास आकर उसने मुझे कागज का एक टुकडा दिखाया । पेपर में विवरणों को क्रॉस कर रहा था । उसने उसे छीन लिया । पहले मुझे शेष पांच सौ रुपए का भुगतान करें, भुगतान किया और पेपर को देखते हुए मैंने पढकर सुना । रोगी का नाम विजय और बत्तीस कम से कम मुझे धन्यवाद दें । पांच । विश्वास चाह रहा था जैसे उसने अभी अभी दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी । लेकिन रोगी का नाम आस्था है । मैं मरीज नहीं हूँ । आपने विजय कहा, हमने रोगी का नाम नहीं पूछा था । तुमने मेरा पूछा था तो मैं आपकी मदद नहीं कर सकते । हम को मेरा पैसा वापस करना होगा । नहीं, मैं नहीं कर सकता । अब एक काम कर सकते हैं । विजय को विज्ञान में बदलने और इससे उद्देश्य पूरा हो जाएगा । लिंग के बारे में क्या पुरुष होगी? किसी रोग विशेषज्ञ को कैसे संदर्भित हो सकता है । मेरा हथियार भी काटने का सुझाव मत देना । मैंने गुस्से में कहा । उसने अपनी कलम, गोली हमको काटा और ऍम चार कोई नहीं देखने जा रहा है क्योंकि आपने लाल फोटो से मुस्कराया और कहा ये सरकारी अस्पताल है ।

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“यात्रा कैसी थी?” उसने मेरे चेहरे को दुलारते हुए पूछा। “मैं ड्‍यूटी पर था।” “ठीक है! मुझे पता है कि इसका मतलब क्या है। यह विद्यार्थियों के लिए एक यात्रा थी और मेरे लिए नहीं।” मेरे कहने का मतलब वह हमेशा समझ लेती थी और उसमें मेरे लिए बोलने का साहस था। मैं मुसकराया, लेकिन कुछ बोला नहीं।, सुनिए प्यार भरी कहानी| writer: अजय के. पांडेय Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ajay K Pandey
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