3. Apni Sabse Badi Yojanao Ko Hamesha Gupt Rakhein in हिंदी
नमस्कार हूँ । आप सुन रहे हैं फॅमिली पिछले एपिसोड में अपने संपूर्ण जाने की नीति का पहला अध्याय सुना । अब हम सुनने जा रहे हैं दूसरा दूसरे अध्याय की शुरुआत में ही चरण के कहते हैं कि झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छलकपट, मूर्खता, अत्याधिक लालच करना, अशोभनीयता और दयनीयता ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते हैं । स्त्रियों के विषय में जाने की उपयुक्त धारणा का कारण क्या रहा था, यह कहना तो कठिन है, परंतु सभी स्त्रियों में ये स्वाभाविक दुर्गा हूँ, यह संभव नहीं । चानकी के काल में स्त्री शिक्षा का निश्चित रूप से अकाल रहा होगा । इसी आधार पर चाहे के नहीं, इस तरी को मूर्ख, लालची, अशुद्ध, झूठी, छली आदि कहाँ होगा लेकिन दया हीनता की भावना स्त्री का स्वाभाविक दोष नहीं माना जा सकता । चाइना के कहते हैं कि भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से बचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त हो । प्रेम करने के लिए अर्थात रहती सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो । ये सभी से किसी तपस्या के फल के समान होते हैं अर्थात कठिन साधना के बाद ही ये सुख प्राप्त होते हैं । आगे कहते हैं कि जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो इस तरह उसके अनुसार चलने वाली हो अर्थात पति व्रता हो जो अपने पास ढंग से संतुष्ट रहता हो उसका स्वर्ग यहीं पर हैं और कहते हैं कि पुत्र वही है जो पिता भागते हैं । पिता वही है जो अपने बच्चों का लालन पोषण करता है । मित्र वही है जिसमें पूर्ण विश्वास हो और इस तरी वही है जिससे परिवार में शोक शांति व्याप्त हो । जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हूँ और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से आपके सारे कार्यों में रोडा अटकाता हो ऐसे मित्रों को उस घडे के समान त्याग देना चाहिए जिसके भीतर विश भरा हूँ और ऊपर उनके पास दूध धारा पूरे मित्रों पर और अपने मित्रों पर भी कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि कभी नाराज होने पर संभव आपका विशिष्ट मित्र भी सारे रहस्यों को बाहर जाकर प्रकट कर सकता है । मन में बिचारे गए कार्यों को कभी किसी के सामने नहीं करना चाहिए । अभी तू उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने मतलब सोचे हुए कार्य को करते रहना चाहिए । निश्चित रूप से मूर्खता, दुखदाई और योवन भी दुःख देने वाला है परंतु क्रिस्टो में भी बडा कष्ट दूसरे के घर पर रहना होता है । निश्चित रूप से मूर्ख व्यक्ति के समाज में कोई सम्मान नहीं । बेकिंग व्यक्ति को पक पक पर अपमानित होना पडता है और परिहास का पात्र बनना पडता है । इसी प्रकार योवन के आने पर भी आदमी कभी कभी अपना विवेक और आपा थे, बेटा है । जवानी में आदमी का जोश और उत्साह तो खूब बडा चढा होता है पर वह अपना होश भी खोले रहता है । उसमें अपनी शक्ति का अहम इस कदर बढ जाता है की उसे अपने सामने वाला व्यक्ति तो अच्छे दिखाई देने लगता है । जाने के का कहना है कि किसी को व्यवस्था में जब दूसरे के घर पर निर्भर रहना पडे तो उसका अपना वर्चस्व समाप्त हो जाता है । उसे दूसरों की कृपा पर निर्भर रहना पडता है, उसकी स्वाधीनता नष्ट हो जाती है और यही उसके दुखों का सबसे बडा कारण होता है । आगे चल के कहते हैं कि हर एक पर्वत में मनी नहीं होते हैं और हर एक खाते में मुक्तामणि नहीं होती है । साधु लोग सभी जगह नहीं मिलते हैं और हर एक वन में चंदन के वृक्ष नहीं होते हैं । यहाँ में समझाते हुए