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छह डैनी मु अंधेरे उठ गया था आपने इस्त्री किए हुए कपडों को उसने एक बार फिर उलट पलट कर देखा । कमी स्टाॅक और रुमाल सब करा रहे थे । घर से चलते वक्त पिताजी ने उसे अच्छे से टाइटन दिया था जो उन्हें सालों पहले एक विद्यार्थी ने भेंट में दिया था । भाई पर लगकर पिन खूब फब रही थी । काले जूतों को पिछली रात ही वो अच्छी तरह से चमका चुका था । दो दिन से वो बालों में शैंपू करना टाल रहा था क्योंकि पहली नौकरी के पहले दिन बालों में नई चमक अच्छी लगती नहीं । आराम से तैयार हुआ । कई बार उसने अपने कोशिशें मैंने हारा था । चलते चलते से माँ की याद आ गई थी । कुछ हो गया आंखें मूंदकर उसने माँ का खयाल किया था और उन्यासी गायत्री मंत्र मन ही मन पडने लगा था । माँ से कम से कम तीन बार पडने को हमेशा कहती थी पहले कभी उनकी राय प्रश्न ध्यान नहीं दिया था । पर आज आज बरबस ही सब कुछ हो गया था । बस एक कमी थी होती तो उसे गले लगाकर बहुत सारा आशीर्वाद भी दे दी । उनकी गैरमौजूदगी उसको बेहद खटक रही थी । दैनि ने भरे मन से फ्लैट का ताला बंद किया और आपने पहले दफ्तर में पहले दिन की अपनी आमद लिखाने निकल पडा । दीनानाथ उर्फ डीना और ऍम एनडीए अंतरराष्ट्रीय बैंक के करोड प्लेस दिल्ली ऑफिस में पसीने से धरपकड पहुंचा था । उसने ऑटो में सफर करने के बजाय टैक्सी पकड ली थी । ऍम स्कूल वाले ऑटो नहीं बैठते । उसको बताया गया था । लेकिन कोर्ट की वजह से जल्दी उसे पसीना छूटने लगा । जमजम आती इमारत की छठी मंजिल पर पहुंचते ही उसने राहत की सांस ली थी । वहाँ वातानुकूलित बयार बह रही थी । कुछ पर रोककर बयार कोसना अपने में समेट लिया था । वो अब इसी आबोहवा में रहेगा । उस पर अपना मालिकाना हक जमाएगा । डाॅक्टर पसंद था । पाए मैं हेल्प हूँ । ऍम कहा फॅस को नजर भर के देखा और फिर मुस्तैदी से प्रमाण । मेरा नाम दीनानाथ है । दे नहीं मुझे ब्रांच हेड से मिलना है । ज्वाइन कर रहा हूँ तो तो आप नहीं हैं । एक मिनट सर उस हिसाब से कहा था और ऍम पर बात करने लगी थी । हालांकि उस की निगाहें डैनी पर ही टिकी जी होना है । उसमें डैनी को ब्रांड झटके केविन की तरफ ले जाते हुए बताया था और फिर हल्के से मजाक किया था । मैं देख रही हूँ कि नई भर्ती में सुधार आ गया है । पहले की भर्तियां भी पूरी नहीं है । मैंने नहीं भारत से कहा था मोना हस पडी थी । दफ्तर में काम करने में मजा आएगा । ऍसे सोचा था । ब्रांच है तो देखते ही डैनी को लगा था । जैसे किसी ने उसे पालने से सीधे उठाकर ऑफिस में बैठा दिया था । वो छोटा सा मोटा सा बच्चा था । इसके दूध के दाम भी अभी आने बाकी थे । कदकाठी भी ठीक वैसे ही थी और जब डैनी से हाथ मिलाने के लिए आगे बडा ऐसा लगता जैसे कोई बता उसकी तरफ चली आ रही थी । आए ऍम बडे महीन तरीके से तो चलाया था ऍम अनुभव मैं है पर यहाँ एक दूसरे को पहले नाम से ही पुकारते हैं और ऍम मैं टी ना फॅसा जवाब दिया था । अनुभव अपने नाम के अनुसार अनुभव