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अदभुत प्रेम की विचित्र कथा - Part 10 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
अदभुत प्रेम की विचित्र कथा writer: अश्विनी भटनागर Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ashvini Bhatnagar
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दस जब रहनी क्या खुली थी तो उसने अपने को मखमली बिस्तर पर पाया था । कमरे में इसी गुनगुना रहा था माहौल गुनगुना था एक दम ताजा, खुशनुमा फॅमिली और एक बार फिर वाली थी उसके आस पास और क्या था वो सच में बेहद मुलायम बिस्तर पर लेटा था । जिसपर जितनी चादर पडी हुई थी उसके बगल में एक हूँ सुकून से हो रही थी । उसके वोटों पर हल्की सी मुस्कुराहट खेल रही थी । दैनिक नजदीक जाकर गिरजा की बंद आंखों के पीछे झांकने की कोशिश की थी । कॅश उठा शॅल क्या किस्मत है खुशी के मारे को झूठा था । उसका मन कलाबाजियां खा रहा था । पैर खुशी रखने के लिए बेचैन हो रहे थे । उसका जोश उठा ले ले रहा था लेकिन लेकिन उसने अपने परेशान किया और बगल में सो रही राजकुमारी को निहारने में लग गया था । गिरिजा वास्तव में किसी आसवानी करिश्में की तरफ की जिंदगी नाटक की थी । अपने साथ ऐसी सौगात दिलाई थी जिससे हर सिम, सिम दरवाजा उसके एक इशारे पर खुल सकता था । दैनिक ने पहले गिरजाघर नेता के बारे में सोचा और फिर सौतेले पिता की हैसियत पर गौर किया था । दोनों मिलकर और अकेले अकेले भी उसको वो सहारा दे सकते थे जिसमें वो सातवे आसमान की उडान पलक झपकते ही भर सकता था । गिर जा के पता तो कुछ भी करने को तैयार होंगे । उसने अपने को बताया था आखिरकार उनकी काॅफी तो साथ नहीं रहते थे और शायद उनके बीच रिश्ता बहुत खुशनुमा नहीं था । पर पिता के दिल में कुछ मलाल जरूर होगा जो बेटी दामाद की बेहतरी के लिए मजबूर कर देगा । दैनि अपने से मतलब था और उसे अपने ससुर से गहरा रिश्ता बनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं होने वाली थी । सौतेले ससुर के बारे में वो अभी कुछ पक्के तौर पर नहीं कह सकता था । उसका नाम तो सुना था पर वो कैसे आदमी है इस बारे में उसे ज्यादा भी नहीं था । पर गिरजा उनसे ज्यादा करा मिलती रहती थी । उसके जरिए रेजोल् पढाया जा सकता था । और हाँ भेजा की बात ही तो थी । अपनी बेटी की खातिर वह देसाई साहब से कुछ भी करवा सकती थी । ये सोचकर दैनि के चेहरे पर भरपूर मुस्कराहट खेलो की थी । मैंने बेटा उसका मनी मान अपनी पीठ ठोकी थी । ऊपर वाले ने छप्परफाड करते उसको दिया है । अलर्ट मौज कर अपने घर के बारे में उससे ज्यादा नहीं जा रहा था । पिताजी उनके और अपने रहन सहन के बारे में संजीदगी से नुक्ताचीनी करेंगे क्योंकि असल में वो अपनों से बडे होने वालों से कपडा आते थे । पता नहीं उनके दिल में कौन सा डर बैठा था की वह उनके सामने सहन जाते थे । शायद सरकारी स्कूल के अध्यापकों के दब्बूपन वाला स्वभाव उनमें बैठ गया था । पर शादी हो चुकी थी । मैंने एक नई जिंदगी के साथ कदम ताल करने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं था । दूसरी तरफ माँ बहुत खुश होंगे । उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा की उनकी बहू इतनी गोरी और सुंदर होगी । बॅाल से यूपी खयाल आया था क्या गिर जा के बगैर छुएगी या फिर पहले कुछ दिनों में से ढके गी अगर वैसा करेंगे तो माँ उसकी बलैया लेती नहीं सकें । अगर नहीं भी करेगी तो कोई भी आसमान नहीं रुकने वाला था । अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी । उस की खुशी में ही उनकी खुशी थी और ज्योति ज्योति तो भाभी को पाकर उछल ही पडेगी । उसकी और गिरिजा की खूब पडेगी क्योंकि ज्योति बहुत मोहब्बत की लडकी थी । सबका दल चुटकी में जीत लेती थी । वो गिर जैसे कहेगा ज्योति को अपनी शादी जिंदगी में ले ले और ऐसा बना देंगे । उसको बडी असर दूल्हा मिल जाएगी । अपनी सुंदर और सुशील बहन के लिए ऐसा पति चाहता था जिसके साथ बराबरी से खडा हो सके और ऐसी जिंदगी दे जिसमें मुफलिसी का साया दूर दूर तक ना हो । पर ये सब तो बात की बातें थी तो हम वाली परेशानी अपने घर की थी । वो गिरिजा या उसके माँ बाप को एस्बेस्टस की छत वाले दो कमरे के मकान में नहीं ले जा सकता था । उसको कुछ और इंतजाम करना पडेगा, ऐसा इंतजाम जिससे अपनी गुरबत को छुपाया जा सके । मकान तो वह भी खरीद नहीं सकता था, पर लोन लेकर घरवालों को किराये के मकान में जरूर जमा सकता था । फिर जाने आपके खोली और हल्की सी अगर आएगी उसका मुस्कराकर देखा और फिर आंख बंद कर दी । फॅमिली में उसको अपनी बाहों में भर लिया । उसके सीने से लग गई । क्या सोच रहे थे तो उसने अलसाई आवाज में पूछा था अपनी तुम्हारी नहीं जिंदगी के बारे में बहुत मजेदार होगी । ना था क्या बजाएं? ऍम साढे दस हो चुकी थी और रूप अभी तक नहीं आई । उसको तो आठ बजे आ जाना चाहिए था । एक गिरजा का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा । अच्छा नहीं तो उसने बाद संभालने की कोशिश की थी । अच्छा ये है ना, इसके ना आने की वजह से हम लोग देर तक छोड सकें । और ये भी तो हो सकता है कि वह भाई हो और हम लोग नींद में घंटी ना सुन पाऊं । उसके पास घर की चाबी हैं इसलिए उसको घंटे में जाने की जरूरत नहीं है । गिरजा ने गुस्से में कहा था सुबह की चाहे भी मुझे देनी थी, नहीं कहा रह गई । जाने दो से यहाँ ऍसे कहा था क्योंकि घर में धर्म चाइना बनाता हूँ । मैं अच्छी लगेगी तो बना लेंगे । सच्ची में बना लोगे उसका चेहरा फिर खेलो था ना । फिर सच्चाई ये थी कि डैनी को चाय बनानी आती नहीं थी । घर पर मैं बना देती थी तो हॉस्टल में चाहे वाला था । उसको सिर्फ इतना मालूम था कि उबलते पानी में बहुत सारी चाय की पत्ती और दूध झोंक किया जाता था और कई चम्मच चीनी मिला दी जाती थी । वो बोलने पर उसे सस्ते से क्लासों में डाल कर दिया जाता था, जिसपर हाथ से देखने का मजा ही अलग था । डैनी भेजा को अपनी बाहों में कुछ देर समय दे रहा था । वो चाय बनाने या बनाने से बचने की तरकीब सोचने में लग गया था । उसे अचानक फिल्म याद आ गई जिसमें लडका चाय बनाने के लिए किचन में गया था और फिर उसने बर्तन से लेकर पकती कहाँ रखी है तक की तहकीकात बार बार चिल्लाकर की थी । लडकी इतने सारे सवालों का जवाब देने की बजाय खुद किचन में आ गई थी । फिल्में