कह रहे हैं कि अच्छी चीजें सभी जगह प्राप्त नहीं होती । पर्वत श्रंखलाओं के मध्य खनिज पदार्थ भरे पडे हैं उनमें हीरे जवाहरातों की खदानें भी है परंतु सभी पर्वतों में ये प्राप्त नहीं होते हैं । विशेष गुण वाली वस्तुओं को वेस्ट स्थानों में ही खोजना पडता है । मध्यम लोगों का कर्तव्य होता है कि वे अपनी संतान को अच्छे कार्य व्यापार में लगाए । क्योंकि नीति के जानकार बस अब व्यवहार वाले व्यक्ति ही कुल में सम्मानित होते हैं । चाहे कि कहते हैं कि जो माता पिता अपने बच्चों को नहीं पढाते हैं वे उनके शत्रु होते हैं । ऐसे अपन बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते जैसे हंसू के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता हूँ । अत्यधिक लाड प्यार से पत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते हैं और तारना से गुडी हो जाते हैं । भाव यही है कि से शी और पुत्र को यदि ताडना का भय रहेगा तो वे कभी भी गलत मार्कर नहीं जाएंगे । आचार्य चढा के कहते हैं कि एक स्लोग आधार स्लो स्लो का एक चरण, उसका आधा अथवा एक अच्छा ही सही या आधा अक्सर प्रतिदिन जरूर पढना चाहिए । कहने का अर्थ है कि शिक्षा से ही लोग व्यवहार का रहस्य प्रकट होता है । इसलिए हमें हमेशा पढते रहना चाहिए । स्त्री का वियोग, अपने लोगों से अनाचार, कर्ज का बंधन, दूसरे राजा की सेवा, दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा ये सभी अग्नि न होते हुए भी शरीर को जलाकर राख कर देते हैं । नदी के किनारे खडे ब्लॅक दूसरों के घर गई इस्त्री मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । इसमें कोई भी संशय नहीं करना चाहिए । आगे चल के कहते हैं कि ग्रामीणों का बाल विद्या है । राजा ुका बाल उनकी सेना है, वैश्यों का बाल उनका धन है और शूद्रों का बाल छोटा बनकर रहना अर्थात सेवा कर्म करते रहना है । आपको इन बातों का भी ध्यान रखना चाहिए कि वैष्णो निर्धन मनुष्य को ताजा पराजित राजा को पक्षी फलरहित बृक्ष को अतिथि उस घर को जिसमें वो आमंत्रित किए जाते हैं, आपको भोजन करने के पश्चात छोड देते हैं । ब्राहमण दक्षिण ग्रहण करके यजमान को शिक्षक विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को फाॅर्स जले हुए वन को त्याग देते हैं । इस श्लोक में चाणक्य ने कहा है कि किसी प्रयोजन के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी के पास जाता है तो उसे कार्य पूरा होते ही वह स्थान छोड देना चाहिए । उद्देश्यपूर्ति के बाद वहाँ रुकना किसी भी दृष्टि से उत्तम नहीं है । बुरा आचरण और थार दुराचारी के साथ रहने से पास द्रष्टि रखने वालों का साथ करने से अर्थात अशुद्ध स्थान पर रहने वालों से मित्रता करने वाला शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । बुरी संगत का सदैव बुरा असर पडता है । यहाँ जाने के लिए किसी और ध्यान खींचा है । चाइना की समझाते हैं कि मित्रता हमेशा बराबर वालों में ही शोभा पाती है । नौकरी राजा की अच्छी होती है । व्यवहार में कुशल व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है । मित्रता कभी भी दो स्तर वालों में सफल नहीं होती है । एक साथ स्वभाव एक समान समाज में जीवन स्तर एक से कर्म दो व्यक्तियों के बीच में मित्रता के आधार हो सकते हैं । नौकरी हमेशा सरकारी अच्छी होती है क्योंकि इसमें स्थायित्व होता है । जो व्यापारी चतुर और व्यवहारकुशल होता है वहाँ इस समाज में सम्मान का पात्र होता है और सुंदर स्त्री घर में ही शोभनीय होती है । ये आप सुन रहे थे चाणक्य नीति का दूसरा अध्याय फॅमिली के साथ आइए बढते हैं तीसरे अध्याय की और हूँ