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अम्मा: जयललिता -2 (तन्हा बचपन) in Hindi

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8 K Listens
AuthorSaransh Broadways
तमिल फिल्मों की ग्लैमर गर्ल से लेकर सियासत की सरताज बनने तक जयललिता की कहानी एक महिला की ऐसी नाटकीय कहानी है जो अपमान, कैद और राजनीतिक पराजयों से उबर कर बार-बार उठ खड़ी होती है और मर्दों के दबदबे वाली तमिलनाडु की राजनीतिक संस्कृति को चुनौती देते हुए चार बार राज्य की मुख्यमंत्री बनती है| writer: वासंती Voiceover Artist : RJ Manish Script Writer : Vaasanti
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तनाव बचपन संध्या को जल्दी ही एहसास हो गया कि अभिनय के अपने प्रस्ताव जीवन में उसके लिए अपने बच्चों का ठीक से खयाल पाना असंभव था । इसलिए उसने अपने बच्चों को अपने पिता के पास बंगलौर भेज दिया । छोटे से बच्चे को हमेशा अपनी माँ की याद सताती रहती है । बच्चे संध्या के संक्षिप्त प्रभास का इंतजार करते रहते थे जब पहले उपहारों और मिठाइयों से लगी हुई बंगलौर पहुंचती थी । दोनों बच्चों को पुस्तकें पढना पसंद था पर संध्या उनके लिए बडी संख्या में कहानियों की किताबें लगती थी ताकि जब वापस चेन्नई के लिए रवाना हो तो होने के बजाय किताबों में कुल छे रहे हैं । बंगलौर के अपने नए स्कूल विशप कॉटन में हमलोग का मन लग गया था । यहाँ उसने चार साल बताये । इसके बाद बच्चों के जीवन में एक बार फिर उथल पुथल आएगी संध्या की बहन पद्मा की जो बहुत अब्बू की देखभाल करती थी । शादी हो गई और बहन ससुराल चली गई । ऐसे में संध्या ने बच्चों को दोबारा चेन्नई लाने का फैसला किया । जयललिता अपनी माँ के पास दोबारा आकर बहुत खुश थे लेकिन जल्दी ही उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी माँ पहले से कहीं ज्यादा व्यस्त हो चुकी थी और बच्चों के साथ समय बिताने के लिए उसके पास नहीं के बराबर समय था । जयललिता अपनी माँ के साथ रहने की लालसा को कभी भी छोड नहीं पाए । चपेट दस साल की थी तब उससे चेन्नई के प्रतिष्ठित स्कूल चर्च पाॅइंट में दाखिला लिया । पढाई में अव्वल पहने और अपने मतलब रुपये बाहर के कारण बहुत जल्दी कि शिक्षकों की प्यारी बन गए । उसके साथ की लडकियाँ उसकी खूबसूरती कि प्रशंसक थी । उसका नाम खुला था जो दक्षिण भारतीयों के लिए असामान्य बात थी । लम्बे रेशमी बाल थे और उस पर से खूबसूरत आंखें । एक अभिनेत्री की बेटी होने के कारण उसके व्यक्तिगत क्लाइमर की एक अतिरिक्त आभाव थी । स्कूल में मिलने वाली प्रशंसा ने जयललिता को जहाँ खुशी और आत्मविश्वास दिया वहीं अंदर से पहले इस बात को लेकर बहुत खुश थी कि उसकी खुशियों और चिंताओं को बांटने के लिए संध्या कभी भी उसके पास नहीं होती थी । आगे चलकर अपनी आत्म कथा में उसने लिखा कि कैसे दो दिनों तक अपनी माँ से नहीं मिल पाने के बाद अगली रात देर रात तक चाहिए रही उन्हें अपना निबंधन दिखाने के लिए जिसका शीर्षक था मेरी माँ मेरे लिए उसके क्या मायने हैं । उसने बांध के लिए जयललिता पुरस्कृत हुई थी और उसके शिक्षक को उसका लेखन इतना पसंद आया कि उसने पूरे क्लास को से पढकर सुनाया । उस रात जब संध्या काफी देर से घर लौटी तो उसे बेटी गहरी नींद में मिली । उसके सीढी पर एक नोटबुक पडी थी । जब संध्या ने जयललिता को उठाना चाहते तो पहुँचा कहीं बहते आंसुओं के बीच उसने वहाँ को बताया कि कैसे पहले पिछले दो दिनों से उसे अपना निबंध दिखाना चाह रहे थे । संध्या उसके पास