को कम मिलाते हुए किसी तरह से अपनी कुर्सी पर फिर बैठ गया और एक फाइल उठाकर उसमें लगती कागजों में मुश्किल हो गया था । पहले कुछ घंटों तक उस की तरफ देखता रहा था । शायद कुछ और रहेगा । पर अनुभव अपने ही गणित में उलझा हुआ था । दस मिनट के इंतजार के बाद कहने की समझ में आया कि बच्चा हुआ आदमी तो बार बार अंकों से भरे कागजों को उलट पुलट कर इसी गायब संख्या को तलाश रहा था तो परेशान था की उस की बडी सी आंकडे से कैसे निकल भागी थी । पंद्रह मिनट के इंतजार के बाद टहनी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए हल्के से खाता था । उसके जवाब में अनुभव ने फोन उठाकर काफी मंगवाई थी और हालांकि उसका सिर्फ अपने लिए ही कहा था चपरासी दो कप कॉफी लिया था कॉफी के प्यालों पर सुनहरे रंग का सुंदर डिजाइन डैनी को बहुत भाया था । अंतरराष्ट्रीय कंपनी में काम करने की बात ही कुछ और है । उसे मन ही मन कहा था । हर चीज बडे नफासत से करते हैं ये लोग । उधर अनुभव अनुभव उसके काम नहीं आ रहा था । आधे घंटे से ज्यादा बीत चुका था जिसके दौरान उसका तेज जमा कई बार चक्कर हिंदी की तरह घूम चुका था और परेशानी अभी भी मोबाइल खडी थी । दैनिक दोबारा खाता था और इस बार अनुभव ने अपने दो अधिकारियों को तलब कर दिया । दोनों उम्र में उसे काफी बडे थे । जब देखो हम लोगों ने क्या किया है कुछ लाया एक घंटे से ढूंढ रहा हूँ, मिल नहीं रहा है कहाँ है वो आता हूँ करता तो इसी में था कहाँ गायब हो गया है मैं मैं देखता हूँ सर दोनों में से सामने और लंबे वाले नहीं । मखमली लहजे में कहा था सिर्फ देख ही नहीं बल्कि ठीक से इसको स्टडी करो । आधे घंटे में मुझे पूरी रिपोर्ट चाहिए । अरे हेड ऑफिस वाले सुबह से मेरा यहाँ उठाये हुए हैं । अनुभव पडता था और फिर उसने फाइल उठाकर उन पर ठीक थी । दोनों ने फाइल के कागज उठाए थे और चुप ऍम निकल गए थे । अनुभव कॉफी मांगने की प्रक्रिया दौड रही रहा था कि एकाएक उसे डैनी की मौजूदगी के एहसास ने टंक मारा था । तुम मैं ऍम कर पूछा था जी जी सर, तो तुम यहाँ बैठे किसका इंतजार कर रहे हो? उसमें चेंज खडा कर रहा था । अभी तक काम सीखना क्यों नहीं शुरू किया? तुमने अनुभव बदनुमा अंदाज में उठा और अपनी भारी चांगों को आपस में रहते हुए बाहर निकल गया था । कुछ देर बाद वो सामने रंग वाले आदमी के साथ लौटा था । विशाल ये ऍम अपने साथ ले जाओ और उसको सारा काम समझा दो और अरे इससे पहले मैं भूल जाऊँ । मैं औपचारिक तरीके से बैंक में तुम्हारा स्वागत करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि बैंक और तोहरे बीच का रिश्ता दोनों के लिए फायदेमंद रहेगा । उसने कटे हुए अंदाज में कहा था, शुक्रिया दैनि ने हल्के से झुककर कॉर्निश की थी । अनुभव बहुत ही अक्लमंद है । विशाल ने कमरे से बाहर निकलते ही कहा था, हमारी जिंदगी टॉपर रहा है । हमारे यहाँ इनको अकल ची बच्चे कहते हैं । उनके साथ काम कर के बहुत कोशिश हो गए । ऍम विशाल की तरफ गौर से देखा था । वो पता करना