चाहे तो बाद में बनी थी प्यार मोहब्बत सिलसिला पहले शुरू हो गया था । डैनी ने डोर पकडने थी अच्छा डाइनिंग मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर रहा हूँ । उसने नाटकी अंदाज होते हुए कहा था गिर जा नहीं मुस्कराकर अपनी आंखे बंद कर ली थी । होना कहा है उसमे किचन से आवाज लगाई थी और कोई जवाब नहीं आया था । फिर से दूध निकालने के बाद उसने पूछा था चाय की पत्ती कहाँ है? कोई जवाब नहीं आया था । गैस कैसे खुलती है । सन्नाटा कायम था और चीनी कहाँ है? उसने बेहसारा आवाज लगाई थी, दैनि नहीं । किसी तरह चाय बनाई और बोंसाई चाइना काटी । सेट खोज कर उसमें सजा दूध और चीनी अलग स्पोर्ट में रखे थे । ठीक वैसे ही जैसे होटल वाले करते थे । फ्री लेकर वह गिर जा के कमरे में दाखिल हुआ । फिर गहरी नींद सुनना रही थी । कॅश को सोते रहे दिया । पहली बार वो चाय बना कर ला रहा था और गिर जाए फिर जा बे परवाह सो रही थी । उसको इंतजार करना चाहिए था, गिर जाता । इस तरह हो जाना तो अच्छा नहीं लगा था । पर थोडी देर नहीं उसने ये सोचकर मन बहला लिया था । उसमें गिरजा का नहीं बल्कि बीतीरात कसूर था । सब कुछ ज्यादा ही हो गया था । मस्ती भी और ब्लडी मैरी भी उसने चाहे बिस्तर के पास रख दी और बाहर आकर टेलीविजन देखने लगा । एक घंटे बाद गिरजा उठी और डैनी को तलाशते हुए ड्राइंग रूम में दाखिल हुई थी । मैं मुझे चाहे नहीं दी । उसने घुसते ही शिकायत थी हो गई थी । मैं चाय के साथ होती हूँ । उसने गोद में बैठते हैं । बताया था सुबह के पहले दो कप मैं सोते सोते ही पीती हूँ । क्या कर मिल जाने । डैनी को अपनी तरफ खींच लिया था और उसके होठों पर अपने होटल दिए थे । चौक गया था मैं चाय गर्म कर दूँ । ऍम से खुश होकर पूछा था चाहे कौन फिर से गरम करता है, भला मैं बनाओ । पर इससे पहले की दैनिक उठता गिरजा की नौकरानी आ गई थी उसने । मेरी में हिंसा है । उसके लिए चाय बनाई और फिर घर साफ करने में जुट गई । फिर जा नहाने चली गई और देर तक नहीं आती रही थी । डैनी टेलीविजन देखता रहा था प्रदायनी अब क्या हो गई हमारी कुछ? डैनी के बालों में उंगलियां फेरते हुए पूछा था अब आधा दर्जन बच्चे होंगे । हमारे फॅस कर कहा था वहाँ क्यों नहीं? अंदर जो काम है और हौसला दिखाओ उसमें चक्कर जवाब दिया था । पैसे दे नहीं मैं तो पहली नजर में तुम परसदा हो गई थी । हम दिल में कुछ पडता था तुम्हारे बारे में । पर कल रात के बाद वो खत्म हो चुका है । मैं सच नहीं बहुत प्यार करती हूँ । दैनिक अब्दल ढोल गया था ऐसे बताओ बिरयानी बात आगे बढाई थी हम अपनी शादी के बारे में । लोगों को कैसे बतायेंगे आप? तुम्हारे घर वालों को मुझे डैडी को बताना होगा । उन्हें अच्छा नहीं लगेगा । क्यों कैसे अच्छा लगेगा? ऍसे जवाब दिया था क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि बाबा शादी ऐसे ही तय नहीं कर देते हैं तो पहले बातचीत करना चाहते हैं । दैनिक हम खान सिर हिला दिया था और हमारे घर वाले क्या कहेंगे? नहीं । असल में उन के बारे में मुझे कुछ नहीं बताया है । मेरे पिता मास्टर है । मतलब प्रोफेसर हैं । सैनी में हर बढाते हुए कहा मैं घर देखती