बैठ गई और उसे निबंध पढकर सुनने को कहा । जयललिता ने उस घटना के बारे में लिखा है, उन्होंने मेरे कालों को सहलाया और यह कहते हुए मुझे जो माँ की यह बहुत ही खूबसूरत में बंद हैं । मैंने मुझे गले लगाते हुए कहा मानकर मैंने तो वह इंतजार कराया । ऐसा दोबारा नहीं होगा लेकिन ऐसा बारंबार हुआ माँ का इंतजार करना एक आदत बन गई । किसी के साथ निराशा हर नाराज की पैदा हुई और वह बेवक्त घर आने वालों, फिल्म प्रोड्यूसरों और डॉक्टरों से चेन्नई लगी । उसने अपने हाथ की सारी किताबें पढ डाली । मालूम है उसके लिए इस अप्रिय माहौल से बचने का एक उपाय हूँ । उसे डॉक्टर या वकील बनने का सपना देखा था । या फिर भाग्यशाली रही तो भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल होती है परन्तु पहन फिल्मी दुनिया से दूर रहने के लिए अटल थी हूँ । जयललिता को बहुत पहले ही पता चल गया था कि एक्टिंग के पेशे से बदनामी जुडी हुई है । किसी अभिनेत्री की कोई इज्जत नहीं करता है । चाहे कितनी भी मेहनत करें कितना भी सफल हूँ । संध्या और उसके बच्चे त्याग रहा है । नगर में शाॅ स्ट्रीट पर रहते थे जब जयललिता तेरह वर्ष की थी । पडोस में दो घर दूर रहने वाली एक लडकी ने उस से मित्रता की । पहली चर्च पार्क कॉन्वेंट नहीं थी से दो साल सीरियल अब उनको इस दोस्ती पर करता था क्योंकि एक सीनियर आम तौर पर जूनियरों से फैसला बना कर रखा करती थी । चला लेता खोजते कि शाम को स्कूल से आने के बाद कोई तो है साथ देने के लिए दोनों लडकियाँ छत पर जा कर पाते करना पसंद करती थी । जयललिता को मालूम नहीं था कि उसके मित्र इतना नियमित रूप से उसके छत पर आपने ऍम गुपचुप संदेशों का आदान प्रदान करने आती है । लडका एक चयन व्यवसायिक का बेटा था । बहतु घर दूर सडक के अंत के अपने मकान की छत पर खडा रहता है अपने मित्र के हरकतों पर गौर करने के बाद जयललिता ने एक दिन पूछ लिया कि आखिर चल क्या रहा है? लडकी ने बता दिया कि उसे उस लडके से प्यार है और उसने जयललिता से उसके माता पिता को यह राज नहीं बताने का आग्रह किया । उसने जयललिता से एक आग्रह और क्या की जिस दिन भर उसके यहाँ नहीं आ पाए तो वह लडके तक इशारों में यह सूचना पहुंचाते । जयललिता एक रहस्य की राजदार बनकर पर एक प्रेम प्रसंग में मध्यस्थ बनकर बहुत रोमांचित थी । अगले दिन उसके मित्र नहीं आई । जब लडके को उसके मित्र दिखाई नहीं पडी तो उसने इशारों में जयललिता से पूछा की बह रहा है । जयललिता ने भी इशारों में ही बता दिया की बहन नहीं है । उस मोहल्ले में दूर भेजने वाली एक महिला ने एक दिन कुछ प्यार से जुडी इन हरकतों को देख लिया और फिर अगले ही दिन उसने इसका तो हर आरोपी देगा । अब वह भागकर लडकी के घर गयी और उसके माता पिता को आगाह किया कि वे अपनी बेटी को एक अभिनेत्री के घर नहीं भेजे हैं क्योंकि अभिनेत्री कि बेदी एक इश्कबाज है । उनकी बेटी की प्रतिष्ठा को गिरा देगी । लडकी ने जयललिता के घर आना बंद कर दिया । जयललिता को इस नए घटनाक्रम की जानकारी नहीं थे इसलिए बहुत पता लगाने उसके घर गई कि आखिर क्या बात है । पहले अब आप रह गई जब उसके मित्र ने मात्र एक दूध वाली की कही बातों के आधार पर उसे अंदर नहीं आने दिया । उसने कहा कि तुम ने मुझे लडके से मिलवाया और मुझे बिगाडा है । लडकी की मां अपनी बेटी के पीछे की और या चढाई खडी थी । पाक जयललिता को ऐसे घूम रही थी मानव सारा दोष उसी का होगा । जयललिता नहीं अपना विरोध दर्ज कराना चाहा लेकिन यह देखकर हो गई की लडकी में अपनी माँ से सच कहने का साहस नहीं