चाहता था कि उस ने तंज किया था या फिर वाकई में वह अनुभव भक्त था । विशाल का चेहरा कोहरा था । उस पर से कुछ पढा नहीं जा सकता था । मैं एक साल से यहाँ हूँ । इससे पहले मैं आठ साल तक एक सरकारी बैंक था । अनुभव में छह महीने पहले जॉइन किया है । इससे पहले वह कलकता में जूतों की पॉलिश बनाने वाली एक कंपनी में था । बिजनेस स्कूल छोडने के बाद इसकी पहली नौकरी थी । छह महीने उसमें रहा फिर यहाँ आ गया । प्रचल भाव के बारे में कहा जाता है कि वह चीन इयर्स है । गलत तो उसका कोई जवाब ही नहीं है और शायद इसी वजह से बैंक वालो ने उसे पॉलिस कि कंपनी से उठाकर यहाँ ब्रांच हेड बना दिया है । ये बडी बात है क्योंकि हमारे बैंक की सिर्फ छह ही ब्रांच है । हालांकि वित्तीय वर्ष के हम तक बीस हो जाएंगे । विशाल ने बडी तफ्सील से बैंक के बारे में डैनी को समझाया था तो खुद क्रेडिट कार्ड डिवीजन का मुखिया था और दैनिक उसके नीचे लाया गया था । चार अन्य लोग से देखते थे और दो ऑफिस का काम काज संभालते थे । अभी हमारे डिवीजन छोटा है । धीरे धीरे इस में काफी इजाफा होने वाला है । फॅमिली को खबरदार किया था । ब्रांच हेड को छोडकर दफ्तर में सभी खुले हॉल में बैठते थे । सब के पास एक छोटी सी काम करने की बढिया जगह थी । मर्द मुलाजिम गहरे रंग के सूट पहने हुए थे । दिन पढाई के साथ कडक सफेद कमीज बहुत खुबसूरत लग रही थी । काउंटर पर हल्की नीली साडी पहने खडी लडकियाँ पडे अगर वह सलीके से ग्राहकों से पेश आ रही थी । संजीव जी और एहतराम से माहौल लबा लब था । डैनी को बैंक में इंतजाम भाग गया था । आर्थिक उदारीकरण की नीति अपने साथ महकदार और खूबसूरत दफ्तर लेकर आई थी । जिनमें ना तो पहले की तरह चिल्ला चिल्लाकर बोलने वाले ग्राहकों के हुजूम थे और नहीं उनसे निकलती पसीने की बदबू थी । अंतरराष्ट्रीय बैंक अपने साथ अपना काम करने का तरीका साथ लाये थे । इसमें क्राइम के लिए लाल कालीन बिछा था । काउंटर से तीन फीट पहले ही सफेद लकीर खींची हुई थी जहाँ पर रुककर ग्राहक अपनी बारी का इंतजार करते थे । पैसे भी कम ग्राहक होने की वजह से कोई लाइन नहीं लगती थी और अगर कभी दो चार लोग एक साथ वहाँ भी जाते थे तो लडकियाँ जल्दी से उसके पास पहुंच जाती थी । बहुत धीरे झराए रखती थी डैनी ने ठंडे खामोश माहौल पर नजर दौडाई और अनायास ही उसे उन दिनों की याद आ गई जब उसके पिता छोटे छोटे कामों के लिए उसको बैंक दौडा दिया करते थे जहाँ पर मैनेजर के तंग दफ्तर में लोग अपना काम करवाने के लिए एक के ऊपर एक चढे रहते थे । हर तरफ चीख चिल्लाहट बची रहती थी । इसमें दबे हुए गुप्ता जी किसी तरह से लोगों को निपटाते रहते थे । अक्सर उस हायतौबा से इतना जीत जाते थे उन्हें एकनाली बंदूक से लैस क्योंकि राज थापा को बुलवाना पडता था । भीड को धकियाने में वह काफी माहिर था । तब तो बाहर करो एक भी ना बच्चे मेरा दोस्त हो या रिश्तेदार ऍसे उत्तारी उस समय चलाते थे । उनका कमरा साफ हो जाता था लेकिन कुछ देर के लिए ही एकनाली धारी थापा