है और मेरी एक बहन है ज्योति सब सहारनपुर में रहते हैं । नारंगपुर खाएँ दिल्ली के पास ही है । लगभग सौ किलोमीटर दूर है । दैनिक की बात सुनते सुनते भेजा कुछ सोचना पड गई थी तुम डैडी को पैसे बताओगी । ऍफ का ध्यान खींचने के लिए पूछा था । पता नहीं उन्हें किसी भी चीज का चार होना पसंद नहीं है । और मम्मी अरे उन का हाल तो डैडी से भी बुरा है । उनको सब निज से तो चाहिए । जरा सा भी डर डर नहीं हो सकता है । गिरजा की बात सुनकर डैनी सोचना पड गया था । कल रात से आज सुबह तक तो सब मनमाफिक हुआ था । अब परेशानी खडी हुई थी उसका ठीक हाल निकलना था । परेशान हूँ तो सोच लेंगे । उसने खुद को हौसला दिलाया था । उसको भी अपने घर के हालात सुधारने के लिए वक्त चाहिए था और जीजा की परेशानी को मौका दे सकती थी क्या हम उसने यही बात बनाते हुए कहा था हमारे दे दिया मम्मी के पास अभी नहीं जा सकते हैं । हम उनसे जाकर कहते हम ने शादी कर ली है थोडी नहीं तो फिर मैं तो हाथ नहीं कहा था ग्रुप चाहूँ इतनी जल्दी मत करो । मेरा फैसला ठीक था । रिजल्ट दृढता से कहा हम ना मुझे किस किया था मैंने तो करने दिया था क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ । अम् इसके बाद अगला कदम उठाना था । शादी कर नहीं करनी थी । चल मान लिया हमने ठीक किया पर अब क्या करें? कैसे करेंगे? फिर जा चुप रही । दैनिक उसको पूरे तीस सेकंड दिए थे । सुनो । उसने आखिर में कहा था हम ऐसा क्यों नहीं करते हैं कि उनको धीरे धीरे बताएं । मतलब तुम कल परसो घरवालों को बताओ कि तुम्हारी मुलाकात एक अच्छे लडके से हुई है और तुम उसके बारे में कुछ सोच रही हो । फिर कुछ दिन बाद मेरे बारे में और बातें बताओ । इस तरह महीने दो महीने में पूरी बात उनके सामने रख लो । फिर जाना उसकी तरफ अजीब निगाहों से देखा था । डैनी को लगा था कि गिरिजा उसकी बात का गलत मतलब निकाल रही थी । देखो मैं ये कह रहा हूँ । उसने जल्दी से सफाई दी थी । हमें जो करना था वो हमने कर लिया है । हम शादीशुदा हैं पर हमें घर वालों का भी तो ख्याल रखना है । उनको ऐसा लगना चाहिए की सब उनकी मन मर्जी से हुआ है तो मुझे मिलवा हूँ जिससे हमारी पसंद पर वह मुहर लगा सकें । तुम्हारा मतलब हम मुझे कुछ नहीं बताया । फिर जब सीधी बात करने वालों में से थी, उसको लागलपेट पसंद नहीं था । सफेद झूठ बोलना उसके वर्ष की बात नहीं थी । अगर हम से सीधा सवाल करेंगे तो मैं एकदम सीधा सच्चा जवाब देंगे । पर अगर नहीं करते हैं तो उनके जज्बात की खाते हम लोग चुप रहेंगे । मिर्जा को बात समझ में आ गई । एक हफ्ते बाद उसने डैनी को बताया था । उसके डैडी आलोक मित्रा ने दिल्ली गोल्फ क्लब में लंच करने का न्यौता भेजा है । फॅमिली से कहा था कि वो अपने कुछ खास दोस्तों से उनको मिलवाना चाहती है तो फौरन राजी हो गए थे । किस्सा बताते हुए वो खूब हंसी थी । खेल खेलने से मजा आ रहा था । लंच पर जाने के लिए डैनी ने अपने को खुद तैयार किया था । बस स्कूल में बताया गया था कि अपने को बेचना सबसे जरूरी होता है और माल तब तक ठीक से नहीं दिखता है जब तक उसकी साथ समझा बेहतरी नहीं होती है । इस मशविरे पर चलकर ध्यानी ने गिरजा