रहा । आप पहले उसे बलि का बकरा बनाने के लिए तैयार थे । जयललिता इस घटना से होने के साथ साथ अंदर तक दुखी भी थी । अपनी आत्मकथा में उसमें लिखा है, मुझे विश्वासघात शब्द का मतलब है मालूम हो चुका था । मैंने बिल्कुल निष्कपटता के साथ उस लडकी की मदद करने की कोशिश की थी । मैंने सोचा उसके सामने खडे रहना भी मेरे लिए अपमानजनक है । मैं भाग कर अपने घर आ गई और छप्पन के लिए बैठे घंटों तक रोते रहे या एक अपमानजनक था । मैंने अपनी माँ को इस बारे में कभी नहीं बताया । संध्या ने शुरू में अपनी बेटी के लिए फिल्मों में करियर की बात नहीं सोचे थे पर वह अपनी बेटी को एक अच्छी नृत्यांगना जरूर बनाना चाहते थे । बेंगलुरु से रहने के लिए चेन्नई आने के साथ ही प्रमुख उस दौर के प्रतिष्ठित सत्य शिक्षक कीजिए संस्था के संरक्षण में रख दिया गया । जयललिता जपात् में एक बेहतरीन नृत्यांगना बनी । नत्य सीखने के इच्छुक नहीं लेकिन सबसे बडे ही धैर्य भाग और प्रेरक शिक्षक थी और उन्होंने उसे इतना प्रशिक्षित कर दिया की मई उन्नीस सौ साठ में जब मैं मात्र सहारा साल की थी, अपनी नृत्य कला का पहला मंच पे प्रदर्शन कर सके । फिल्मों से जुडे कई बडे लोग संध्या की बेटी का पहला डरते प्रदर्शन देखने आए । चीन में उस जमाने के अनेक प्रमुख अभिनेता, अभिनेत्री और प्रोड्यूसर्स शामिल थे । उस तरह की सबसे प्रतिभाशाली अभिनेता शिवाजी गणेशन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे । उन्होंने जयललिता के डरते की तारीफ की और सोने की मूरत जैसी प्यारी बताया । मैं चाहूंगा कि यह बेहद लोकप्रिय फिल्म स्टार बनें । संध्या और जयललिता उनकी इस बात से खुश थे लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया । दोनों का तरह संकल्प था कि जयललिता फिल्मों की दुनिया में नहीं जाएगी नही शिवाजी को इस बात का अनुमान था टू जैसे कालू वाली क्या नहीं बच्चे एक दिन उनके साथ उनकी नायिका के रूप में अभिनय करेगी । जयललिता की सहपाठी और उनकी राजनीति में आने तक उनकी नजदीकी मित्र रही श्रीमती के पास अपने स्कूल के दिनों के अनेकों कैसे हैं तुझे याद करते हैं । यहाँ एक लिखित नियम था की चर्चा की सारी लडकियाँ साॅस कॉलेज जाएंगे इसलिए हमने भी इस पहला जाने का फैसला किया चले तथा कहाँ करती थी कि वह आईएस ज्वाइन करेगी या डॉक्टर बनेंगे । पढाई लिखाई के क्षेत्र में अपने भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित थी इसलिए जब उसकी मां उसे फिल्म शूट पर साथ ले जाती है तो अपना विरोध जताते लेकिन ज्यादा जोर शोर से नहीं क्योंकि अपने स्वभाव से ही अच्छे प्रभार बडी लडकी थी चला लेता । अक्सर अपनी माँ से कहती है कि फिल्मी दुनिया का माहौल उसे पसंद नहीं है पर ये है कि फिल्मों से जुडे पुरुष है और उसे कामुकता भरी नजरों से देखते हैं । जया कहाँ करती थी जब मैं चाहती हूँ की कमी नहीं यहाँ बैठे मुझे मैं उन्हें देख कर चलना चाहती हूँ । हर तरह ॅ पतले और मोटे और तेल चुपडें माँ मुझे उनके साथ बैठने और बातचीत करने के लिए कहती है । मुझे से नाॅन के साथ ही जब कहती थी कि श्रीमती को अब भी वो याद है । सहायता और पर जयललिता को अहसास था कि उससे बहस करने के लिए बात किया जा रहा है कि उसकी प्रकृति के विपरीत है तो उसे भी अपने सहपाठियों की तरह एक सामान्य पारिवारिक जीवन जीने की चाहते हैं । श्रीमती याद करती है कि जहाँ से स्कूल से लेने के लिए उसकी माँ या भर पिताजी आते थे नहीं चला । नेता के कारण अक्सर तेल से आती है इसलिए मैं उसकी कार आने तक उसके