01 - निराशा
02 - माया
03 - बुरा मत मानना
04 - अपराध बोध
05 - असमंजस
06 - कटपूतली
07 - चुभन
आप सुन रहे हैं । कुछ हुआ है । किताब का नाम है सात पहेलियां । इसके लेखक हैं राजीव पुण्डी । आरजे आशीष चैन की आवास में कोई ऍम सुनी जो मन चाहे सात पहेलियां, निराशा बात कई साल पुरानी है, मगर मेरे जहन में अभी तक ताजा है । उन दिनों में इंटर्नशिप कर रहा था । हमारे सीनियर ओपीडी हमारे हवाले कर अपनी सुविधानुसार अपने काम निपटाने के लिए निकल जाते थे । एक दिन में ओपीडी में अकेला था और एक के बाद एक मरीज देख रहा था । तभी एक बहुत ही बुजुर्ग दंपत्ति, जिनकी उम्र करीब नब्बे साल से ऊपर ही होगी । ओपीडी ने दाखिल हुए । दोनों ही बहुत मुश्किल से चल पा रहे थे । मैंने उन्हें बैठने का इशारा किया । वो दोनों कम से कम पैसे दो स्कूलों पर आकर बैठ गए । इतने बूढे व्यक्तियों के साथ कोई रिश्तेदार तो होगा ही । ऐसा सोचकर मैंने उनसे पूछा आप के साथ कौन है बुलाइए? वो ठीक से सुन नहीं पा रहे थे । उन्होंने इशारे से बताया कि वो दोनों ही कानून से सुन नहीं सकते और फिर मुझे जोर से बोलने का इशारा किया । मैंने जोर से बोला कि आपके साथ कोई तो आया होगा, उसे बुलाइए । इस बार उनको कुछ कुछ समझ में आ गया था जो मैंने कहा था उन्होंने फिर हाथ के इशारे से ही मुझे बता दिया कि उनके साथ कोई नहीं आया है । अब मैं आश्चर्य में था कि कितने बूढे व्यक्तियों के साथ कोई नहीं । घर का नाश पडोस का कोई भी व्यक्ति नहीं आया है । इनकी तकनीक के बारे में कौन बताएगा? मेरी दूसरी मुश्किल थी या दिन के रोक के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए मुझे हर बार जोर से बोलना पडेगा और मैंने अपने आप को हर बार जोर से बोलने के लिए तैयार कर लिया । मैंने पूछना शुरू किया सही है ज्यादा क्या तकलीफ है? बूढे बाबा ने अपनी पत्नी की और इशारा किया और बताया, उसे और उसकी पत्नी को दोनों को काफी कम सुनाई देता है । मैंने उन दोनों के कानों की जांच की परन्तु मुझे उनके कान साफ नजर आएगा । कहीं कोई मैं इत्यादि नहीं था । अधिक उम्र होने के कारण उनका तंत्रिका तंत्र काफी कमजोर हो गया था जिसके कारण दोनों को ही कम सुनाई देने लगा था । बुढाते की वजह से होने वाले ऐसे रोगों का किसी भी दवाई से इलाज नहीं हो सकता । इसलिए मैंने पूछा की आपको आखिर ऐसी क्या आवश्यकता है की इस व्यवस्था में कानून से ठीक सुनाई दे । वृद्धा चुप चाप बैठी थी । थोडी देर बाद जब वृद्ध को मेरी बात समझ में आई तो उसने कहा मैं जब बोलता हूँ तो इसको सुनाई नहीं देता और जब ये बोलती है तो मुझे सुनाई नहीं देता । मैंने फिर से पूछा आखिर इस उम्र में बातचीत की क्या आवश्यकता है? वृद्ध के चेहरे पर मजबूरी के भाव थे । मेरी जोर से कही गई बातों को वो समझ लेता था । उसने कहा तब तो साहब बिना सुने हम एक दूसरे से बात नहीं कर सकते । मौत पता नहीं कब आएगी और जब तक ना आए समय तो काट नहीं है । बिना बातचीत के हमारा समय नहीं करता और कुछ तो हम कर नहीं सकते । उसकी बात सुनकर में थोडा हैरान हुआ आखिरी बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई? सुनने और बातचीत करने की आवश्यकता तो सबको रहती है और इस उम्र में जब व्यक्ति असहाय हो जाता है और कोई दूसरा काम नहीं कर सकता हूँ । बातचीत की जरूरत सबसे अधिक है जिसके लिए कानून से ठीक सुनाई देना बहुत जरूरी है । अब इस वृद्ध दंपत्ति की सहायता कैसे की जाए जिससे इनको कुछ ठीक सुनाई देने लगे । मैं सोचने लगा मैंने फिर जोर से कहा, बाबा, आप दोनों की कानों की नसीब बहुत कमजोर हो गई हैं । दवाई से कोई लाभ नहीं होगा । रद्द और उसकी पत्नी मेरी और आशा भरी निगाहों से देख रहे थे परन्तु मैं उनकी कोई सहायता नहीं करवा रहा था । इसका मुझे दुख था । मैंने फिर कहा, बाबा, आप लोगों को कानों में लगाने वाली मशीन से कुछ फायदा हो सकता है । कम से कम बहुत जोर से तो नहीं बोलना पडेगा । बूढे की आंखों में कुछ आशा जगी है । उसने पूछा कितने पैसे लगेंगे मशीन खरीदने में करीब दो तीन हजार की एक मशीन । कुल मिलाकर दोनों मशीनें पांच छह हजार में आ जाएगी । छह हजार डॉक्टर साहब खाना तो मुश्किल से मिलता है । पांच छे हजार हमें कौन देगा? उन दोनों की आंखों में जो आशा की किरण आई थी वो एकदम गायब हो गई और उनके चेहरे मुरझा गए । फिर वृद्ध ने अपनी पत्नी की और देखा और आंखों से चलने का इशारा किया । मैंने देखा दोनों की आंखों में आंसू की है कि एक दूर रह रही थी और वो अपने आप को फिर से घोर निराशा में प्रवेशकर्ता महसूस कर रहे थे । मैंने देखा अत्यधिक कमजोरी और घोर निराशा के कारण उन दोनों को उठने में बहुत दिक्कत हो रही थी । मैं अपनी सीट चौथा और उनको खडा होने में मदद करने लगा । मेरी थोडी सी मदद से उन्हें उठने में आसानी हुई और वो धीरे धीरे ओपीडी से बाहर हो गए । मैं काफी देर तक यूज ही बैठा रहा । उनकी कोई मदद न कर पाने के कारण मेरा शरीर भी उतना ही ढीला पड गया था जितना उनका और निराशा भी करीब करीब उतने ही अचानक ही मैंने महसूस किया कि मैं नब्बे साल का असहाय रद्द हो गया हूँ ।
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Producer