के इधर उधर होते ही डीडर फिर से उन पर उतर आता था । ऐसे हालात के बावजूद करिश्माई तरीके से सबका कम वक्त रहते हो जाता था और शाम को बैंक का हिसाब भी दुरुस्त मिलता था । वैसे सरकारी बैंक की नौकरी अच्छी नौकरी माने जाती थी । सुबह दस से शाम पांच बजे तक की नौकरी थी । पगार भी अच्छी थी और उसके साथ कई सहूलियतें हुई थी । बैंक में नौकरी करने का मतलब था मासी से जीना । अगर आप दफ्तर में अफरा तफरी को झेल सकते हो तो आपने बैंक का नजारा देखकर डैनी मुस्कराया था । पुराने बैंकों की कोई भी परेशानी उसकी नौकरी में नहीं थी और पैसे और ऍम ज्यादा है । उसे हर तरह के लोगों के मूड नहीं लगना था और नहीं अपनी हवास को ऊंचा कर रहा था । बैंक में लोग दबे कदम आ जा रहे थे तभी जुबान में बातें कर रहे थे । शाम झील के किनारों को हल्के से था । तब आती लहरों की तरह दोपहर हो चली थी और उसको कोई काम नहीं दिया गया था । उसने अपना कंप्यूटर चालू कर लिया था और से देखकर खुशी हुई थी । कि उसमें इंटरनेट कनेक्शन भी था । वो रहेंगी को घंटे घर घंटे के हिसाब से मेल जरूर करेगा । आकर उसको भी तो पता चलना चाहिए कि हिंदुस्तान तरक्की कर रहा है । टैनी ने विशाल से क्रेडिट कार्ड फोल्डर खोलने के लिए पासवर्ड मांगा था और विशाल से डाल दिया था । वह भी मिल जाएगा । उसमें जवाब दिया था चलती क्या है और अगर तुम कुछ करना चाहते हो तो कैश काउंटर पर निशा के पीछे बैठा हूँ । देखो काम कैसे होता है? आपने शायद दादल है उससे जाकर फॅालो । काम के बारे में निशाने पूरे एहतराम के साथ नजदीकी आमद और रवानगी के सिलसिले को बयां किया था । निशाने जिस तरीके से उसकी जब अफजाही की थी उसे पसंद आई थी और इस वजह से उसको निशा भी फौरन पसंद आ गई थी तो उसे काफी संजीदा किस्म की लडकी लगी थी और जब उसने और लडकियों से मिलवाया था तो उनके रवैये से भी तस्दीक हो गया था । हमेशा भरोसेमंद है तो बोला की तरह नहीं थी लेकिन दफ्तर में दाखिल होते ही दैनि पर फब्ती कस दी थी । दैनिक विभाग में निशा का नाम दर्ज कर लिया था । वो काम की थी ब्लॅड बनने पर वो उसको अपने स्टाफ में जरूर रखेगा । उसको यकीन था कि फौरन से पेश्तर वो ब्लॅड बन जाएगा । एनडीए वाले कुछ जल्दी तरक्की करते थे । ज्यादा से ज्यादा आठ नौ महीने बहुत बुरे हालत हुए तो एक साल में ब्लॅड बन जाते थे और अगर उसके साथ ऐसा नहीं हुआ तो और नौकरियाँ उसको तलाश रही थी । बूट पॉलिश वाली कंपनी में भी जा सकता था । दो बजे विशाल लंच के लिए उसको भी टेवर पड गया था । अपना खाना खोलने से पहले उसने चपरासी को बुलाया था और अनुभव के खाने के बारे में पूछा था । भाषा ले आया हूँ । उसने जवाब दिया था देखा हूँ विशाल से पैकेट खोलने को कहा था और फिर बारीकी से हर चीज का मुआयना किया था । ठीक है साहब, खाना ठीक सवा दो बजे लगा देना । मुझे विशाल ने डेनी के भाव पढ लिया थे और उसने अपना घर के खाने का टिफिन खोला था और दैनिक उसमें से खाने की दावत थी । आज वह ज्यादा रोटियां दाल सब्जी लाया