को जीता था । अब ससुर साहब पर पता बनी थी यानी संवरकर लंच पर पहुंचा था । मित्र साथ कहीं से भी बंगाली नहीं लगते हो ना तो सामने थे नहीं पिटे और नहीं तो बहुत है । वे लंबे और पूरे थे । उनके उठने बैठने का अंदाज शाही था । उनके बीच भी गिरजा की तरह बनी हुई थी । दोनों जब साथ खडे होते थे तो शानदार लगते थे । यानि ने गर्मजोशी से हाथ बनाया और फिर उनके ठीक बगल में खडा हो गया था । वो चाहता था मित्रा साहब पर उसके लम्बाई और रंग असर डाले । गिरजा ने भी आपने उन्ही दोस्तों को बनाया था जिनके बीच यानि अलग से दिखाई नहीं । वो ना कोशिश नहीं बुलाया था क्योंकि वो सबका ध्यान अपनी तरफ खींच सकती थी । उसकी जगह उसने अपने दफ्तर की दो लडकियों को बनाया था जिसमें एक बेतरतीब से चमकीले कपडे पहने हुए थी तो दूसरी ऐसी थी मानो उसके मुंबई जवान ही ना हो । दो लडके भी थे । एक उसके स्कूल का साथी था जो शायद उसका नाकाम आशिक था और दूसरा हसमुख सा आम किस्म का नौजवान था । इन सबके बीच डैनी किसान अलग ही दिख रही थी । बताया साहब बेहद नफीस मेहमाननवाज थे । उन्होंने हर एक से अंतरंग बातचीत की थी और सबका हर तरह से ख्याल रखा था । यानी उनके तरीके का फॉर्म घायल हो गया था । उस सत्र साहब बहुत ही सुलझे हुए आदमी लगे थे । उसके निचले तबके से होने को नजरअंदाज करने में होता ही नहीं बरतने वाले थे । डैनी को वो खुद मुख्तारी के हक में खडे होने वाले लगे थे । खाने के बाद जब सब लोग जा चुके थे तो चलते चलते मित्रा साहब ने डेनी से उसके बैंक के बारे में पूछा था । समय ब्रांच का हैं, कौन है विशाल कौन? दिशा और सर किसी सरकारी बैंक से आया है । उसके बाद का छह डिग्री हैं । मैं हूँ पर तजुर्बा है । मित्र साथ में कुछ नहीं कहा था । बस हल्का सा से लाया था और अपनी महंगी मर्सिडीज बैंज में बैठ कर चले गए । गिरजा जब अपनी कार लेकर आई तो उसने शरारत से पूछा था ऍम मैं तो नहीं छोड दूँ । फॅमिली हसते उस की गाडी में बैठ गया था । दो दिन बाद मुंबई से बुलावा आ गया था और डैनी अगले तीन दिन बैंक के मुख्यालय में बडे अफसरों से मुलाकातों में मसरूफ रहा था । उसने तफ्सील से अपनी क्रेडिट कार्ड की बिक्री बढाने वाली योजना बनाएगी और साथ ही उनके सामने ब्लॅक सिस्टम में अपनी नई इजाद पेश भी थी । सब ने उसकी बात बडे ध्यान से सुने । उसे बहुत कुछ और करने का हौसला लिया था । डैनी को ऐसा लगा था जिससे सब उसके बुरी हो गए थे । एक हफ्ते बाद विशाल का ट्रांसफर बॉम्बे हो गया था । बॉर्डेक्स समंदर में उसे छोटी सी मछली बना दिया गया था । विशाल कोइल महीना था । उसको उखाडने के पीछे गुपचुप ढंग से मित्रा साहब का दामाद लगा था । रात को जब उसने गिरजा को खबर सुनाई तो इतनी जल्द प्रांत हेड बनने पर वह हैरान रह गई । प्रसाद में दैनिक की तरक्की से बहुत खुश भी हुई । मित्रा साहब ने बात अपने तक ही रखी थी ।

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Voice Artist

अदभुत प्रेम की विचित्र कथा writer: अश्विनी भटनागर Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Ashvini Bhatnagar
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