साथ रहती थी । मुझे अपनी मैट्रिकुलेशन की परीक्षा के दौरान एक वाकया याद है । हमें परीक्षा देने के लिए लेनी पेनिंगटन कॉलेज जाना था । परीक्षा प्रवेश पत्र लेने के बाद हम स्कूल के बाहर अपनी अपनी कारों का इंतजार कर रहे थे लेकिन उसकी कार आई ही नहीं । जब मेरे पिताजी मुझे लेने आए तो उन्होंने उसे भी परीक्षा केंद्र तक छोडने का प्रस्ताव किया ना उसकी परीक्षा छोड सकती थी । मेरे पिताजी फिल्म स्टूडियो में फोटोग्राफर का काम करते थे और उन्हें जानती थी तो मैं थोडा हिचकिचाई लेकिन फिर हमारे कार्य में बैठ गए । इस छोटी सी बात होता है । कभी नहीं बोले । बहुत भावनात्मक होकर इस घटना की चर्चा करते हैं । तुम्हारे पिताजी ने मदद नहीं की होती हैं तो मैं परीक्षा नहीं दे पाते हैं । मैं कहती हूँ मेरे घर में किसी को चिंता नहीं है । उस स्कूल से बेस्ट आउटगोइंग स्टूडेंट का शीर्ष मिला था । उसने पूरे राज्य में दूसरा स्थान प्राप्त किया था । इसके पास जो स्कूल के पुरस्कार समारोह में उसके घर से कोई नहीं आया था । श्रीमती ने आगे बताया हूँ मैं कॉलेज में पडने की पहुंच चुके हैं लेकिन एडमिशन आरंभ होने से पहले ही आपके के खेल के कारण फिल्म संसार में पूरी तरह उतर चुकी थी और आए थे और ओवन की शूटिंग करने में प्रस्तुत थी । इसलिए उसने मुझसे इस निर्देश के साथ उसके लिए भी फॉर्म खरीदकर भर देने के लिए कहा की है । उसके लिए वही विषय भरता हूँ जो मैंने अपने ले चुके थे । मैंने फाइन आर्ट्स चुना था और उसके लिए भी किसी विकल्प कुचल दिया । शुल्क जमा करा दिया । मैं सत्र के पहले दिन कॉलेज आएगा ऍम इसमें बहुत कडे अनुशासन का माहौल था । जयललिता खाली हाथ कक्षा में आई थी । कोई नोटबुक किताब नहीं लग रहा सुशीला मेरी जयललिता के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे । उन्होंने जैसे कुछ सवाल पूछे जयललिता ने कहा कि उसके पास किताब नहीं है । लेक्चरर बहुत क्रोधित हो गए, पहचाना को डांटने लगी और उनके सामान मनोज रुकने का नाम नहीं ले रहे थे । तो फिर तुम क्लास में आई हूँ । सिर्फ एक गुडिया की तरह कपडे पहनने के लिए दोपहर के खाने के लिए कर गई । पत्थर कभी कॉलेज वापस नहीं आई । मैंने उस से पूछा कि मैं उस पर कायम हो गई है । उसने कहा है उस तरह के माहौल को छोड नहीं सकते हैं । मैंने उनसे कहा कि मैं किसी दूसरे कॉलेज में पढने की कोशिश करेंगे । तब उसने कहा कि उसे इस बात का एहसास हो चुका है कि एक्टिंग पर पढाई दोनों साथ साथ करना असंभव है । पास अपने तरफ उस समय फिल्मों में इतनी व्यस्त थी कि उसके लिए पढाई करने का समय नहीं था । मैं अपनी फिल्में एमजीआर के साथ अभिनय कर रहे थे तो आदमी जो उसकी जिंदगी की दिशा को अच्छा हो जाता हूँ पूरी तरह पता निकालने वाला था । जयललिता बिना सोचे समझे दूसरी दुनिया में कदम रख चुकी थी । इस बात से अनभिज्ञ के यहाँ दुनिया है । सपनों पर हताशा की साजिश करता हूँ और चालबाजों की फॅमिली

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Sound Engineer

Producer

तमिल फिल्मों की ग्लैमर गर्ल से लेकर सियासत की सरताज बनने तक जयललिता की कहानी एक महिला की ऐसी नाटकीय कहानी है जो अपमान, कैद और राजनीतिक पराजयों से उबर कर बार-बार उठ खड़ी होती है और मर्दों के दबदबे वाली तमिलनाडु की राजनीतिक संस्कृति को चुनौती देते हुए चार बार राज्य की मुख्यमंत्री बनती है| writer: वासंती Voiceover Artist : RJ Manish Script Writer : Vaasanti
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