था क्योंकि उसको मालूम था कि मैं डिप्टी मैनेजर ज्वाइन करने वाला था । फिलहाल उसके नीचे काम करेगा और जल्द ही उससे आगे निकल जाएगा । विशाल को बखूबी मालूम था कि डैनी एनडीए था और वो नहीं था था । डेली उसका बॉस बनेगा और फिर बाजार में लंबे समय तक ऊंचे ऊंचे कोठों पर बैठेगा । विशाल को डैनी से बनाकर रखनी थी और आगे की रोटी चलाने के लिए उसे अपनी बीवी से खाने में चार रोटियां ज्यादा रखने को कहा था । अनुभव अपने खाने के बारे में बहुत पर्टिकुलर है । उससे टिफिन खोलते हुए बताना शुरू किया था । इस आज उसने नेपोलियन पिज्जा मंगाया है । मालूम है कि उसके साथ वह ऍम मसाले का पैकेट और दो फॅमिली फ्लैट लेता है, जिसके खाने की गलत है । आधा पौना भी । डर डर नहीं हो सकता । उसको सब नपा तुला चाहिए । हर काम पडी बारीकी से करता है । मुझे उसका ठंड बहुत पसंद है । कहते हुए विशाल ने भोली सी मुस्कराहट बिखेरती पर सब मतलब ये नहीं है कि वह अकेला किस्म का आदमी है । उसने फौरन अपनी बात पर सफाई दी थी । मुझे ही लो, मैं अपनी दाल में ठीक तीन चम्मच की डलवाता हूँ । रत्ती भर भी न ज्यादा न कम, मुझे तीन चम्मच की ही पसंद है । जैसे अनुभव को पिज्जा के साथ दो पैकेट कैसा पसंद है और जिस दिन वो बर्गर मंगाता है, उस दिन तो खैर नहीं । अगर उसमें से मुझे ऐड टपक रही हो । मुझे तो मुझे भी बहुत पसंद है । दैनिक ने हंसते हुए कहा था तो बढिया है वो पडेगी तुम दोनों में पर ख्याल रखना कि मस्टर्ड थोडी सी भी अगर बासी हो गई तो शहर हो जाती है । विशाल की टिप्पणी पर डे नहीं घुस पडा था । वो एक का एक कमरा है । सर नजर आने लगा था । जल्दी से उठकर वो अनुभव के केबिन की तरफ लगता था और वापस दिया गया था । उसके चेहरे पर तसल्ली झट रही थी । भगवान आपने चपरासी महादेव का भला करें । मैं एकदम भूल ही गया था कि अनुभव को पिता के साथ कोल्ड्रिंग नहीं । कॉफी चाहिए होती है । ऊपर है उसको यहाँ था । अब अब सब ठीक है । उसने राहत की लंबी सांस छोडी थी । थोडी देर तक दोनों खामोशी से खाना खाते रहे थे । खुशहाल भी । उसे कॉफी ठीक लग रहा था । काम जानता था और चुप चाप कर लाता था । ब्रांच मैनेजर होने पर वो उस को साथ रखने की बात सोच सकता था । ब्रांच में दूसरे नंबर पर ऐसा ही आदमी चाहिए रहता था जो छोटी छोटी चीजों का भी खयाल रखें और अपने अवसर पर भूल सुनने दे । सुबह क्या हुआ था अनुभव ने आपसे आधे घंटे में रिपोर्ट मांगी थी । बडे परेशान लग रहे थे वो डैनी ने रोटी को दाल में डुबोते हुए पूछा था वो नहीं नहीं कुछ खास नहीं । विशाल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, अनुभव कुछ एंट्री ढूंढ रहा था । हमारे डाटा ऑपरेटर ने उसको पेज गलत तरीके से लगा कर दिये थे । बिचारे अनुभव को क्या मालूम था कि पेट खराब सडक लगे हुए हैं तो तलाशता रहा और फिर खींच गया था । अब सब ठीक है पर बेवजह उसकी सुबह खराब हो गई थी । डैनी विशाल को ध्यान से चल रहा था । जाहिर हो रहा था की विशाल अनुभव का जूनियर ही नहीं था