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अदभुत प्रेम की विचित्र कथा - Part 8 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
अदभुत प्रेम की विचित्र कथा writer: अश्विनी भटनागर Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ashvini Bhatnagar
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हैं । आठ तीन महीने बीत गए थे पर डैनी को कोई काम नहीं दिया गया था । उसने अनुभव का दरवाजा खटखटाने की कोशिश की थी, पर वो बंद ही रहा था । दूसरी तरफ विशाल आपने वन से बात तो जरूर करता था और बैंक के किसी भी मुद्दे के पास उसे फटक में नहीं देता था । साफ था उन्होंने मिलकर उसके हाथ बांध दिए और कोने में बिठा दिया था । हाल ही में मुख्यालय से इंस्पेक्शन के लिए टीम आई थी । तीन दिन ठहरी थी । अनुभव और विशाल ने उसकी घेराबंदी ऐसी की थी । इसको डैनी के होने का एहसास तक नहीं हुआ था । इस दौरान विशाल ने डेनी से कई काम किए थे जिसकी वजह से उसको तीर रात तक दफ्तर में बैठना पडता था । पर मेल मुलाकात उसको दूर रखा गया था । नहीं और मोना तक पर ये कर्म फरमाया गया था और डैनी को पीछे के कमरे से बाहर नहीं आने दिया गया था । दैनिक खून का घूंट पीकर रह गया था डैनी को फल इस इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि उसने टीम के सामने पेश करने के लिए क्रेडिट का डिवीजन पर बहुत मेहनत से प्रेजेंटेशन बनाया था । बहुत दिनों से विशाल माता बच्ची में लगा हुआ था कि किस तरह से बैंकों के कारणों की बिक्री पढाई जाए और उसे कोई तरकीब सूट नहीं रही थी । हर कोशिश नाकामयाब हो रही थी । बात पता लगते ही डैनी ने अपना दिमाग को इस परेशानी को सुलझाने में जोड दिया था और जल्द ही कारगर तरीका भी ढूंढ निकाला था । उसके हिसाब सहित बैंक को बडे कॉरपोरेट घरानों को धूप में कार्ड बेचने चाहिए थे । जिनको भी अपने मुलाजिमों को बॉक्स और अन्य सुविधाएं देने के काम मिलना सकते थे । इस तरह बिल जमा करने की जरूरत नहीं पडती थी । सिर्फ क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट ही काफी था । फर्जी बिल बनवाना भी इससे खत्म हो जाना था । मैंने को यकीन था इस की सोच बैंक के आला अफसरों को पसंद आएगी और उनकी निगाहों में चढ जाएगा । ऐसा हुआ नहीं था । अनुभव और विशाल ने उसको बांध दिया था । उन लाचार छूट में था पर अपना रोना किसी के आगे नहीं हो सकता था । हर हफ्ते वो घर फोन करता था पर इधर उधर की बात नहीं करता था । एकप्रश्न बताया कि कौन से नए कपडे खरीदे थे तो कभी फ्रिज, रंगीन टीवी सेट खरीदने के बारे में बताया । हर बार माउस की खरीदारी सुनकर चौंक जाती थी । उनकी समझ में नहीं आता था कि दिन में सिर्फ तीन महीनों में उसे कुछ कैसे खरीद लिया था । इसको जुटाने उन्हें पूरी उम्र लग गई थी । रंगीन टीवी तो अभी उनकी बहुत से बाहर था । एक रह अपना हम गलत करने के लिए डैनी ने घर की कमी पूरी कर दी थी । जो भी की खुशी से चहकती आवास सुनकर उसके दिल को कुछ राहत मिली थी । डैनी ने गिरिजा को कुछ मर्तबा फोन तो किया था और उस से मुलाकात सिर्फ एक बार और हुई थी । बोलना की दूसरी पार्टी में गिर जैसे मिलना उसे अच्छा लगा था और दोनों खूब नाचे थे । एक बार अपने हालत पर फिर जैसे मशविरा लेने का खयाल उसका दिमाग में आया था । आखिरकार नौकरी का तजुर्बा फिर जब वो से ज्यादा था और वो उसको अमल में नहीं लाया था । वो नहीं चाहता था कि गिर जा । उसको ऐसा आदमी समझने लगे, अपनी परेशानियां नहीं संभाल सकता था । गिरजा खुद मुख्तार थी, अपनी जिम्मेदारी खुद उठाती थी, कॅश नहीं । अपने को लाचार सा कैसे पेश कर सकता था । उसका ड्रॉप खत्म हो जाता है और गिर जा उसको किनारे करके आगे बढ सकती थी । डैनी चुप मार गया था और अंदर ही अंदर घुटता रहा था । दफ्तर में बडी खबर इंस्पेक्शन टीम के जाने के दो हफ्ते बाद आई थी । तीन ने वापस लौटकर अनुभव की तारीफों के ऐसे पुल बांध थे कि सिंगापुर पोस्टिंग का तोहफा उस पर नजर करना लाल भी समझा गया था । उस की तनख्वा दी इस कदर बढा दी गई थी कि सुनकर डैनी चकरा गया था । पर उसके बाद का धमाका इतना बडा था टेनी लडखडा गया था अपने को संभालते हुए उसका मुंह से कई बार तो मैं निकला था । अनुभव जा रहा था और उसकी जगह दुशाला रहा था । बिना एमबीए के ही वो ब्रांच हेड बन गया था । हो गई दैनिक डिग्री धरी जेब भरी रह गई थी मैं । खबर के साथ दैनिक झटके में दफ्तर की पूरी राजनीति समझ में आ गई । विशाल ने पहले से ही अनुभव अपनी जान में फसा रखा था । बडे तरीके से उसने अनुभव को हर छोटे बडे काम के लिए अपने पर आश्रित कर लिया था । जहाँ भी अनुभव फसता था, विशाल चुप चाप मदद कर देता था । उसका साया भी था और जिन भी जो मेरे आका के अंदाज में हर वक्त पे शेख हिम्मत रहता था । दैनिक भर्ती से जहाँ विशाल को सीधे खतरा महसूस हुआ था वहीं अनुभव भी उसे आगे नहीं बढने देना चाहता था । अनुभव में आप विश्वास की कमी थी । ऍसे वो और बढ गई थी । अगर वो डैनी को काम करने देता तो उस पर हावी हो सकता था । शायद उसने रहने की आंखों में सबको जल्द हासिल करने की ललक भी पढ ली थी । उस पर नकेल कसने के लिए उस को काम से दूर रखना जरूरी था । डैनी को यकीन था कि अनुभव को विशाल में ही ये महीन सियासी खेल समझाया था । असल में डैनी बदबूदार सरकारी बैंक के बहुत बडे अग्नेसे आदमी से हार चुका था । प्रशाल ने सलीके से डैनी को हाशिये पर लगाकर खुद को अनुभव का खासुलखास बना दिया था । काम ना देकर उसको हिस् हद तक अनुभव की नजरों से दूर रखा था कि वह भूल ही गया था । एक और एनडीए उसके दफ्तर में काम करता था । उधर विशाल ने अनुभव की आंखों में अपने को इस कदर चला लिया था कि उसके अलावा उसे कुछ दिखता ही नहीं था । विशाल ने फिर धीरे से अपना काम बना लिया था और ब्रांच हैड वन बैठा अनुभव की विदाई पार्टी दैनिकों एक और जख्म दे गई थी । अनुभव ने वहाँ पहले विशाल की खूब तारीफ की थी और फिर साथियों का नाम लेकर उनका शुक्रिया अदा किया था । टेनिस के ठीक सामने बैठा था पर अनुभव के जवान पर उसका नाम तक नहीं आया । दूसरी तरफ विशाल ने डैनी को ब्रांड का दूसरे नंबर का अवसर फौरन घोषित कर दिया था और आपने नीचे काम करने का न्यौता दे डाला था । मैंने ये सुनकर बन गया था नंबर दो और