देवदासी प्रथा का प्रारम्भ छठवीं सदी में हुआ था यह एक अमानवीय प्रथा थी जो धीरे-धीरे कुप्रथा में बदल गयी। देवदासी मतलब "सर्वेंट आफ गाड"। देवदासी मंदिरों की देख-रेख, पूजा पाठ की तैयारी, मंदिरों में नृत्य आदि के लिए थी। कालिदास के मेघदूतम् में मंदिरों में नृत्य करने वाली आजीवन कुंवारी कन्याओं की चर्चा की है, शायद इन्हें देवदासियां ही माना गया है। मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण और कौटिल्य के अर्थशास्त् में देवदासी का उल्लेख किया गया है। विद्वानों का मानना है कि देवदासी शब्द का प्रथम प्रयोग कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में किया है। पहले इन्हें संरक्षण हासिल था, फिर धीरे-धीरे इनका जीवन असुरक्षित होने लगा। इनका जीवन धर्म और शारीरिक शोषण के बीच जूझता रहा। शारीरिक शोषण होने के जिक्र भर से रूह कांप जाती है, तो ये कैसे बर्दाश्त करती होगी, इनकी सहनशक्ति को प्रणाम। इनका तो हर रोज शोषण होता है ये कैसे बर्दाश्त करती होगी, और तो और इनके बेटियों को भी देवदासी के रूप में देखा जाने लगता है।
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Author : Suneeta Gond
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