बल्कि एक तरह से उसकी धाय मां भी बन गया था । पहले से पहले ही वो अनुभव की जरूरत होगा । परेशानियों को समझ लेता था और उन को दूर करने के लिए इंतजामात में लग जाता था । पीछे बैठ कर वो खामोशी से दफ्तर चला रहा था ताकि उसके अवसर को जरूरी काम करने का मौका और वक्त मिल सकें । प्रशाल वाकी डैनी की टीम में शामिल होने लाया था । डैनी ने पहले ही दिन दिशा और विशाल को एक तरह से अपन स्टाफ मान लिया था । जहाँ तक अनुभव का सवाल था तो उसको विश्वास था कि वो उससे राफ्ता कायम कर लेगा । दोनों की जाती एक थी यानी वो बिजनेस स्कूल के जनेउधारी भ्रमण थे जबकि विशाल वगैरह निचली जाति के थे, जो अपनी मेहनत या सूरत की वजह से खटारा सरकारी बैंकों से पकडकर उनकी हिम्मत के लिए लाए गए थे । उनसे बस काम भर का साहब कार रखा जा सकता था । टैनी पहली नजर में समझ गया था कि अनुभव चाहे कितना भी अकल कि बच्चा क्यों ना हो और उसमें आत्मविश्वास की कमी थी । टेनी अपना ट्रक और बहुत तौर तरीकों का इस्तेमाल कर छोटू मोटू बतक किस्म के अनुभव पर हावी हो सकता था । साथ ही अगले कुछ महीनों में उसे ऐसे पैंतरे खेलने दे के अनुभव नाम मात्र का ब्रांच हेड बन कर रह जाए और दैनिक सिक्का इस तरह चलें किसकी खनक दूर तक सुनाई पडेंगे । खाने के बाद टैनी अपने कंप्यूटर पर बेवजह लगा रहा था । सारे लोग से झुकाए काम में जुटे थे । ऐसे में खाली बैठना उसको अजीब लग रहा था । इसी की ठंडी हवा और खामोश माहौल में उसको बार बार छपकी आने लगती थी । बमुश्किल वो अपनी आंखें खुली रख पा रहा था । बैठे बैठे उसको कभी घर की याद आती थी । यहाँ जो भी अपने भाई की कामयाबी पर अब भी रोमांचित थी तो कभी रहेंगी की इसने विलायती यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर उसे बीज भर में छोड दिया था । रेंगी से उसे कोई द्वेष नहीं था । उसमें डैनी को बहुत कुछ सिखाया था । यहाँ तक कि उसकी जिंदगी को नया मोड भी दिया था और उसका अचानक जाना आज भी गहरे दर्द की तरह तीस रहा था । उस यकीन था रहेंगी और उसके पिता एक साल पहले ही विदेश यूनिवर्सिटी की कोशिश में लगे थे । पर रहेंगे ना, इसका कभी जिक्र नहीं किया था अगर वो डैनी को दाखिला लेते वक्त हल्का सा भी आगाह कर देता । डैनी अच्छे वाले स्कूल में ही अपना नाम लिखवा लेता और रहेंगी की वजह से नीचे आया था और उसने साथ निभाने की जगह बेवफाई की थी । दोस्ती का दम भरकर टैनी नहीं बेवकूफी की थी । इसका हर्जाना उसको जिंदगी भर भुगतना पडेगा । ऐसी दोस्ती से उसने अब तो बात कर ली थी । मोनू उसकी तरफ आ रही थी । डाॅन भगाई और चेहरे पर बडी सी मुस्कान फैला दी । वक्त काटने के लिए मोना वाजिद सामान थी तो फिर बहुत गोलकर हल्की से फसाया था । हमारे साथ उसे शरारती लहजे में पूछा था और उसकी शैतानी पर हंसी नहीं । उसी खनखनाती हंसी सारे माहौल में खुशी की लहर की तरह फैल गई और रहने के लिए कॉफी लेकर आई और बिना कुछ बोले अपनी सीट पर जा बैठी । दैनिक उसकी अदा बेहद पसंद आई थी । पूरा हफ्ता