वो भी विशाल के नीचे और मैं डैनी उस रात अपने अंधेरे बंद कमरे में लेता अपनी किस्मत को पूछता रहा था । उसकी आंखों के सामने केवल में बैठे हुए हल्के से मुस्कुराते हुए विशाल का चेहरा नहीं चाहता था तो उसे हर सांस में कई बार सर कहने के लिए उकसा रहा था । तो बिलबिला जाता था पैसे ट्रेनिंग सोचने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था की नौकरी करते हुए उसे कुछ महीने ही हुए थे । जबकि विशाल के पास बैंक का आठ साल का तजुर्बा था । उसका ब्रांच हेड बनना शायद वाजिब था । वो तो अपने को अनुभव से जोडकर सोच रहा था । उसकी तरह भाव भी तो एकदम कोरा था । जब से पॉलिश कंपनी से बैंक में लाया गया था जब हैड बन सकता है तो डेनी तो नहीं बन सकता था की की विशाल कहाँ से आ गया था । क्या बिजनेस स्कूल में नहीं बताया गया था कि उनके यहाँ पढ लेने के बाद लडके सीधे ऊपर बैठते हैं । किसी खटारा बैंक के तजुर्बेकार ओके नीचे काम नहीं करते । सब होना एनडीए की पहली थी । बर्दाश्त से बाहर थी । अनुभव उसे पसंद नहीं था । पर कम से कम वो बिजनेस स्कूल भ्रमण था उसके पास । अकल जी बच्चे का खिताब तो था । उसके नीचे थोडे समय के लिए काम किया जा सकता था लेकिन ध्यान के साथ नहीं । दैनिक खून खोल रहा था । उसके सामने का मंजर बेहद नागवार था । उछल के साथ वो काम नहीं कर सकता था । एक दिन भी नहीं । अगर वह भी सामने होता तो डाॅन देता हूँ । उससे मुझे घडी पर नजर डाली थी । अभी रात को सिर्फ ग्यारह बजे थे । उसने फ्लैट पर पाला जडा । पता नहीं क्यों पास के पीसीओ पर जाकर ज्योति को फोन लगाया था । ज्योति मैं कल से पैसे भेज रहा हूँ । शाम तक स्कूटी खरीद लो । उससे कहा था और फिर काफी देर तक चुप चाप छोटी के मुझे मान के साथ इसको ने खाता रहा था । ज्योति कि बक बक और स्कूटी को लेकर उसका दीवाना पर उसके दिल को अजीब सा चयन दे रहा था । ज्योति के बाद उसने वहाँ से लंबी बात की थी और पिता से भी है । मैंने जब डांट कर कहा था इन लोगों को जरा संभलकर चल रहा । अरे अनाब! शनाब तरीके से पैसे बर्बाद मत कर तो उस से अच्छा लगा था । उनकी झिडकी सुनकर हजार था और उसको अपनी हंसी हो खुली सी लगी थी । घर बात करके देने की तबियत शायद कुछ सुधरी थी । वो कुछ देर टहलता रहा था और फिर अपने कमरे में आकर गहरी नींद हो गया । देर से उठकर उसने गंदे कपडे फिर से पहले थे । विशाल का ब्रांच हेड के तौर पर पहला दिन था पर उसको क्या परवाह ही प्रशाल को थी और अपने गहरे रंग के सूट के साथ हल्की गुलाबी टाई लगाकर वो खूब जम रहा था । अनुभव भी आया था बैंक का काम शुरू होने से पहले उसने विशाल को खजाने की चाबियां भाव आने की रस्म अदा की थी । मोना ने टेक ओवर की फाइलों पर लाल रंग का फीता भी वान दिया था और जिस समय अनुभव ने उनको विशाल को सौंपा था उस समय डैनी को लगा था । जैसे कि डोनाल्ड अनुभव मेन ट्रक के काले लोथार सरीके विशाल को तोफा दे रहा था । रस्म पूरी होने के बाद जैसे ही विशाल अपनी कुर्सी पर बैठा था तो उँगलियों से कमरा भूल गया था । विशाल के साथ ही लंबे समय तक तालियां बजाते रहे थे । उनका उत्साह देखकर अनुभव