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अदभुत प्रेम की विचित्र कथा - Part 5 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
अदभुत प्रेम की विचित्र कथा writer: अश्विनी भटनागर Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ashvini Bhatnagar
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पापा जी दैनिक कॉलेज खत्म करके घर लौटते हुए काफी खुश था । उसने घर वालों को नहीं बताया था कि उसे बडे बैंक में नौकरी मिल गई थी । वो मंजर को अपनी आंखों से देखना चाहता था । तब खबर सुनकर सब दंग रह जाएंगे और फिर धीरे से खुशी की लहर मुस्कराहट बनकर वोटों से शुरू होकर कानों तक फैल जाएगी । उनकी आखिर चमकने लगेंगे जब उन्हें बताएगा कि उसकी पहली तनख्वाह पूरे पच्चीस हजार रुपए होगी और उसके ऊपर उॅची मिलेंगे । इतनी बडी रकम सुनकर महत्व शायद बेहोशी हो जाएगी । पूरी जिंदगी उन्होंने कुछ हजार रुपए से ज्यादा कभी नहीं देखे थे । हालांकि कुछ महीनों से वो अपने अडोस पडोस वालों को बताने लगी थी । उनके पति की पगार जल्द ही पांच अंकों में पहुंचने वाली है । रिटायरमेंट पूरे छः महीने पहले दैनिक के परिवार उन के जाने वालों के बीच दस हजार वाली नौकरी बहुत बडी बात थी । अगर कोई दस हजार कमाता था तो उसके साथ बडी जब से पेश आना होता था । हाल ही में पिता के दोस्त ने अपनी बेटी की शादी एक दस हजार की थी । इतना काबिल दामाद मिलने पर वो इतने खुश हुये थे कि उधार लेकर उन्होंने दहेज में मारूति कार दे डाली थी । लोगों ने दस हजार का ससुर कहने लगे थे जिसे सुनकर वे फूले नहीं समाते थे । राज देवकीनंदन का छोटा सा दिन हूँ । इतना बडा हो गया था कि उसने पहली ही छलांग में पूरे पच्चीस हजार रुपए अपने नाम दर्ज कर लिए थे । वो नस पास अलग थे । हालांकि डैनी अपनी उपलब्धि पर बार बार था । पूरी बात बताने में उसको हिचक हो रही थी । उसे डर था कि लोकतंत्र हुआ बोनस और बॉक्स कीगन सुनकर एक एक विश्वास नहीं करेंगे । इसलिए उसने फैसला किया था कि वह पच्चीस हजार तो बताएगा और उसके साथ कहेगा कि हर तीन महीने पर उसको पच्चीस हजार का बोनस अलग से मिलेगा । इस तरह से बताना ज्यादा शालीन था बजाय इसके कि वो कहे की असल में उसको पैंतीस हजार हर महीने मिलने वाले थे । पैंतीस हजार बहुत से लोगों को एकदम से हजम नहीं होना था । फौरन कहेंगे कि दिन में शेखी बघार रहा है । घर पहुंचते ही बडो की पैर छुआ आई । राम राम और गले मिलने की कवायद शुरू हो गई थी और सारे लोग उससे मिलने आए हुए थे । दिन की मौजूदगी से डैनी को अपना ऍम छत वाला दो कमरे का घर और तंग नजर आने लगा था । बीस साल में पहली बार उसकी नजर दीवारों की बुरी हालत पर पडी थी जिनपर पुताई से नहीं हुई थी । पीछे आंगन में बेहतर से कई पलंग लगे हुए थे । इन पर कपडे शुभ रहे थे । उसकी निगाह बेबस घर की हर चीज पर पड रही थी और कुलजमा मंजर किसी घटियां चौल जैसा था । ज्योति सबसे ज्यादा उत्साह में थी । दैनिक पहुंचते ही उसने मेरे लिए चलाया भैया की रट लगा दी थी । जीन्स टॉप देखकर वो झूठी थी । उसकी खुशी से डैनी का मन भर आया था । हाँ तो उसने साडी दी थी और पिता को कुत्ता दिया था । हाँ, साडी पाकर बहुत खुश हुई थी और इस खुशी में बार बार उसका माथा चूमने दी थी । पिताजी ने कुर्ता ले लिया पर चुप रहे । उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उनका लडका एमबीए होने के बाद भी क्यों मुसी गंदी ढीली से निक्कर पहन कर घूम रहा था । माना कि वह सफर से आया था पर कम से कम तो पहनी सकता था । अरे निक्कर पहन कर कौन निकलता है? घर से बाहर लोगों के छठे हैं । देवकीनंदन ने बेटे से बात शुरू कर दी तो तो रिजल्ट आ गया । अभी नहीं कब आएगा? जल्दी ही कितनी जल्दी । शायद एक महीने बाद हूँ तो क्या करने का इरादा है । नौकरी के से तलाश होगे, कहीं अप्लाई किया है, अप्लाई करने की जरूरत नहीं है । शायद दैनिक बे परवाह जवाब दिया और अपनी अटैची खोलकर पेंट सोचने लग गया था । उसको मालूम था कि पिताजी को निक्कर नागवार गुजर रही है और शाम बताने से पहले उसे पैंट पहन लेनी चाहिए । वो पेंट लेकर झट से दूसरे कमरे में बदलने चला गया । देवकीनंदन ने अपने सबको समेटा । उस पर एक गांठ और लगाई और बेटे का इंतजार करने लगे । दैनिक जब कमरे से बाहर निकला तो उसने देखा लोग तंग कमरे में भी अपने लिए जगह बनाकर बैठे हुए थे । परिवार वाले रिश्तेदार तो उस पडोसी गर्मजोशी से बातचीत में मशगूल थे । कडी बार ऍम हजारे पर बोल हजार फरमाया । उसकी जिंदगी के सभी अंशधारी मौजूद थे । उसके निवेशके लाभांश का ऐलान अब हो सकता था । पापा डाॅट होते हुए हल्के से शुरू किया अप्लाई करने की हमें जरूरत नहीं है क्योंकि हमारे यहाँ कैम्पस रिक्रूटमेन्ट हो जाता है । क्या कर लिया? उन्होंने अपने मास्टर वाले अंदाज में इस तरह से पूछा जैसे आपने विद्यार्थी से उसके होम वर्क के बारे में तहकीकात कर रहे हो । हम हो गया तो दैनिक अपनी माँ की तरफ बडा और उन को अपनी बाहों में भर लिया । माँ नौकरी मिल गई है उसने उनकी खान नया कर रहा था पर तंग कमरे में सुनाई सभी को पड गया । मानस को निपटा लिया था । बार बार बलियाली थी और पुरम सारे देवी देवताओं का आह्वान करके उनके सामने नतमस्तक हो गई थी । इस तरह की नौकरी मिली हैं । धीरे के नंदन ने अपने सूखे से अंदाज में पूछा बैंक में मिली है और मांग मुझे पच्चीस हजार रुपये हर महीने मिलेंगे । ऍम अलग से क्या पच्चीस हजार जो भी चलाई थी ऍम हिला दिया । मैंने फिर डैनी को खेलने लगा दिया और इस बार सहारा पाने के लिए उसको पकड लिया था । खुशी के मारे उसके पैर जवाब दे रहे थे । आंखों से झर झर आंसू बहने के लिए थे । देवकीनंदन जैसे पकडा गए थे । डैनी ने उनके पैर छुए पर उनके मुंह से आशीर्वाद नहीं निकल पाया था । लोग मुबारकबाद देने के लिए बडे तो थे पर हाथ मिलाने के लिए उनका हाथ नहीं पा रहा था । पच्चीस ऍम लगता था जैसे किसी ने सीने पर तो आपका गोला दाद दिया होगा । ऍम की बात बता रहे हो । आखिरकार उनके मुंह से आवाज निकली थी था पच्चीस हजार आतंकवाद और उसके ऊपर बाॅस ऍम हो कुछ भी मिल सकता है जैसे कि दो चार हजार रुपए हर महीने पच्चीस के ऊपर आप और तो क्या होगा की सब मिलाकर कितने मिलेंगे । हर महीने फॅसने आतुर होकर पूछा दैनिक फैसला किया था कि वो अपनी असली तनख्वाह नहीं बताएगा । पैंतीस हजार कुछ ज्यादा ही लगेंगे लोगों को पर अपने को रोक नहीं पाया था । अगर सब ठीक रहा तो सब मिलाकर पैंतीस पड जाएंगे । उसमें बिना हिचकिचाए कहा पर फिर शर्मा गया । लोग अपनी जगहों से कुछ खडे हुए थे । कमरे में करंट दौड गया था हैं । अरे अपना दिन तो भाग नहीं बन गया है । किसी