गुजर गया । डैनी को कोई काम नहीं दिया गया था । कभी कभी विशाल से क्रेडिट कार्ड के फॉर्म भरने के लिए ग्राहकों की मदद में लगा देता था । बाकी समय वह खाली बैठा रहता था । अनुभव अपनी उलझनों में ऐसा फंसा रहता था । इसको रहने की तरफ देखने की फुर्सत भी नहीं थी । कॅश विशाल के हवाले कर दिया था । डैनी को कम देना उसकी जिम्मेदारी थी । हफ्ते के बाद दैनिक कश्यप पुख्ता होने लगा था कि उसको काम काज से दूर इसलिए रखा जा रहा है कि किसी स्मार्ट एनडीए की अपने काम में दखलंदाजी अनुभव और ख्याल नहीं चाहते थे । उनका रोज मर्रा का एक तरीका बन गया था, जिसमें डैनी की कोई जरूरत नहीं थी । डैनी को अपने साथ इनका रवैया नागवार गुजर रहा था और वह उसका नहीं सकता था । उसने विशाल के साथ बात करने की कोशिश भी की थी, लेकिन उसको उस वक्त टाल दिया गया था । पर दोपहर के खाने के समय विशाल डैनी को अपने साथ जरूर बैठाता था और खाना पूरी इज्जत के साथ भरोसा था । पर क्रेडिट कार्ड डिवीजन और उसमें डैनी की भूमिका के बाद जब भी उठती थी तो वो कन्नी काट जाता था । फॅमिली शुरू शुरू में अंदाजा लगाया था कि अनुभव उसको नए माहौल को समझने का मौका दे रहा है और जैसे ही वो तैयार हो जाएगा उसको वहीं बहुत जो देगा जो एक एमबीए दूसरे को देता था । पर अनुभव ने दोबारा पलट कर देखा भी नहीं था । दैनिक कि सुबह की जोशीली सलाम दुआ भी अनुभव पूरी तरह से कबूल नहीं करता था । हल्का सा सिर हिलाकर आगे बढ जाता था । ऍम था । कुछ दिनों बाद ऍसे राफ्ता कायम करने की ठानी थी । जैसे ही मौका मिलता था उसके आसपास मंडराने लगता था । मौसम से लेकर नौकरी तक की छोटी छोटी गुफ्त वो उसने मोना से करनी शुरू कर दी थी । उसका मकसद होना से वो जानकारी हासिल करना था जिसके हालात के बारे में सुराग मिल सके । दो दिनों की बात चीत नहीं । उसे पता चल गया था कि अनुभव खानदानी कंपनी वाला था । उसके डैडी बता शू कंपनी में ऊंचे ओहदे पर थे । बेटे की शू पॉलिश कंपनी में नौकरी उन्होंने ही लग गई थी । जूते और कॉलेज का रिश्ता समझते हो उन्होंने शेरवानी से पूछा था । उसने आगे बताया था कि बैंक वाले अनुभव को अपने यहाँ लाने के लिए इसलिए दीवाने हो गए थे क्योंकि कलकत्ता के गोल्फ क्लब में उसकी तेज अकल के चर्चे िकायत होने लगे थे । बैंक के आला अफसरों के काम तक भी बात पहुंची थी और उन्होंने फौरन लोगों को दुगुनी पगार पर दिल्ली जैसी बडी ब्रांच की जिम्मेदारी सौंप दी थी । बोला की जानकारी के मुताबिक अनुभव के डैडी और बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर लंगोटिया यार थे और वो व्यक्ति ज्यादा दूर नहीं था । जब अकल जी बच्चा तरक्की पाकर या तो मुंबई चला जाएगा और वहाँ नहीं तो दक्षिणपूर्व एशिया के किसी अच्छे शहर में पोस्ट कर दिया जाएगा । होना की बातों ने दैनिक जी परेशानी में डाल दिया था । उसने सोचा कि वह अनुभव पर हावी हो जाएगा, पर जिस तरह की उसकी पहुंचती उससे डैनी मुकाबला नहीं कर सकता था । अब वो किसी भी हाल में