सब पकडा गया था । उसे लगा था कि लोग विशाल के आने से ज्यादा उसके जाने की खुशी में ताली बजा रहे थे । डैनी को भी हो गया था मोना निशा और विशाल के बीच में शुरू से ही मिली भगत थी । उन्होंने वास्तव में अनुभव का चरखा का आता था । कुछ अनुभव पर तरह आ गया था । अनुभव उनके चम्बल में रहा था और से पता भी नहीं चला था का उसने डाॅॅ स्कूल वालों पर भरोसा क्या होता है न केंद्र, सरकारी बैंक एक लडकों पर प्रशाल नहीं आते ही डैनी को काम में जोड दिया था । दिनभर दौडता था और अगर से काम में कोई भूल चूक हो जाती थी उस पर बढता नहीं था । वो हिस्सा से डैनी को जाहिर कर देता था । उसकी गलती पकडी गई थी और दुरुस्त भी कर दी गई थी । कुछ दिनों बाद विशाल ने जब दैनिकों क्रेडिट कार्ड की बिक्री को बढाने के लिए कोई तरकीब सोचने के लिए कहा था तो मैंने अपना पुराना प्रजेंटेशन निकाल लाया था । विशाल ने उसे ध्यान से सुना और फिर उसे मंजूरी दे दी गई थी । डैनी ने विशाल से बिक्री का लक्ष्य छोटा रखने को पढा था । उछल मान गया था और काम शुरू होने के कुछ तो बात । उसने लक्ष्य पंद्रह फीसदी पढा दिया था । टैनी ने और मेहनत करनी शुरू कर दी थी । पर जैसे ही वो लक्ष्य के पास आया था विशाल ने उसको फिर दस फीसदी बढा दिया था । विशाल का कहना था कि बैंक के बडे अफसर डिग्री की नई रणनीति को परीक्षण के मामले की तरह ले रहे थे । उसको कारगर साबित करने के लिए बिक्री का लक्ष्य साधारण से ज्यादा होना चाहिए था । दैनिक बात समझ में आ गई थी और पूरे जोश से अपने को साबित करने में लग गया था । छह महीने में ही उसने मैदान मार लिया था । अपने काम में दैनिक इतना शुरू हो गया था कि गिरिजा को फोन करना उसको याद नहीं रहता था । अपनी तरफ से गिर जा जब भी फोन करती थी तो वह बातें हमसे बात करूंगा । वायदा करके फोन रख देता था । डैडी गिरिजा से बात करना तो चाहता था और सुबह आठ बजे से लेकर रात के ग्यारह बजे तक फुर्सत नहीं मिल पाती थी । इस दौरान डैनी को विशाल कभी बहुत अच्छा लगता था तो कभी बहुत बुरा काम करने में भी । उसे कभी भी बहुत आनंद आता था तो कभी वो ज्यादा था । पर अच्छा हो या बुरा वैसे हालत नहीं रहना चाहता था तो उसको अपने होने का अहसास दिलाते रहते थे । ये जरूर था कि वह ब्रांच हेड नहीं था और विशाल को सर भी कहना पडता था । पर इन सब छोटी बातों का उसके लिए वास्तव में कोई मतलब नहीं रह गया था । विशाल उसका भूत बना रखा था और वो पेड से उल्टा लटककर खुश था । रहेंगी अगर उसकी दशा देखता तो कहता क्षेत्र हैं, पडे रहेंगे कि बुरी तरह निश्चित नहीं थी बल्कि अच्छी वाली थी । जिसके निकलते ही मन और तन हल्का हो जाता था, डाॅन कर रहा था । एक के बाद एक महीना कर अव्वल नतीजे ला रहा था । उसकी जिंदगी में एक मस्त साजिश की निर्मल धारा बहनी शुरू हो गई थी । उसको भला और क्या चाहिए था?

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अदभुत प्रेम की विचित्र कथा writer: अश्विनी भटनागर Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ashvini Bhatnagar
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