ने आवाज लगाई ऍम आपका लायक बेटा है तो उस ने ऐलान कर दिया हम तो पहले ही जानते थे हैं कि दिन्दू मोहल्ले का नाम रोशन करेगा । बस वक्त का इंतजार था कि कब इसकी काबिलियत परवान चढती है । तीसरे ने वहाँ वहाँ वाले अंदाज में कहा था पांच वाली आंटी हफ्ते हफ्ते अचानक प्रकट हुई और उन्होंने दिनों का असर अपनी छाती से जब कालिया होनहार बच्चा कितना प्यारा है, उन्होंने अपना पूरा लाड उडेलते हुए बुला रहा था । उनके ब्लाउज में भरे सूखे हुए पसीने की महक से डैनी का दिमाग चकरा गया था । अंडे कोई अच्छा डियोड्रेंट क्यों नहीं लगती हैं? ऐसी सडेली से मैं इसलिए घूम रही हैं । आपने गलत करते हुए सोचा था या आपको घर मिलेगी? ऑफिस में इसी होगा । ज्योति ने उत्सुकता से पूछा था ट्रेनिंग इतिहास उसके गले में हाथ डालकर अपनी तरफ खींच लिया था । रहना तो मैं तेरे लिए लूंगा । ऍम बैंक में नौकरी मिली है वहाँ इसी तो होगा ही । बदली भैया हम तो मुझे स्कूटी दिलवा दोगे ना, अरे क्यों नहीं पर तो पहले लाइसेंस बनवाने की उम्र तक तो बहुत यहाँ कोई लाइसेंस की जरूरत नहीं है । भैया सब चलता है यानी हस पढा था । ठीक है बहन जी अगले साल तेरी सोलह सालगिरा पर मुझे स्कूटी दिलवा दूंगा । ज्योति माने खुशी के उछल पडी थी ऍम एक बुजुर्गवार ने उनकी कोहनी पकडते हुए कहा की होती कि स्कूटी से पहले तो देवकीनंदन को एक्सॅन स्कूटर खरीदवाते कब तक बिचारे स्कूल साइकिल से जाते रहेंगे? उम्र हो गयी है नहीं मुझे नहीं चाहिए मैं बैठी हूँ रहते हुए वो कमरे से निकलकर तालान में आ गए । आंखों में आंसू बहुत देर से भरे थे । किसी तरह उन्हें रोके हुए थे । पर बांध अब टूट गया था । दोस्तों के सामने रोना अलग बात थी, पर बेटे के आगे वो आंसू नहीं कब कर सकते थे । चाहे खुशी के आंसू भी नहीं रहने के पास तीस दिन का वक्त था । पहला तुम तो खत्म हो ही गया था पर लोगों की आवाजाही कम नहीं हुई थी । कोई ना कोई कहीं से खबर सुनकर मुबारकबाद देने चला रहा था और डैनी को बार बार आशीष लेनी पड रही थी । वो हर चेहरे को अच्छी तरह से जानता पहचानता था । सबसे कोई न कोई बचपन की यादें जुडी हुई थी और आज वो सबको लेपटॉप के माफिक सलेक्ट करके डिलीट में डालना चाहता था । हाँ, डिस्को रिबूट करना था क्योंकि उसे यकीन था कि इन पुरानी फाइलों की जिंदगी में अब कभी जरूरत नहीं पडेगी । दैनिक घर पर था और नहीं भी था । उसे किसी तरह तीस दिन काटने थे और इसके लिए उसने अपने को सुन कर लिया था । जैसा माँ कहती थी, वैसा ही कर लेता था । आने के दूसरे ही दिन उन्होंने जगह पर रख दिया था । मैंने कहा सबसे आगे माँ की चौकी के सामने बैठो तो बैठ गया । ठीक बाजू में दो बडे बडे स्पीकर फुल वॉल्यूम पर बेसुरे गायक की माता की भेंटें ऍम फोन तरीके से पहुँच रहे थे । ऍम कर भाग जाएगा लेकिन वो बैठा रहा था । मोहल्ले वाले लगातार दस के नोट से उस पर वार फिर करते थे और हर बार से वोटों पर मुस्कराहट लानी पडती थी । पीछे बैठे अंकल आंटी ऐसी तालियाँ बजा रहे थे और सिर्फ लहरा रहे थे जैसे किसी रॉक शो में हो पंडाल में बच्चे हाथ पर अब दौड भाग मचाए हुए थे तो गंदा सा पाए जाना पहने हुए था तो कोई लगी निक्कर किसी तरह से कमर पर पढाये हुए था । उनकी सारी कोशिश ये थी कि किसी तरह नजर बचाकर शेयर परसवार देवी के सामने रखे हुए प्रसाद में से कुछ चुरा ले । कई बार प्रसाद के थाल पर हाथ मारा जा चुका था । देवी का बहुत उनके सामने लूट रहा था और वो बेचारी कुछ कर भी नहीं सकती थी । दैनि नहीं बचपन में बहुत सारे जगह पे देखे थे । उन्होंने मजा भी आता था । मेरे रात तक वो और उसके दोस्त इसी तरह की हरकतें भी क्या करते थे । राज् घूम रहा था गंदा सा पंडाल टूटी कुर्सियों पर रखे बहुत हूँ । नायलोन की साडी पहने आंटी लोग और धीरे पाए जाने वाले अंकल कुछ अजीब से लग रहे थे । वो कहीं पर भी अपनी नजर ठहराना नहीं चाहता था । कुछ भी दीदी के काबिल नहीं था । शुकराना अदा होने के बाद खाने का सिलसिला शुरू हो गया था । दैनिक बडी नौकरी पा गया था इसलिए सब चाहते थे कि वो उनके घर खाने पर आए । मैंने किसी से नहीं कहा था जिसकी वजह से सप्ताहिक खाने का मूल हो गए । जबकि डैनी के जाने में सिर्फ चौबीस दिन ही बचे थे । ज्योति ने दीवार पर टंगे कैलेंडर पर मेजबानों का नाम सिलसिलेवार डाल दिया था । डैनी ने माँ को समझाने की लाख कोशिश की थी और उन्होंने एक नहीं सुनी । सब जगह जाना जरूरी था । किसी को भी काटा नहीं जा सकता था । क्या एक रात में दो बार खाना क्यों ना खाना पडेगा? इस सिलसिले के पीछे मकसद देखी था रिश्ता किसी की बेटी, किसी की बहन, भतीजी भांजी शादी की उम्र में थी और डैनी उनके लिए बेहतरीन खुला हो सकता था । हर जगह सलाम दो आठ ठंडा गरम होने के फौरन बाद एक ही सवाल थन खिला देता था ऍम पहले क्या इरादा है? अमूमन? डैनी जवाब भी नहीं दे पाता था कि आंटी जी उसकी माँ से शुरू हो जाती थी । दिन में जैसे लडके के लिए तो घरेलू लडकी ही ठीक रहेगी । अरे ऐसी लडकी जो उसके साथ कोर्ट बैठ मिले और साथ में हमारे आपके परिवारों में फिर भी हो जाए । संस्कारी होनी चाहिए । देश तरार नहीं आजकल की बिगडी लडकियों की तरह रात के खाने के दौरान कई बार ऐसा हुआ कि मेजबानों ने लडकी दिखाने का कार्यक्रम भी साथ में निपटा दिया था । सही वक्त पर अक्सर खाने से ठीक पहले लडकी को ड्राइंग रूम में दाखिल करवा दिया जाता था । बताया जाता था कि बीच मेरी खाना बनाने में लगी थी । बस अभी फायरिंग हुई है । डैनी को पूरा मौका दिया जाता था कि वह नजर भर के उसे देख लें, बातचीत कर लेंगे । बाद में खाना खाते समय लडकी की खूबियों पर सबसे ना होता था । एक अलवर माँ यहाँ लडकी पर ठहर गई थी और डैनी ने फौरन से पेश्तर अंकल जी के सामने साफ साफ कर दिया था । उसे अगले पांच साल तक शादी करने की नहीं है तो कोई मुगालता ना पालें । पर सबने फसकर उसकी बात उडा दी । उधर ज्योति को ये सब बहुत बढिया लग रहा था क्योंकि अचानक कई लडकियाँ उससे दोस्ती करना चाहती थी, घर आना चाहती थी । उसकी पूछ हर तरफ हो रही थी । पर डैनी को मालूम था कि उसे क्या चाहिए । उसे लंबी गोरी, छरहरे बदन वाली और पर घर आने की सुंदर लडकी चाहिए थी तो शिफॉन चनौन पहनकर विलायती तरफ उससे ऍम तो खानी का शहर उसके जीवन में खोले । रिकॉर्ड पहनने वाली के पास वो भटकने वाला भी नहीं था । बहुत लेट है । आज ही राजी वालियों से उसने तो वहाँ कर ली थी ।

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अदभुत प्रेम की विचित्र कथा writer: अश्विनी भटनागर Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ashvini Bhatnagar
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