अनुभव को ये महसूस नहीं होने दे सकता था कि वो उस पर चढ के बोल रहा है । तब के रहने में ही भलाई थी और नौकरी जा सकती थी । दैनिक नौकरी कम आना नहीं चाहता था लेकिन उसको अपने लिए आशा अनुभव की जल्द से जल्द तरह के बारे में नजर आ रही थी । उसको ऐसा कुछ करना था जिससे उसके अनुभव से गरीबी इतनी बढ जाए कि अपनी जगह छोड के वक्त वही डैनी का नाम आगे बढा दें । पर फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा था । अनुभव तो उसकी तरफ आप उठाकर देखता भी नहीं था । छः चम्मच बनने से कम नहीं चलना था । उसको कल्टी अवतार में अपने को प्रकट करना था । डैनी ने एक हफ्ते और इंतजार करने की ठानी और इस दौरान मासूम रंगरूट बन गया । वो दफ्तर में सबसे कामकाज की जानकारी लेने में जुट गया । दोपहर के खाने के वक्त बडे अदब से विशाल के सरकारी बैंक के टाॅपर अफसरा सुनता था । इसकी वजह से विशाल को जल्दी महसूस होने लगा था । वो दैनिक पूरी तरह से उसका शागिर्द बन गया था । क्रेडिट का डिवीजन कि अंदरूनी परेशानियाँ भी वो डैनी से साझा करने लगा था । देने के हाथ ब्रांच हेड के केबिन का दरवाजा खोलने की चाबी लग गई थी । विशाल से उसको ये भी पता चला था कि अनुभव को वो लोग सख्त ना पसंद थे जो अपनी सोच रखते थे । वो कहता था जिसे सिर्फ जानकारी चाहिए, नीति नहीं, नीति बनाना उसका काम था । पर कुछ जानकारी इस तरह से चाहता था जिसमें नीति साफ झलक रही हो । रात दिन वो आंकडों का पहाड बनवाता था और फिर उसमें से तू ढूंढने के लिए स्टाफ को लगा देता था । इस तरह लंबे समय तक सबको अपने साथ उलझाए रखता था । जब सब काफी हैरान परेशान हो जाते थे तो वह एक का एक ऐलान करता था । स्टाफ की नाकाबिलियत के बावजूद उस ने प्रतिभाग लगाकर हल ढूंढ लिया है । सबकी मेहनत को नकार कर वह कामयाबी करता आज अपने सिर पर रख लेता । ऍम खुश होता था और उसकी खुशी में सब अपनी खुशी जाहिर करते थे । दैनिकों तरीका पसंद था । पहले मुलाजिमों का पूरा तेल निकाल लो और फिर उन्हें भूसा बताकर मेरी ही बना दो । ऐसा करने से वो दबे रहते थे । उनकी हिम्मत खत्म हो जाती थी और अपनी दबंगई कायम रहती थी । खुद को सातवें आसमान पर दिखाने के लिए और उनको गर्त में रखे लाख जरूरी था । अनुभव शायद बेड से ही मैनेजमेंट के दांवपेच सी कराया था और इसीलिए उसे अकल चीज बच्चा कहा जाता था । अच्छा यह संस्था वो थोडा चलता था । पदक की माफिक चलता था । छोटा सा मोटा सा था और उनकी नजरें आपने पट्टिकाएं रखने में माहिर था । सब उसकी संबंध करने के लिए बने थे और उसके खिदमत करके अपने को निहाल कर रहे थे । असल में डैनी ने नतीजा निकाला था कि अच्छा मैनेजर वही था । अपने मुलाजिमों को बिना फल की इच्छा किए कर्म करने को प्रेरित करता था । दूसरे शब्दों में उनको कर्म बोध कराता था और खुद फल खाता था । असरदार रहनुमाई । इसी को कहा जाता था ऍम फैसला किया कि वह असरदार रहनुमा बनेगा, अनुभव से भी नहीं बेहतर ।
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